मंगलवार, 22 अगस्त 2023

सामाजिक न्याय


सामाजिक न्याय को परिभाषित करना मुश्किल काम सै। सामाजिक न्याय का मतलब सै अक समाज मैं सारे माणसां नै चाहे वे स्त्री हों या पुरुष हों, इस धर्म के हों या उस धर्म के हों,इस जाति के हों या उस जाति के हों—सबको समान रूप तैं जीने का अर अपना विकास करने का मौका मिलना चाहिये। ऐसा तभी हो सकै सै जब समाज मैं वर्ग-भेद समाप्त हो, मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण समाप्त हो। शायद 1935 मैं इस शब्द का इस्तेमाल करया गया जब संयुक्त राष्ट्र्र मैं संयुक्त राष्ट्र्र सामाजिक सुरक्षा अधिनियम पास करया गया। बेरोजगारी, बीमारी, शिक्षा, लैंगिक समानता, वृद्धावस्था के लिए बीमा आदि मुद्दे शामिल करे गये थे। 1938 मैं न्यूजीलैंड मैं प्रयोग हुआ तथा वृहद सामाजिक सुरक्षा पद्धति का विकास करया गया। आर्थिक विकास के साथ-साथ मानव विकास अर राष्ट्र्र विकास को भी शामिल किया गया। इसकी अलग-अलग अवधारणाएं आज भी मौजूद सैं। दलितों, स्त्रियों, आदिवासियों, गरीब सवर्णों आदि को विभिन्न प्रकार के आरक्षण देकर उन्हें सामाजिक अन्याय से बचाया जा सकता है। लेकिन क्या या समझ सही सै? क्या वास्तव मैं सामाजिक न्याय की मांग पूरी नहीं हो सकदी जब तक वर्ग, वर्ण, जाति, लिंग, धर्म, सम्प्रदाय इत्यादि के आधार पर करे जाने वाले भेदभाव को समाप्त न किया जाए? सवाल यो भी सै अक के वर्तमान व्यवस्था को कायम रखते हुए लोगों को सामाजिक न्याय उपलब्ध करवाया जा सकै सै? क्या यो जरूरी नहीं अक वर्तमान समाज व्यवस्था को बदलकर बराबरी अर भाईचारे आली इसी न्यायपूर्ण समाज व्यवस्था कायम करी जावै जिसमैं किसी के द्वारा किसी का दमन और उत्पीडऩ न हो? फेर सवाल उठै सै अक के यो सम्भव सै? जै हां तो क्यूकर? अन्याय का विरोध और न्याय की मांग असल मैं वोहे कर सकै सै जो या बात जानै सै अक न्याय के सै? सामाजिक न्याय असल मैं के सै इस बात को सही परिप्रेक्ष्य मैं समझना बहुत जरूरी सै। एक कान्ही यो सवाल देश की सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा हुआ है तो दूसरी तरफ किसी देश की अर्थव्यवस्था और संवैधानिक व्यवस्था से भी गहन रूप से जुड़ता है। क्या दलितों को सवर्णों के विरुद्ध, पिछड़ों को अगड़ों के विरुद्ध, स्त्रियों को पुरुषों के विरुद्ध, एक धर्म सम्प्रदाय को दूसरे धर्म सम्प्रदाय के विरुद्ध लोगों को लड़ाकर किसी न्यायपूर्ण समाज व्यवस्था की स्थापना की जा सकती है? नहीं तो वर्तमान को सही-सही विश्लेषित करना बहुत जरूरी हो जाता है। आज का दौर समझना बहुत जरुरी है। वर्तमान में भूमंडलीकरण, उदारीकरण तथा निजीकरण की पूंजीवादी प्रक्रियाओं के चलते हमारे देश पर एक तरफ माओवाद का खतरा मंडरावण लागरया सै तो दूसरी तरफ धर्म अर संस्कृति के नाम पर सामाजिक न्याय की पुरानी व्यवस्थाओं को मजबूत बनाने वाली फासीवादी शक्तियों का प्रभाव बढ़ रहा है। इसके विरुद्ध एक स्वस्थ, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष तथा जनतांत्रिक राष्ट्रवाद को अपनाना हमारे लिए जरूरी हो गया है क्योंकि नवसाम्राज्यवादी और नवफासीवादी शक्तियों की मार अंतत: उन्हीं लोगों पर पडऩी है जो सामाजिक अन्याय के शिकार हैं। मगर यही ताकतें धर्म, सम्प्रदाय,  वर्ण, जाति, रंग, लिंग, नस्ल, भाषा अर क्षेत्र के आधार पर लोगां नैं बांटण अर जनता नै एकजुट न होवण देवण मैं कामयाब होरी सैं। इसी हालत मैं सामाजिक न्याय की खातर करे जाने आले संघर्ष का इसा कौन-सा रूप हो सकै सै जो देश नै बाहरी गुलामी तै अर जनता नै भीतरी अन्याय तै बचा सकै? बड़ा अर जटिल सवाल सै। भारत मैं सामाजिक न्याय की बात करण आले बहोत से लोग वर्ग की बात कोन्या करते बल्कि वर्ण की बात करैं सैं। ये वर्ण व्यवस्था नै सामाजिक अन्याय का मूल कारण समझैं सैं। ये ऊंची जातियों के खिलाफ नीची जातियों की राजनीति की बात करें सैं। यह तो विडम्बना ही है कि ऊंची जाति के लोग यह समझते हैं कि उन्हें दलित को नीचा समझने का हक सै। उनकी इस दुर्भावना को दूर करना बहुत जरूरी सै। क्यूकर? फेर मुश्किल जगह सै। मूल सवाल यो सै अक हमनै जातिवाद को दूर करना सै अक जारी रखना सै? जातिवादी राजनीति तै तो यो खत्म होवण तै रहया। इसनै खत्म करण की खातिर जाति के आधार पर नहीं हमनै वर्ग के आधार पर संगठित होना बहोत जरुरी सै। अनेक देशां का अनुभव बतावै सै अक जिब ताहिं गरीब किसान और खेत मजदूर मिलकर संघर्ष नहीं करते तब तक दोनूआं की दशाओं मैं मूलभूत परिवर्तन सम्भव नहीं सै। कुछ लोग न्यों भी कहवैं सैं अक सामाजिक न्याय का नारा सामाजिक अन्याय नै जारी राखण की खातर दिया गया सै। समाज के जै वे लोग जिन-जिन के खिलाफ अन्याय होरया सै वे मिलकै लड़ैं तो सामाजिक न्याय का नारा अन्याय को बनाए रखने का काम नहीं करैगा। हरियाण ज्ञान विज्ञान समिति द्वारा चलाया जा रहया समाज सुधार आन्दोलन नये नवजागरण के विचार से लैस होकर इस काम मैं जुटरया सै। समाज के सब तबकों खासकर आधारभूत तबकों को शामिल करके इस तरफ कदम बढ़ाये जा रहे हैं। आप भी साथ दें। ‘दूसरी दुनिया सम्भव सै’ का विचार आपके सहयोग तै आगै बढ़ सकै सै।

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

गाम की इज्जत--1

 सौ के तोड़ की 

गाम की इज्जत

ठमलू, रमलू अर कमलू बैठक मैं बैठ कै बात फोडण लागरे थे। इतने मैं रमलू का छोरा भाज्या भाज्या आया अर बोल्या-बाबू बाबू चाल मेरी माँ बुलावै सै।राशन कार्ड आले आरे सैं वे फोटो खींचैंगे म्हारा सबका ।। रमलू उसकी गेल्याँ चाल्या गया। कमलू बोल्या-देख लिया जोरू का गुलाम। फोटो खिंचवावैगा सारे कुनबे का । बहु भी उड़ै ए अर सुसरा भी उड़ै ए। घूंघट तार क़ै नँगी होकै , बड़े बडेरयां कै सहमी फोटू? गाम मैं रहणा सहणा कुछ ना भाई। बिना घूंघट किसी बहु? घूंघट तै लिहाज शर्म खातर हो सै। बड्डे माणसां के मान सम्मान खातर हो सै।पर बेरा ना आजकाल के बालकां का। बेशर्मी की भी कोये हद होसै। नयूँ बहु छाती दिखाती हांडै या के बर्दाश्त होवण की बात सै । 

    ठमलू भी कमलू की भकाई मैं आग्या अर दोनूं लठ ठा ठा कै चपाड़ कांहीं भाज लिए।औऱ भी कई माणस जेली अर गंडासे ठा ठा कै उनकी साथ भाज लिए। बुझी भी अक रै के बात हुई? कमलू बोल्या-रै गाम की इज्जत का मसला सै। बस बूझो मतना । तीस चालीस लोग उनकी गेल्याँ होगे। 

    लठ जेली अर गंडासे लोगां के हाथां मैं देख कै फोटो खींचनिया तै दो ए सैकिंड मैं रफू चक्कर होगे उड़े तैं। ठमलू अर कमलू नै गाम की इज्जत बचा ली आखिर मैं। रमलू नै बुझ्या अक यो गाम की इज्जत का रौला म्हारे कुनबे की फोटू गेल्याँ क्यूकर चिपग्या?

   कमलू नै घूंघट के फेर गुणगान कर दिए। रमलू बोल्या- जिब उड़ै खेताँ मैं लुगाइयाँ गेल्यां बलात्कार हों जिब गाम की इज्जत कड़ै जाया करै? जिब औटड़े कूद कै बदमाश म्हारे घर मैं बड़ज्यां अर बदफेली करैं अर घर का माणस विरोध करै तै मार मार कै उसनै वे बदमाश ना जीण मैं छोडें ना मरण मैं, जिब गाम की इज्जत कड़ै चाली जा सै? जिब गाम के छोरे दारू पी कै अर स्मैक चढ़ा कै बीरबानियाँ नै जंगल हो कै आवण की बी मुश्किल कर दें सैं तब गाम की इज्जत कड़ै जा सै? जिब गाम के बड्डे चौधरी अर बदमाश लोग बिजली के सीधे तार फिट करकै बिजली की रोज चोरी करैं सैं तो गाम की इज्जत कड़ै जा सै?

    रही घूंघट की बात। तै भाई इज्जत का अर घूंघट का कोये मेल नहीं । जिन कोमां मैं महिला घूंघट ना करती उनकै के इज्जत कोण्या? अर जो घूंघट तै गोड़याँ ताहिं का करले अर घणी भैड़ी बोलै वा बात सही? मैं थारी बात कोण्या मानूं । महिलावां नै दाब कै राखण खातर इस घूंघट का सहारा लिया जा सै। जै या बात ना हो अर इज्जत मान सम्मान का ए मसला हो तै फेर छोरियां नै भी घूंघट करना चाहिए। 

      यो घूंघट आज्ञाकारिता का, शुद्ध चरित्र का, औरत की पवित्रता का,  उसकी शालीनता का , बड़ी चतुराई और साजिश के साथ एक सामाजिक पैमाना बना दिया। असल मैं घरके , गाम के (पंचायत के) , हल्के के , प्रदेश के अर देश जरूरी फैंसले करण मैं महिला शामिल ना हो पावैं , इस खातर यो सब प्रपंच रच राख्या सै। जै महिलावां नै आगै बढ़ना सै तै घूंघट तै तार कै फैंकना पड़ेगा।

  ठमलू बोल्या- रै ओ रमलू सुणिये एक बै। तूं इन ज्ञान विज्ञान आल्यां मैं तै नहीं जावण लाग लिया सै? वे इसी उल्टी सीधी बात सिखावैं सैं महिलावां नै। उनकी गेल्याँ भी कदे दो दो हाथ करने ए दीखैं सैं ।

  रमलू बोल्या- साच्ची  कैहदी तै जाणों आंखयाँ मैं आंगली देदी।

1 अक्टूबर, 1998

रणबीर उर्फ 'आण्डी'

गाय की अपील मुनेश त्यागी

 गाय की अपील

************ 

                 ,,,, मुनेश त्यागी

आज मैं बाजार में घूम रहा था। चारों तरफ  कोरोना को लेकर चर्चा थी। कोई सरकार को भला बुरा कह  रहा था, कोई लोगों की गंदगी फैलाने की आदतों को दोष दे रहा था।

     तभी एक गाय दुखी मन से वहां आई। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। मैंने पूछा  बहन क्या हुआ? तो वह जोर जोर से रोने लगी और उसने कहा कि लोग मुझे लेकर पता नहीं क्या-क्या अनाप-शनाप समाज में फैला रहे हैं, कुछ लोग कह रहे हैं कि मेरे गोबर और मूत्र से कोरोना का इलाज हो जाएगा। मैं यह सब देख सुनकर बहुत दुखी हूं और मेरा मन बहुत परेशान हो रहा है, केवल आप ही हैं जिसने मेरे से पूछा कि मैं उदास क्यों हूं?

     मैं उसकी बात बड़े ध्यान से सुन रहा था तब उसने मेरे से एक रिक्वेस्ट की कि मैं जाऊं और मीडिया में यह स्टेटमेंट गाय की तरफ से दूं जिसमें उसने कहा था कि,,,,       

   "कोरोना के इलाज में मेरा कोई दूर-दूर का नाता नहीं है, मूत्र या गोबर से कोरोना कभी भी ठीक नहीं हो सकता, समाज में ऐसी बातें फैलाने वाले मेरे दुश्मन है उनकी बातों पर कोई विश्वास ना करें, मैं भी जनता से अपील करती हूं कि,,,,

 ,,वह अपने हाथ साबुन से धोते रहें, 

 ,,भीड़भाड़ के इलाकों में ना जाएं, 

 ,,सैनिटाइजर का यूज करें,

  ,,छींकने और खांसने  पर मास्क रुमाल का प्रयोग करें,

   ,, दूसरों से व्यवहार में सावधानी बरतें और दूसरों से भी कहें कि वे भी सावधानी बरतें,

  ,,तमाम तरह की अफवाहों से बचें और 

  ,,समाज में  बिना मतलब का खौफ और डर पैदा ना करें

  और मेरा नाम लेकर कोरोना का इलाज करने का इल्जाम लगाने वाले ना तो मेरे दोस्त हैं ना समाज के। यह मेरे भी दुश्मन है और समाज के भी सबसे बड़े दुश्मन हैं, इन सभी दुश्मनों से सावधान रहें और समाज को भी सावधान करें।"

मुर्गी के अंडे

 मुर्गी अंडे दे रही थी और मालिक बेच रहा था.... मुर्गी देशहित में अंडे दे रही थी...।


फिर एक दिन मुर्गी का नया मालिक आया और उस मालिक ने कहा -’’ आज राष्ट्र को तुम्हारे अंडों की जरूरत है। यदि तुम चाहती हो की तुम्हारा घर सोने का बन जाये तो जम के अंडे दिया करो। आज तक तुमसे अंडे तो लिये गये लेकिन तुम्हारा घर किसी ने सोने का नही बनवाया। हम बनवाएंगे, तुम्हारा विकास करके छोड़ेंगे।’’ मुर्गी खुशी से नाचने लगी। उसने सोचा देश को मेरी भी जरूरत पड़ती है वाह मैं एक क्या कल से दो अंडे दूंगी। देश है तो मैं हूं वह दो अंडे देने लगी। 


मालिक खुश था अंडे बेचकर पैसे कमा रहा था। उसने मुर्गी की खुराक कम कर दी मुर्गी चौंकी -’’ आज मुझे पर्याप्त खुराक नहीं दी गई कोई समस्या है क्या ? तब मालिक ने कहा देश आज संकट में है किसी भी मुर्गी को पूरा अन्न खाने का हक नहीं। जब तक एक भी मुर्गी भूखी है मैं खुद पूरा अहार नहीं लूंगा हम देश के लिए संकट सहेंगे।’’ मुर्गी आधा पेट खाकर अंडे देने लगी मालिक अंडे बेचकर अपना घर भर रहा था। 


बरसात में मुर्गी का घर नहीं बन पाया। मुर्गी बोली- -’’ आप मेरे सारे अंडे ले रहे हैं, मुझे आधा पेट खाने को दे रहे है। कहा था कि घर सोने का बनेगा, नहीं बना। मेरे घर की मरम्मत तो करवा दो’’ मालिक भावुक हो गया -’’ तुमने कभी सोचा है इस देश में कितनी मुर्गियां हैं जिनके सर पर छत नहीं हैं, रात-रात भर रोती रहती हैं तुम्हें अपनी पड़ी है। तुम्हें देश के बारे में सोचना चाहिए अपने लिए सोचना तो स्वार्थ है।’’ मुर्गी चुप हो गई देशहित में मौन रहा ही जाता है। 


अब वह अंडे नहीं दे पा रही थी

कमजोर हो गई थी!  न खाने का ठिकाना न रहने का, वह बोलना चाहती थी लेकिन भयभीत थी पूछेगी तो देशद्रोही ठहरा दी जाएगी। वह पूछना चाहती थी कि इतने पैसे जो जमा कर रहे हो, देशहित में कितना लगाया है लेकिन पूछ नहीं पाई। 


एक दिन मालिक आया और बोला- -’’ मेरी प्यारी मुर्गी तुझे देशहित में मरना पड़ेगा, देश तुमसे बलिदान मांग रहा है। तुम्हारी मौत हजारों मुर्गियों को जीवन देगा’’ मुर्गी बोली लेकिन मालिक मैने तो देश के लिय बहुत कुछ किया है, मालिक ने कहा अब तुम्हे शहीद होने पड़ेगा। बेचारी मुर्गी को अब सब कुछ समझ आ गया था लेकिन अब वक्त जा चुका था और मुर्गी कमज़ोर हो चुकी थी, मालिक ने मुर्गी का काम लगा दिया। मुर्गी देशहित में शहीद हो गई... जो  आप सोच रहे हैं ऐसा बिल्कुल भी नही है।  ये सिर्फ एक मुर्गी की कहानी है। 


वर्तमान में तो देश बदल रहा है ना?

सोमवार, 13 फ़रवरी 2023

राजेश अत्रेय

 Rajesh Atreya: नमस्ते. यदि मैं दूसरों में हमेशा अच्छाई ही ढूंढता हूँ और उन्हें अपनाता भी हूँ तो मैं लगभग सबसे आगे निकल जाता हूँ.

नमस्ते. यदि हर स्थिति में मेरे मन में शान्ति रहती है तो मैं उस स्थिति में हूँ जहाँ कि दूसरे कल्पना भी नहीं कर सकते.

हमें हर छोटी से छोटी बात पर भी विश्वास पात्र बनना चाहिए.

नमस्ते. परिवार के सम्बन्घ सबसे अधिक कीमती होते हैं. उनका सम्मान कीजिए.

नमस्ते. एक खुश व्यक्तित्व, अपने और दूसरों के घाव भरने में बहुत मदद करता है.

नमस्ते. अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छे मित्र बहुत ज़रूरी हैं और अच्छे जीवन के लिए अच्छा स्वास्थ्य ज़रूरी है.

 नमस्ते. मैं हमेशा सकारात्मक और आत्मबल बढ़ाने वाले व्यक्तियों के साथ रहना चाहता हूँ.

नमस्ते. मेरा अपने दिमाग और अपने मुंह पर नियंत्रण होना चाहिए और इन दोनों में भी सामंजस्य होना चाहिए.

नमस्ते. जो समय मैंने अपने लिए खर्चा, वो गया. जो मैंने दूसरों को दिया वो अभी भी मेरे पास है.

नमस्ते. कुछ चाहने और परमात्मा से प्रार्थना करने में बहुत बड़ा अंतर है और वो है... आस्था.

नमस्ते. आत्मशक्ति की परिभाषा "कोशिश करना" नहीं, बल्कि "करना" है.

नमस्ते. दबाव पड़ने पर हमारे भीतर से वही निकलता है जो वास्तव में हमारे भीतर है. जैसे किसी भी फल को दबाने से उसका असली रस ही बाहर निकलता है.

नमस्ते. यदि मुझे खुद पर भरोसा नहीं है तो मैं हमेशा कोशिश ना करने के बहाने ही ढूंढूगा.

नमस्ते. कोई भी महान उपलब्धि तब तक याद रखी जाती है जब तक कोई दूसरी उपलब्धि नहीं हो जाती.

नमस्ते. सच को कहने ही नहीं बल्कि सुनने के लिए भी बहुत साहस चाहिए.

नमस्ते. जो काम मुझे महीने के अंत तक करना है उसके लिए महीने का अंत आने की प्रतीक्षा क्यों करूं?

नमस्ते. एक दिन भर का काम एक घंटे की चिंता से कम थकाऊ होता है.

नमस्ते. हमारा काम हमारी पहचान होना चाहिए.

नमस्ते. यदि मैं सही चीज़ों पर ध्यान नहीं दूंगा तो मेरा जीवन खराब होगा ही होगा.

नमस्ते. दयालुता बहुत शक्तिशाली, तेज़ी से फैलने वाली और व्यक्ति में परिवर्तन लाने वाली वस्तु है.

नमस्ते. अपने डर के कारण कोशिश करना बंद मत कीजिए.

नमस्ते. ये एक सच्चाई है कि हमारा स्वास्थ्य ही हमारा एकमात्र सच्चा मित्र है. यदि ये एक बार साथ छोड़ दे तो बाकी भी धीरे धीरे साथ छोड़ देते हैं.

नमस्ते. परमात्मा से प्रार्थना करना कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसका इस्तेमाल सबसे आखिर में किया जाए.

नमस्ते. सफलता छोटी नहीं बल्कि एक लम्बी दौड़ है.

 नमस्ते. अपने जीवन को पूरी सत्यनिष्ठा से जियें. यह आने वाली पीढ़ी को अवश्य प्रभावित करेगा.

नमस्ते. हार के बारे में बात मत कीजिए. इसकी बजाए आशा, विश्वास, आस्था और विजय की बात कीजिए.

नमस्ते. जो अपनी गलतियाँ स्वीकार नहीं कर सकता वो कभी सफल नहीं हो सकता.

 नमस्ते. उस पर ज़्यादा ध्यान मत दो कि आप कहाँ थे, उस पर ध्यान दो कि अब कहाँ हो और उस पर पूरा ध्यान दो जहाँ पहुँच सकते हो.

नमस्ते. अपने दिल को साफ़ और सच्चा रखिए क्योंकि दिल वो झरोखा है जिसमें से आप दुनिया को देखते हो.

नमस्ते. दूसरों के प्रति आभार प्रकट करने में मेरा पूर्ण विश्वास है. इससे मैं विनम्र होता हूँ और मुझे बेहतर करने की प्रेरणा मिलती है.

नमस्ते. परिवर्तन तकलीफ नहीं देता बल्कि परिवर्तन को स्वीकार ना करना तकलीफ दायक होता है.

नमस्ते. अपनी इच्छा शक्ति को क्रियात्मक बनाने के तीन उपाय....1. एक ऐसे काम को चुनें जिसे आपने पहले नहीं किया हो और उसमें सफल होने का दृढ़ निश्चय करें. *(शेष दो उपाय आने वाले दिनों में)*

नमस्ते. उपाय नं. 2. आश्वस्त हो लें कि जो काम चुना है वो रचनात्मक और व्यावहारिक है, फिर उसकी असफलता के विचार को पूरी तरह त्याग दें.

नमस्ते. उपाय नं. 3. एक उद्देश्य पर ही एकाग्र रहें और शेष सभी योग्यताओं का इस कार्य की पूर्ति के लिए प्रयोग करें.

नमस्ते. सफलता का बीज बोने के लिए असफलता का मौसम उत्तम समय है.

नमस्ते. एक सफ़ेद झूठ आपकी प्रतिष्ठा पर एक कालिख लगा जाता है.

नमस्ते. सच हमेशा झूठ से ऊपर होता है जैसे तेल की एक बूँद हमेशा पानी के ऊपर ही होती है.

नमस्ते. यदि आपको झूठ बोलने की आदत है तो आपके सच को भी झूठ ही माना जाएगा.

नमस्ते. झूठ से हमारी आस्था अंधी हो जाती है और अंध आस्था के साथ हम कहीं नहीं पहुँच सकते.

नमस्ते. हमें अपने बारे में सब कुछ सच सच पता होता है इसलिए कभी भी अपने आपको धोखा देने की कोशिश मत करना.

नमस्ते. आधे प्रयासों से आधे परिणाम नहीं बल्कि कोई भी परिणाम नहीं मिलता.

नमस्ते. जिसकी जैसी प्रकृति है उसके साथ उसी के अनुसार व्यवहार करने पर आप तनाव रहित और शांत रह सकते हो.

नमस्ते. खुश होइए कि आप दूसरों जैसे नहीं हैं. इसी से आप आराम से रह सकते हो.

नमस्ते. जीवन को जितना हो सके साधारण रखिए इसी से आप तनाव रहित रह सकते हो.

नमस्ते. आप चाहे ये सोचें कि आप इस काम को कर सकते हैं .. या ये कि आप नहीं कर सकते... आप दोनों जगह ही ठीक हो.

नमस्ते. बुराई करने वालों की चिंता मत करो. उन्हें कहीं भी पसंद नहीं किया जाता. उनके आज तक दुनिया में कहीं भी स्मारक नहीं बने.

नमस्ते. अपने आप से प्रेम करके, स्वयं को स्वीकार करके ही दूसरों से प्रेम किया जा सकता है.

नमस्ते. जब तक आप स्वयं नियम बनाने की स्थिति में नहीं पहुँच जाते, तब तक बने हुए नियमों का ही पालन कीजिए.

नमस्ते. हर विजेता कभी ना कभी नौसिखिया ही था.

नमस्ते. किसी की सफलता पर ईर्ष्या करना सही नहीं है. आपको नहीं पता उसने अपना सफर कैसे तय किया है.

नमस्ते. आपकी असंख्य समस्याएं हो सकती हैं. पर सिर्फ आप और केवल आप ही उनका उचित हल ढूंढ सकते हैं.

नमस्ते. आपकी समस्याएं चाहे जैसी भी और जितनी भी हों, यदि मैं आपसे अपनी समस्याऐं देकर आपकी लेना चाहूं तो यकीनन आप इंकार कर देंगें.

 नमस्ते. संसार की कोई भी समस्या जीवन से बड़ी नहीं हो सकती. जीवन रहेगा तो समस्याओं का हल भी मिलेगा.

नमस्ते. आप अपनी समस्याओं से भाग नहीं सकते, वे आपका पीछा नहीं छोड़ेंगी. पर जब आप उनका सामना करने का निर्णय लेंगें तो वे अपने आप समाप्त होने लगेंगी.

 नमस्ते. जीवन का कोई भी सफर कठिनाइयों के बिना पूरा नहीं हो सकता. इसलिए उन्हें स्वीकार करना और उन्हें दूर करना शुरू कीजिए.

नमस्ते. आपके संवाद में आपके शब्दों से ज़्यादा आपकी आवाज़ की टोन और आपकी शारीरिक भाषा महत्वपूर्ण होती है.

नमस्ते. जीवन में सफल व्यक्ति वही हैं जिन्होंने दूसरों को ज़रूरत के अनुसार दिया भी और किसी की गलती पर उसे माफ़ भी किया.

नमस्ते. प्रत्येक दिन जीवन में एक उपहार लेकर आता है. सकारात्मक सोच के साथ उसे खोलिए और मज़ा लीजिए.

नमस्ते और लोहड़ी की शुभकामनाएं. जब हम अपने ऊपर विश्वास रखते हैं तो वास्तव में हम उस शक्ति में विश्वास रखते हैं जिसने हमें बनाया.

नमस्ते एवं मकर सक्रांति की शुभकामनाएं. . हम अकेले सारे काम बेहतरीन तरीके से नहीं कर सकते. इसीलिए समाज की स्थापना की गयी है.

नमस्ते. काम की गुणवत्ता ज़्यादा महत्वपूर्ण है नाकि संख्या या मात्रा.

नमस्ते. हमारी कमियां कभी ना कभी दिखाई दे ही जाती हैं. उन्हें छिपाने की बजाए उन पर विजय पाने का प्रयास करें.

नमस्ते. हमें अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनना भी सीखना चाहिए.

नमस्ते. समस्याएं भी बच्चों की तरह होती हैं उन्हें जितना ज़्यादा पालते पोसते रहोगे, वो बढ़ेंगी ही.

नमस्ते. कोई भी आपके दर्द सुनना नहीं चाहता पर अपने ज़रूर बताना चाहता है.

नमस्ते. एक सत्यनिष्ठ व्यक्ति कभी भी ना तो धोखा देता है नाही गलत राह दिखाता है. तो फिर क्यों ना वैसा ही बनने का प्रयास किया जाए?

नमस्ते. जब भी संभव हो हंसिए. यह लगभग सभी बीमारियों की सबसे सस्ती दवा है.

नमस्ते. चुनौतियां हमें मजबूत एवं दृढ़ संकल्पी बनाती हैं.


सोमवार, 6 फ़रवरी 2023

बेवफा सिस्टम

 बेवफा सिस्टम

इस बेवफा सिस्टम से वफ़ा मांग रहे हैं
हमें क्या मालूम है हम खता मांग रहे हैं
ये किस्मत का खेल रचाया है इसी ने तो
इसी से हम किस्मत की दुआ मांग रहे हैं
सच को छिपाता आधा सच बताता हमें
जहर घोला उससे साफ हवा मांग रहे हैं
रोजाना जो खेले हमारे जज्बात के साथ
सुख की राही का उससे पता मांग रहे हैं
सुरग की कामना में छिपी है जो रणबीर
अपने खुद की ही हम चिता मांग रहे हैं
13/9/09

रविवार, 7 जून 2020

CHAUKHI CHUBHTI 1 ---64

     1    
लड़ाई ही लड़ाई
थामनै कई ढाल की लड़ाईयां के बारे में पढ्या होगा, सुण्या होगा अर देख्या होगा। घर मैं लड़ाई किसे ना किसे बात पै आपां रोजै करां सां। कितै मां बेटे की तकरार, किते भाई भाईयां मैं मारममार, कितै मुसलमानां पै होन्ते वार, कितै देवर भाभी मैं पड़ै सै दरार। बस बुझो मतना। फेर हिन्दुस्तान मैं एक न्यारे नमूने की लड़ाई शुरू होती दीखै सै। या किसी लड़ाई सै बेरा ना? संसद तै बाहर तै कांग्रेस अर भाजपा एक दूसरे के खून की प्यासी दीखै सै, एक दूसरे की खाट खड़ी करण मैं कसर नहीं छोड़ती फेर संसद मैं दोनूआं की एकै भाषा, एकै राग लागै सै। एक पाछै एक आवण आले विधेयकां - बीमा विधेयक, महिला आरक्षण विधेयक, पेटैंट विधेयक पै तै इन दोनू पार्टियां की गजलोट हुई दीखै सै। पर बीमा आले विधेयक पै भाजपा अर आर.एस.एस. मैं लड़ाई छिड़गी। बेरा ना या दिखावटी सै अक या असली सै? दूसरे कान्हीं अकाली दल मैं बादल अर टोहरा नै हथियार पिना लिये। छूट छुटावण करवाणिये अपने नम्बर बणावते हांडैं सैं। इनका यो बी नकली सौदा सै अक असली सै बेरा ना? एक और चाला देख्या लोगां नै तै बाट थी अक जयललिता वाजपेयी का धुम्मा ठावैगी फेर उसनै तै आपणा ए मोर्चा तोड़ कै धर दिया। ईब डण्ड बैठक काढ़ण लागरी सै बेरा ना किसनै तोड़ैगी अर किसनै बणावैगी? मुलायम सिंह यादव नै कांग्रेस कै खिलाफ तलवार खींच ली अर कांग्रेस नै राबड़ी देवी पै तीर कमाण कर राख्या सै तीर बेरा ना कद कमान मां तै छूटज्या। बीजू जनता दल वाले आपस मैं ए कब्ड्डी घालरे सैं। बेरा ना चाण चक दे सी यो के होग्या? ये नये-नये पाले खींचगे। किसके पाले मैं कौण जा खड़या होगा कुछ नहीं कह्या जा सकदा। गिरगिट की ढालां रंग बदलते वारै कोण्या लान्ते। पहलम आली सारी कतार बन्दियां बदलती दीखै सैं।
इलैक्शनां की जंग कांग्रेस अर भाजपा बिचालै लड़ी गई। कांग्रेस नै राजस्थान, मध्यप्रदेश अर दिल्ली मैं फेर पैर जमा लिये। कैहवणिया तो न्यों बी कहवैं सैं अक या लड़ाई गंठे अर बम्ब के बीच लड़ी गई। पर असल मैं या लड़ाई महंगाई अर जनता के बिचालै लड़ी गई। भाजपा तै महंगाई के रथ पै असवारी होरी थी अर कांग्रेस नै जनता अपणे कान्ध्या पै ठारी थी। तुलसीदास नै भी कह्या सै अक रावण रथी था ज्यां करकै ओ रथ पै सवार था अर रघुवीरा विरथ थे। ऊंह धोरै किसे रथ थे। रघुवीरा तै बांदरां के अर भालुआं के दम पै लड़या था। पर उस लड़ाई मैं तै रथी हारया था अर विरथी जीतया था। म्हारे प्राचीन संस्कृति के वाहक तै बिना रथ के कोए बी लड़ाई कोन्या लड़ते। बेशक वे रघुवीरा के भक्त सै फेर लैक्शन की पाछली लड़ाई तै उननै रथ यात्रा की बदोलतै जीती थी। जै आडवाणी जी रथ पै सवार नहीं होन्ते तो दो सांसद आला यो सीमित सुखी परिवार इतना बड्डा कुणबा क्यूकर बणता? ईब या न्यारी बात सै अक इसतै म्हारी पुराणी संस्कृति गैल्यां खिलवाड़ हुया अक नहीं हुया? इबकै भी आडवाणी जी महंगाई के रथ पै सवार हो लिए। रथ तो रथै हो सै या बात न्यारी सै अक यो पहलड़े रथ बरगा टोयटा आला रथ नहीं था जिसकी तामझाम तै सौ कोस तै बी दीखै थी। पर इबके रथ मैं महंगाई भव्य थी। जिसी आडवाणी जी के रथ नै हा हा मचाई थी कुछ उसे ए ढाल की हालत इस महंगाई नै बणादी। फेर उस हा हाकार नै तो आडवाणी जी पै वोटां की बरसात करदी थी अर इस बर की नै चुनावी हार का तमगा दे दिया।
इस चुनावी लड़ाई पाछै इसा लागण लाग्या था अक ईब साचली लड़ाई शुरू होवैगी। महाभारत का युद्ध जणो तै हटकै नै लड़या जागा। पाले बंदी बदलैगी। नये मोर्चे बनैंगे। सरकारी मोर्चा टूटैगा अर नया मोर्चा सरकार बणावैगा। फेर सरकारी मोर्चा तै न्यों का न्यों सै हां बिचारी जयललिता का मोर्चा जरूर टूटग्या। लोग बाट देखैं थे अक वाजपेई जी आज गया कै काल गया। जयललिता जी तै न्यारा भला और कोण तोड़ सकै सै सरकारी मोर्चे नै? जार्ज साहब तै-समता बेशक टूटो पर भाजपा की सरकार बच ज्याओ - इस अभियान पै जोर तै मंडरे सैं। काम जार्ज ताहिं देश की रक्षा का सौंप राख्या फेर आण्डी रक्षा वाजपेई की सरकार की करण लागरया सै। समता पार्टी मैं कई जणे मंत्री बणन के नाम पै सिंगरे हांडैं सैं फेर नम्बर कोन्या आ लिया सै भाइयां का। वे बड़े दुखी सैं अक जार्ज अर नीतिश कुमार तै मंत्री होगे अर हम सूके के सूके राख राखे सां।
उननै दुख इस बात का भी सै अक वाजपेई जी आपणे तै तीन मंत्री बणा लिये अर बाकी सबनै भूलगे। बड़ा चाला कर दिया। साहब सिंह जी वर्मा नै भूलगे उस तांहि तै उननै अपणें हाथ तै चिट्ठी लिखकै मंत्री बणण का न्यौता दिया था। जै वाजपेई जी न्यों न्यौते निधारां मैं गड़बड़ करैगा तै जनता बिगड़े बिना नहीं मानैगी। फेर वाजपेई जी बी किस किस नै याद राखैं?
एक चीज समझ मैं कोण्या आई इस लड़ाई की अक लड़णा तै भाजपा अर कांग्रेस आई नै चाहिये था। पर ये दोनूं तै नेड़े नेड़े नै आवंते दीखैं अर भाजपा गैल्यां जिननै घी खिचड़ी रैहना चाहिए था वे भाजपा तै दूर होन्ते जावैं सैं, इसकै खिलाफ बोलैं सैं। 11 दिसम्बर की हड़ताल मैं कांग्रेस नै समर्थन करणा चाहिये था पर कोनी करया। जयललिता नै समर्थन करया अर बीजू जनता दल नै करया। संघ परिवार भी इन विधेयकां नै ले कै भाजपा सरकार कै खिलाफ आण डट्या मैदान मैं। इननै तो कठ्ठा रहणा चाहिये था आपणी परंपरा निभाणी चाहिये थी। पर ये आपस मैं लड़ण लागरे सैं। बीजेपी तै अनुशासन आली पार्टी बताई जा थी तो यो चौड़े सड़क पै ईब के होण लागरया सै? यो हो के रहया सै? या किसी लड़ाई सै? न्यों कहया करैं अक झोटे-झोटे लड़ै अर झाड़ां का खोह। इन राजनेतावां नै या जनता ईब झाड़ बोझड़े समझनी छोड़ लेनी चाहिये। जनता रैफरी बण कै इस सारी लड़ाई नै देखण लागरी सै। जनता की रैफरसिप बड़े बड़यां नै रैफरसिप सिखा दे सै फेर भाजपा, कांग्रेस, मुलायम, कांशी अकाली, लालू अर जयललिता किस खेत की मूली सैं? देश की जनता अपणे अनुभव तै सीखण लागरी सै अर एक बख्त इसा जरूर आवैगा जिब जनता की राजनीति करणियां की जीत जरूर होगी।
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अधखबड़ा माणस - म्हारा खरना
कई बै जिब बात चालै तै बुद्धिमान माणस हरियाणे के बारे मैं न्यों कहवैं सैं अक आड़ै गिहूं की अर चावल की पैदावार तै बधगी अर लोगां धोरै रातू रात पीस्सा (काला धन घणा अर धोला धन थोड़ा) बी बधग्या पर सांस्कृतिक स्तर पै तो विकास कोण्या हुआ अर या बात सुणकै कई आडू न्यों कहवैंगे अक या झूठी बात सै। हरियाणा तै संस्कृति के मामले मैं पूरे भारत का पथ प्रदर्शक रह्या सै अर वे गिणवा देंगे कुरुक्षेत्र का कर्मक्षेत्र जड़ै महाभारत खेल्या गया अर गीता रची गई अर और बेरा ना के के। फेर झकोई आज के हिसाब मै कदे नहीं दिमाग पै जोर देकै सोच्चण की कोशिस करैं अक आज का हरियाणा के सै? न्यों तै कदे देश मैं नालन्दा अर तक्षिला मैं दूसरे देसां के लोग पढ़ण आया करदे फेर आज कड़ै सै ओ नालन्दा? आज का बिहार कित खड्या सै? हरियाणे मैं मनै दीखै सै अक आड़ै जुबान की भाषा का विकास तै होए नहीं लिया सै। आड़ै तै ईब ताहिं लठ की भाषा चालती आई सै, आज बी चालै सै अर बेरा ना और कितने दिन चालैगी? सुरड़ेपन तै, फुहड़पन तै जै कोए नेता कै अफसर रहवै तै न्यों कहवैंगे अक भाई कति ऑरिजनल सै। अपने पुराने रीति रिवाजां पै न्यों का न्यों टिकरया सै। हरियाणवी शिक्षा नै नौकरी तै दिवादी पर शिक्षित अर सभ्य माणस तै कोण्या पैदा करया। इसनै पैदा कर्या अधखबड़ा माणस। ये अधखबड़े माणस कई नेता होगे अर अफसर बणगे। काम चलाऊ, लंगड़ी लूली अर अधखबड़ी शिक्षा पनपी हरियाणा मैं। माणस नै माणस बणावण आली अर सूहर सिखावण आली, तर्क शक्ति बढ़ावण आली शिक्षा तै दूर-दूर ताहिं बी ना टोही पावन्ती आड़ै।
इसी कल्चरल बैकवर्डनैस का जीता जागता सबूत सै महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय। जिस दिन तै इसकी नींव धरी गई है उसे दिन तै यो पहलवानां का खाड़ा बणाकै छोड़ दिया। या लाइफ साइंसिज बणती बणती आज की बिचारी यूनिवर्सिटी बणा दी शेरां नै। आड़ै च्यार पांच पोस्ट सैं - पीएटू वायस चान्सलर, इस्टेबलिस्मैंट की शाखा का ए.आर., सीक्रेसी का ए.आर. अर दो एक और। इन पांच छै पोस्टां पै हर कौम के भाइयां नै कब्जा करकै अपनी अपनी कौम का अर यूनिवर्सिटी का सुधार करण के सपने देखे पर पूरे नहीं होए। फेर बी शेर जात्यां की कोली भरे बैठे सैं। आड़ै पहला वायस-चान्सलर आया बतरा साहब फेर सरकार नै उसकी टर्म पूरी नहीं होण दी। फेर डा. जे.डी. सिंह पी.वी.सी. बणकै आया। उसनै अपणा लठ पूरी यूनिवर्सिटी पै घुमाया अर बखत आवण तै पहलमै सरकार नै उसपै अपना लठ घुमा दिया। भाई नै बी टांडा टीरा ठाकै जाणा पड्या। फेर हरद्वारी लाल जी पधारे। उननै लोग खूब नचाये। सरकार नै ओ खूब नचाया अर सरकार अर हरद्वारी लाल दोनूं कचहरी नै नचाए। बीच मैं जे.डी. गुप्ता जी आये। उननै अपने करतब दिखाये। एस.एन. राव जी बी किमै सेवा कर पाये। हटकै हरद्वारी लाल जी नै फेर आकै पैर जमाये। राम गोपाल जी बी साल डेढ मैं तार बगाये। फेर कमान ले. जे.सी. अग्रवाल ताहिं दी अर अधम बिचालै खोस ली। फेर ब्रिगेडियर साहब का नम्बर आया इननै बी जमकै गुल खिलाया। एकाध टीचर इसा लाया जिसनै आज ताहिं नहीं पढ़ाया। तीसरे साल मैं बान्ध इनकै बी ला दिया था सरकार नै। फेर विवेक शर्मा जी आये। उस ताहिं ताहवण खातर छात्र बी भड़काये अर दूसरे तीर बी चलाये। कोर्ट कचहरी मैं जाकै पैंडा छुटवाया। फेर कौशिक साहब नै लगाम सम्भाली अर अपणा फौजी डण्डा घुमा दिया। अधम बिचालै सरकार नै फेर खूंटा गाड दिया अर खेमका साहब रजिस्ट्रार बणा दिये। जंग जारी सै।
सवाल यू सै अक चाहे कोए बी सरकार रही हो; सारी सरकारों का एकै सा ब्यौहार क्यों सै? चाहे किसा कसूता बुद्धिमान माणस इस वायस चान्सलर की कुर्सी पै आ बैठै उसका तौर तरीका एकै ढाल का क्यों रहया? उसनै अपणा लठ खूब घुमाया अर जिब सरकार नै लठ घुमाया तै चिल्लाया। दोनूआं की लठ की भाषा क्यों? आड़ै आकै जुड़ै सै ओ कल्चर अखरने का सवाल। हरियाणा नै तरक्की तै करली आर्थिक स्तर पै पर कल्चरल स्तर पै तै न्यों का न्यों पुराना खरना सै। अधखबड़े माणस, लठमार भाषा, झोटे आली गस, राज की ताकत का नसा ये सारी मिलकै आज का नजारा पेस करैं सैं। जै यूनिवर्सिटी मैं अर हरियाणा मैं बदलाव ल्याणा सै तै पहलम इस पुराने खरने नै बदल के आधुनिक, उदारवादी, प्रगतिशील खरने का विकास करना होगा। पर करैगा कूण?
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गंठे की आत्मकथा
मनै गंठा कैहदे कोए प्याज़ कैहदे अर कोए अनियन कैहदे। मनै लेकै पाछले एक साल तै सबके पासने पाटरे सैं अर भाजपा आल्यां के तो कैहने ए के सैं। इननै आठ म्हिने हो लिए राज करते। आठे म्हिने मैं सबकी म्यां बुलां दी इननै। जनता की चूल हिला कै धरदी। मनै सोच्ची अक सरकार ताहिं सबक तो सिखाणा ए चाहिए। मेरा सीधम सीध तो ब्यौंत नहीं था किमै करण का तो मनै बैरी का हथियार बैरी पै चला दिया। घोड़े के तनाल लागती देखकै मिंडक नै बी पां ठाया। मतलब मेरी गेल्यां आलू, टमाटर, धनिया अर मिर्च ये सारे के सारे स्पीड पकड़गे। बाजपेई जी नै अपणी सफाई देवण मैं कसर नहीं घाली अर मेरे दाम तले नै ल्यावण की खातर बहोतै ताने तुड़वाये फेर कोण्या बात बणी अर जनता नै मध्य प्रदेश, राजस्थान अर दिल्ली मैं भाजपा की सफाई करदी।
बात न्यों बणी अक पाछले दिसम्बर की मेरी जितनी फसल होनी चाहिये थी उतनी कोन्या हुई। जिब मार्च मैं मेरी दूसरी फसल आई तै वा भी उम्मीद तै कम थी। यो इसा मौका था जित भाजपा सरकार चूकगी अर मेरा एक्सपोर्ट बन्द कोनी कर्या। मेरी पैदावार 15 प्रतिशत कम थी पर फेर बी सरकार ने अपने मुंह लागते ब्यौपारियों का भोभा भरण की खातिर मेरा 250,000 टन का (फसल का 8 प्रतिशत) एक्सपोर्ट कर दिया। सारे देस मैं हा हा कार माचग्या। हाय गंठा! हाय गंठा! सोमपाल जी बोल्या अक गंठे के भा बधवा के किसानां नै फायदा होगा। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री बोले अक म्हारे प्राचीन ग्रन्थां मैं लिख्या सै अक प्याज खाये तै गुर्दे की पत्थरी होज्या सै ज्या करकै जनता नै प्याज नहीं खाणा चाहिये।
जून के म्हिने मैं सरकार के एक विभाग ने मेरे एक्सपोर्ट पै बैन लावण की सिफारिस बी करदी थी। फेर बाजार मार्किट दुनिया की का अपणे चहेत्यां ताहिं मजा दिवाण खातर सरकार नै कोण्या गोली या बात। सोमपाल जी के ब्यान मैं भी थोथ पाई। किसान कै भा बधण का फायदा कोण्या हुआ पर ब्यौपारी काच्ची काटगे। अर मेरी कीमत पचास पै पहोंचगी। करोड़ां करोड़ के वारे न्यारे होगे। जनता की जीभ बाहर लिकड़याई।
जित मेरी आत्मकथा नै जनता के ढीड ल्यादी उड़ै जनता नै भाजपा कै कील ठोक दी। फेर जनता ताहिं इस गंठाराम की एक अपील और सै अक जनता की ठुकाई ईबै पूरी नहीं होली सै। सब्जी मंडी नै देख कै ईब नाज मंडी बी रंग बदलती आवै सै। एक बै मुनाफा जिसके मुंह लागज्यागा फेर उसनै चैन तै कोनी बैठण देवै। पंजाब मैं जीरी की फसल बी कम होई सै। अक्तूबर मैं कुल सरकारी खरीद का 30 प्रतिशत लिया जाया करै फेर ईबकै यो कोटा घणा कम सै। ब्यौपारियां नै अपणे गोदाम भर लिये जीरी गेल्यां। क्यों भर लिये? इननै बेरा ला लिया अक इन्डोनेशिया अर बंगला देश मैं जीरी की फसल बहोत खराब गई सै। फिलीपीन की चावल की मांग घणी सै। पहलम थाइलैंड इन देशां नै चावल भेज्या करता पर ईबकै उसकी फसल की हालत बी आच्छी नहीं बतान्ते।
म्हारले देस के ब्यौपारी नै म्हारी चिन्ता कोण्या उसनै अपणे मुनाफे की चिन्ता फालतू सै ज्यां करकै चावल खरीद के गोदाम भर लिये। चावल भाजपा सरकार की आवण आले दिनां मैं ‘अग्नि परीक्षा’ लेगा। चावलां के भा मेरे भा तै भी ऊंची छलांग मारैंगे। दखे मेरे खाये बिना तै लोगां की सधगी थी पर चावलां बिना तै लोग एक दूसरे नै बुड़कम बुड़क्यां खावण लागज्यांगे।
1960 के जमाने में महंगाई का कारण था अक सूखा पड़ग्या था। पर ईब की महंगाई सै म्हारे ब्यौपारियों के मुनाफे की भूख करकै अर सरकार की नीति करकै। बस मेरा तै इतना ए कैहणा सै अक मैं जनता का था, जनता का सूं, अर जनता का रहूंगा।
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फलाणे की बहू बहोत नेक सै भाई
म्हारे हरियाणा मैं घूंघट बिना बहू की मूर्त पूरी कोण्या मानी जान्दी। पुराणे बख्तां मैं घूंघट की जकड़ बहोतै कसूती थी। यो घूंघट कद सुरू हुया, क्यों सुरू हुया इन बातां पर भी बिचार करण की जरूरत सै। मेरे हिसाब तै लुगाई नै काबू मैं राखण खातर घूंघट का सांग रच्या गया। औरत नै अपणे परिवार, अपणे गाम अर अपणे देस की तरक्की मैं फैसले करण तै रोकण खातर घूंघट का हथियार बणाया गया। 1893 मैं एक अंग्रेज नै लिख्या सै अक इस इलाके मैं घूंघट ना करण का मतलब सै अक वा औरत बदकार है, वा नैतिकता की सीमा पार करगी ज्यां करकै इसनै घर तै बाहर कर द्यो। नैतिकता मैं लपेट के घूंघट पहरा दिया म्हारे बड़े बडेरयां नै।
आज इसी बात तो कोण्या रही पर ईब बी बिना घूंघट आली बहू का नाम नंगी काढ़ दिया जा सै। बिना घूंघट अर बेसरम औरत मैं कोए फरक नहीं रैहन्ता। कई माणस तो उसनै बदमास बी समझण लागज्यां सैं। उसपै न्यों बोल मारैंगे अक रै फलान्यां की बहू तै छाती दिखान्ती हांडै सै। जै कोए औरत हिम्मत सी करकै पर्दा हटाणा बी चाहवै तै मर्द माणस छोह मैं आज्यां अर जै वा जिद करले तै उसकी पिटाई बी जम कै होज्या। बालकां अर माणसां की मौजूदगी मैं अपणे पति तै घूंघट करना, रिस्ते मैं अर उमर मैं गाम के बड्डे ठेर्यां तै घूंघट करना अर कुछ बुजरग औरतां तै घूंघट करना जरूरी मान्या जा सै।
हरियाणे मैं घर की कलह की जड़ बहू मानी जावै सै अर कै पूरी इस लुगाई जात कै यो दोष लाया जा सै। न्यों मानकै चाल्या जा सै अक इस कलह पै काबू राखण खातर बी यो घूंघट जरूरी है। एक सर्वे के हिसाब तै हरियाणा की 72 61 प्रतिशत महिला घूंघट की सिकार सैं। कमाल की बात सै अक हरियाणा मैं ना तै आर्य समाज नै अर ना पढ़े लिखे बुद्धिजीवियां नै अर ना दूसरे समाज सेवियां नै बड्डे पैमाने पै घूंघट कै खिलाफ जनअभियान चलाया। घूंघट छोटा होग्या, घूंघट ऊपर नै सरकग्या फेर घूंघट आज बी खत्म नहीं हो लिया।
घूंघट हरियाणा मैं आज्ञाकारिता का, सुद्ध चरित्र का, औरत की पवितरता का, उसकी सालीनता का एक सामाजिक पैमाना बणा कै उढ़ा दिया गया। लुगाइयां कै बी इसकी चतुराई अर इसका काइयांपन समझ मैं नहीं आया। लुगाइयां भी घूंघट के ये हे मतलब मान बैठी अर पल्ले कै गांठ मारली। पढ़ी लिखी औरत बी गाम मैं जावैंगी तो पर्दा करैंगी अक सासू उसकी बड़ाई करै अक देख इतना पढ़ लिख कै बी पर्दा करै। जिब सुसरा, ज्येठ के और कोए गाम का माणस सहर मैं आज्या तै भी पर्दा करै। जो पर्दा करैगी उसने गाम आले कैहंगे - फलाणे की बहू बहोत नेक सै भाई। गाम मैं रैहवण आली इसी औरतों नै कोए साबासी कोण्या देवै। गाम मैं तै मान के चाल्या जा सै अक बहू पर्दा करै ए करैगी।
पढ़े लिख्यां नै बी इसका विरोध क्यों ना करया या सोच्चण की बात तै सै ए। महिला की लिहाज (मोडैस्टी) उसकी आंख की सरम मानी जावै सै अर ज्यां करकै घूंघट तारकै बात करण की बात तै दूर रही उस ताहिं तै माणस तै आंख तै आंख मिलाकै बात करण की बी इजाजत कोण्या। और तै और चपाड़ के धोरे कै जागी तो बी घूंघट करैगी अर चपाड़ मैं चढ़ण की बी इजाजत कोण्या। कोए मरज्या तै उसकी अर्थी गेल्यां समसान घाट मैं बी जाण की मनाही सै। घूंघट की जागां ढाठा मारण की छूट बी बालक चिलक आली बड्डी उम्र की लुगाइयां खात्तर सै। घूंघट इस बात नै तय करदे सै अक घर मैं, गाम मैं, अर बाहर किसकी बात ऊपर रैहगी। घूंघट औरत कै बेड़ी सै। साफ दिखण लागरी सै अक उसके हक उसनै ना मिल सकैं ज्यां तै बहू ताहिं घूंघट पहरा दिया। यो इतना ए गुणकारी सै तै बतौर लड़की या बाहन के उस ताहिं घूंघट क्यों नहीं पहराया गया? उसके घूंघट की बेड़ी काटण की जागां उसनै घर मैं कैद करण की त्यारी होण लागरी सैं। बचियो! किमै करियो!!
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सांच्ची बात कटारी लाग्गै
हिन्दुओं के इतिहास मैं राम का बहोत ऊचा स्थान रहया सै। आजकाल भी राम राज्य का खूबै जिकरा रहवै सै। वो राम राज्य कीसा होगा जिसमैं एक शूद्र शम्बूक का बस योहे अपराध था अक ओ धर्म कमावण की खात्तर तपस्या करण लागरया था अर इस कारण राम जीसे अवतार राजा नै उसकी नाड़ काट ली। ओ राम राज्य कीसा रहया होगा जिसमैं किसे आदमी के कहे तै राम नै गर्भवती सीता ताहिं जंगल मैं छोड़ दिया? राम राज्य मैं दास दासियां का कति तोड़ा नहीं था। ठारवीं और उन्नीसवीं शताब्दी ताहिं दुनिया मैं दास प्रथा कितनी क्रूरता के साथ प्रचलित रही सै इसका हमनै पूरा ग्यान सै। उन बख्तां मैं (राम राज मैं) स्वेच्छा पूर्वक अपने आप नै अर अपनी संतान नै सिर्फ बेच्या ए नहीं जाया करता। बल्कि समुद्र अर बड्डी नदियां के कांठ्यां पै बसे गामां मैं तो आदमियां नै पकड़ कै ले जावण की खात्तर बाकायदा हमले हुया करदे। डाकू गाम पै छापा मारया करते अर धन-माल की साथ-साथ उड़े के काम करण जोगे आदमियां नै पाकड़ के ले जाया करते। हर साल इस तरियां के गुलाम पोर्त्तुगीज पकड़ कै बर्मा के अराकन देश मैं बेच्या करते। राम राज्य मैं जै इस ढाल की लूट अर डाकेबाजी नहीं बी होगी तो भी दास प्रथा तो जरूरै थी। मिथिला मैं ईब बी कितने ए घरां मैं वे कागज सैं जिनमैं बहिया (दास) की खरीद-फरोख्त दर्ज सै। दरभंगा जिले के तरौनी गांम मैं दिगंबर झा के परदादा नै कुल्ली मंडर के दादा को किसे दूसरे मालिक तैं खरीदया था अर दिगंबर झा के दादा नै पचास रुपइये के फायदे के साथ ओ आगै बेच दिया। इैबै तीन पीढ़ी पहलम अंग्रेजी राज तक मैं या प्रथा मौजूद थी। साच्ये धार्मिक हिंदू हों चाहे मुसलमान, दोनूं जब अपनी मनुस्मृतियों और हदीसों मैं दासां के ऊपर मालिकां के हक के बारे पढ़ैं सैं तो उनके मुंह मैं पाणी आये बिना नहीं रैहन्ता।
आवां राम राज्य की दास प्रथा की एक झांकी देखां। एक साधारण सा बाजार सै जिसमैं निखालस दास-दासियां की बिक्री होवै सै। लाखां पेडां का बाग सै। खाण-पीण की दुकान सजरी सैं। भेड़-बकरियों अर शिकार करे जानवरां तै न्यारा उच्च वर्ग के माणसां के भोजन की खात्तर मांस बेच्चा जावण लागरया सै। जागां-जागां पै सफेद दाढ़ी आले ऋषि अर दूसरे ब्राह्मण, क्षत्रिय अर वैश्य अपणे पड़ाव घालें पड़े सैं। कोए नया दास कै दासी खरीदण आया सै। किसे के दिन बिगड़ गे ज्यां करकै ओ अपणे दास-दासी बेच कै कुछ पीस्से का जुगाड़ करण आरया सै। कुछ पुराने दास बेच कै नये दास लेवण आरे सैं। म्हिने पहलम दास-दासियां की सेवा शुरू होज्या सै अक बढ़िया दामां मैं बिक ज्यावैं। उनके सफेद बाल काले रंग दिये। बढ़िया लत्ते कपड़े पहरा के बिठावैं सैं। कितै-कितै सौ-सौ दास सैं कितै एकाध दास आले मालिक सैं। खरीदण आले कहवैं सैं, ईबकै तो बाजार बहुत म्हंगा गया। पाछले साल अठारा बरस की हट्टी-कट्टी सुंदर दासी दस रुपइए मैं मिल जाया करती, ईबकै तो तीस मैं बी हाथ कोन्या धरण देन्ते। दान्त ताहिं देख्या करदे। कोए चालीस बरस की नै बीस बरस की बतावै। कोए कहवै म्हंगी कित सै। महाराज रामचंद्र के यज्ञ मैं दक्षिणा मैं हरेक ऋषि ताहिं एक-एक तरुण दासी दी जावैं सैं। कितनी दासियां के बालक उनतै कोसां दूर चाले जावैं सैं, कितनी दासियां के प्रेमी उनतै बिछड़ ज्यावैं सैं इसकी उड़ै किसनै चिंता नहीं थी। यो सै राम राज्य मैं आदमी के एक भाग का जीवन। अर यो सै राम राज्य मैं मरद-औरत का मोल। इसे पर हमनै नाज सै। ईब ताहिं तो हमनै आदमी की ढालां रैहना भी नहीं सीख लिया सै। पास पड़ौस मैं सफाई की अवहेलना मैं तो हम जानवरां तै भी गये बीते सां। म्हारे गामां जीसे गंदे गाम दुनिया के किसे देश मैं दीवा लेकै बी टोहे कोन्या पावैं। या म्हारे गांम की ए खूबी सै अक एक आन्धा माणस बी एक मील पहलमै म्हारे गाम नै पिछाण लेवै सै क्योंकि उसकी नाक बदबू नै पिछाण ले सै। तो म्हारा इतिहास कई ढाल की यादां तै भरया पड़या सै। हमनै देखना पड़ैगा अक कौन सी आज के हिसाब मैं ठीक बात सै अर कौन सी गलत सै। अन्धभगत हो कै अपने पुराने इतिहास की झोल्ली भरकै काम कोन्या चालै। आई किमैं समझ मैं?
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नया साल किसा हो
इस बात मैं कोए शक की गुंजाइश कोन्या अक बीसवीं सदी मैं विज्ञान नै ताबड़तोड़ तरक्की करली। फेर आज महत्वपूर्ण सवाल यौ सै अक इस दुनिया के दुख-दर्द कम करण मैं कितना काम आया विज्ञान? उल्टा यू दुख-दर्द बधा तो नहीं दिया इस विज्ञान नै? आज दुनिया के 100 करोड़ के लगभग लोग (महिला-पुरुष) बुनियादी जरूरतों ज्यूकर रोटी, कपड़ा अर मकान तै महरूम सैं। आए साल दुनिया के लगभग 80 लाख बालकां की मौत, भूख, कुपोषण, पीने के साफ पानी की कमी, उचित आवास की कमी बख्त पै मामूली चिकित्सा सेवा ना मिलने के कारण होज्या सै। जो ये परिवार इतने गरीब न होन्ते अर उनकी बुनियादी जरूरतें पूर हो जान्ती तो इन मौतां पर काबू पाया जा सकै था। आई किमै समझ मैं अक ‘किस्मत म्हारी’ कैहकै पार बोलोगे।
आए साल मैं लगभग 4 लाख महिलावां की मृत्यु बालक होवण के बख्त होज्या सै। कारण सै अक ठीक खाणा नहीं, खून की कमी होज्या अर जच्चा-बच्चा को वांछित स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिलती। फेर के कर्या जा? इसपै ढंग तै सोच्या जा आण आले नये साल मैं अक बेहतर दुनिया क्यूकर बनाई जा। या बेहतर दुनिया क्यूकर बनाई जा सकै सै? दुनिया मैं सारे महिला-पुरुषां की जरूरतां नै पूरा करण की खातर प्रतिवर्ष 40 अरब डालर और चाहिए। फेर किततैं आवै इतना पीस्सा? सोच्ची सै कदे अक ताश खेलण तै फुरसत कोन्या अर कै इन छुटभैये सफेदपोशां के बस्ते ठावण के बोझ तलै सांस चढ़े रहवैं सैं? बेरा सै केवल यूरोप मैं शराब पर एक साल मैं 105 अरब डालर खर्च होज्यां सैं। म्हारे देश के आंकड़े तो कोन्या फेर हरियाणा मैं दारू तै घर तो कोए बच नहीं रह्या फेर कोए माणस बचर्या हो तै बैरा ना? तो फेर के कर्या जा? पहलम तो पूरी समस्या आच्छे ढाल जान ली जावै अर फेर सोच्या जावै अक हम के चाहवां सां अर के करना चाहिए हमनै? हम नहीं चाहते किसे की आजीविका खोसना।
एक इन्सान का दूसरे इन्सान को लूटणा गल्त सै। दौलत की खातर दरिद्र का कूटणा गल्त सै। लूटमान अत्याचार हम कोन्या चाहते। हां, हम जरूर चाहवां सां मजदूर का मुस्कराना, किसानां का अपनी फसल देख कै खिलजाणा, हर झोंपड़ी, हर गांव मैं बालकां का खिलखिलाणा, इस नाबराबरी का दुनिया तै खात्मा जरूर करना चाहवां सां। हम कोन्या चाहते नये साल मैं ये जातिभेद अर रंगभेद। कोन्या चाहिये बेटियों के जन्म पै प्रकट होन्ता दुख-खेद, इस तरियां के भेद भाव जो करदें समाज मैं छेद, इन्सानियत का इसा अपमान कोन्या चाहिये। हां, आज हमनै चाहिये उनकी समानता जो तलछट मैं पड़े सैं, बेटी नै मौका मिलै अर वा तय कर सकै हर रास्ता, शूद्र भी शिखर छू सकै उसनै मिलै या मान्यता, काले रंग नै कृष्ण आला सम्मान मिलै या हम चाहवां सां। हम नहीं चाहते पड़ौसियों तैं रूठणा, एक ही परिवार मैं दीवारों का खींचणा, मजहबों के नाम पर किसी के घरों को रोंदणा, किसी के दिल नै तोड़णा हम कोन्या चाहन्दे।
हां, हम जरूर चाहवां सां टूटे दिलां नै जोड़णा, बहम अर बैर की हर दीवार नै तोड़णा, भटके औड़ हर कारवां नै प्यार की गली मैं मोड़णा, भजनां मैं कव्वाली की मिठास घोलणा चाहवां सां। हम नहीं चाहन्दे अक घरां पै गिरै कोए कहर, देखो हवा पानी मैं फैल रहे कितने जहर, बीमारियों, आपदाओं की या बढ़ती लहर, आबो हवा का यो प्रदूषण कोन्या चाहिये। हां हम जरूर चाहवां सां कोयलां का कूकणा, मृग शावक का विचरना वन बालिका तै खेलणा, चरवाहों की बांसुरी पै टहनियां का झूमणा, मुक्त नदी की खेल ठिठोली देखणा हम चाहवां सां। हम नहीं चाहन्दे मूक प्राणियों पै अत्याचार, विलासिता इसी करे जो पशुओं मैं हाहाकार, वो कैसा विकास जहां इन्सानों से हो मारामार, ताकत का दुरुपयोग हमनै कोनी चाहिये। हम नहीं चाहन्दे कि युद्ध तै हो ईब विनाश, अणु बम की गर्जना जो पुकारै बस नाश-नाश, धरती पै सन्नाटा हो अर रोवै आकास, ना ना इसी तबाही नहीं चाहन्दे। एक छोटा सा चमन हो, हर इंसान को अमन हो, बहै जड़ै सच्चाई का पवन हो, इसी दुनिया हम चाहवां। नया साल मुबारक।
7----
या के बणी
दिल्ली मैं इन दिनां मैं खूब उठा-पटक होई सै। भाजपा नै सारे नियम, कायदे कानून, सिद्धान्त ताक पै धर दिये अपणी कुर्सी बचावण की खात्तर। तलै ए तलै कई पार्टियां मैं पाड़ ला लिया। पाड़ लावण के तरीके भी सारे ए इस्तेमाल कर के गेर दिये। साम दाम दण्ड भेद सब क्यांएका सहारा लिया ज्याहे तैं तै वोट पड़ण तै पहलम् ताहिं भाजपा न्यों दंगालै थी अक वोटां का गणित उसके हक मैं सै अर घणखरे लोगां कै या बात जंचै भी थी अक एम पी खरीद खराद कै भाजपा अपणी गिणती पूरी कर लेगी।
म्हारले नेता जी भी बहोतै स्याणे बणकै दिखावैं थे इबकै फेर भाजपा नै बता दिया अक तम डाल डाल सो तै हम पात-पात सां। पहलम तै म्हारे नेता जी नै भाजपा तै समर्थन उल्टा लेवण का सांग करया अक क्यूकरै ममता कै जयललिता की ढालां उसके भी भा बध ज्यां। कई बै घर मैं कोए माणस रूस ज्या अर रोटी ना खावै अर घरके उस नै मनावैं नहीं तै दो बखत पास करने मुश्किल हो जाया करैं इसे माणस नै। वाहे बणगी म्हारे नेता जी गेल्यां अर हार फिर कै अखबारां मैं खबर दी अक समर्थन उल्टा ले लिया फेर जै कोए करड़ा बखत आया तै वोट हम भाजपा ताहिं ए देवांगे। नेता जी तै कोए बूझै अक जै न्योंए करनी थी तै समर्थन उल्टा क्यों लिया था? खैर आड़े ताहिं बी देखी गई। हरियाणे की जनता और थोड़ी फालतू उदास होगी। फेर यो विश्वास मत थोंप दिया जयललिता नै भाजपा पै तै म्हारे नेता जी का सारा कुण्बा कुकाया अक ईब बेरा पड़वा द्यांगे भाजपा नै अक तीन च्यार एम पी आली पार्टियां की कितनी औकात सै। टी.वी. मैं अखबारां मैं, दिल्ली मैं, चंडीगढ़ मैं सारे कै काटकड़ तार दिया अक हम भाजपा के विश्वास मत के विरोध मैं मतदान करांगे। टी.वी. आल्यां नै दो दो तीन-तीन बै बूझया अक यो आखिरी फैसला सै थारा? म्हारा नेता बोल्या अक यो पक्का फैंसला सै म्हारा। हरियाणे की जनता कै थोड़ा सांस में सांस आया अक नेता नै म्हारी लाज का थोड़ा घणा ख्याल तै ले आखिर मैं करे लिया। आज के जमाने मैं कूण लिहाज शर्म जिसी चीजां का ख्याल राखै सै ऊंतै पर म्हारे नेता जी की मेहरबानी अक उसनै म्हारी लिहाज शर्म राखण की सोची।
फेर खुराना जी पहोंचे म्हारे नेता जी धोरै। बेरा ना कूणसी दुखती रग का बेरा सै खुराना साहब नै अक म्हारे नेता तै बातचीत करण की जिम्मेवारी उसे ताहिं दी भाजपा नै। फेर किमै ढीले से पड़ते दीखे म्हारे नेता जी। आगले दिन फेर किमै करड़े से होगे। लोगां नै फेर राहत की सांस ली।
चाणचक दे सी प्रकाश सिंह बादल अर उसके छोरे कै बीच मैं बैठकै म्हारे नेता जी ने फेर पास्सा पलट लिया अक हम भाजपा के प्रस्ताव के हक मैं वोट गेरांगे। किसान नेता प्रधानमंत्री बणावण की सोचां थे ओ बणता कोण्या दिखाई दिया ज्यां करकै भाजपा का समर्थन करांगे। कोए बूझणिया हो अक वाजपेई नै किसानां की घणी झोली भरदी जो म्हारे नेता जी उसकी मदद मैं तिसाये होगे? बखत की करनी अक भाजपा फेर बी मूंधे मुंह पड़ी जाकै। सबतै पहलम म्हारे ताऊ जी के बख्ता मैं एक दो एम एल ऐ करकै यो आया राम गया राम का सेहरा म्हारे हरियाणा के सिर पै बंध्धा था। फेर भजनलाल जी तैं पूरी ए पाल्टी नै लेकै कांग्रेस मैं कूद गे थे। इन सारे सौद्यां मैं एक खास बात थी अक सौदेबाज नेता मगर बलि के बकरे थे उनके पाछै लागे औड़ एम.एल.ए.। पर इबकी बरियां एक औरै नजारा साहमी आया सै अर ओ सै अक नेता नै छोडकै उसके एम.पी. भाजगे। क्यूं भाजगे? कितने मैं भाजगे? किसके कहे तैं भाजगे? के सोच कै भाजगे? इन पै न्यारी-न्यारी अटकल लाई जावण लागरी सैं। फेर एक बात तै साफ होगी अक वे भाजगे थे अर म्हारे नेता जी नै तै बस अपनी लाज बचावण खातर समर्थन का दिखवाया ए कर्या, समर्थन तै भीतरै-भीतर हो लिया था। ईब हटकै फेर यूनाइटिड फ्रंट की बात कही सै। फेर कोए यकीन ना करै। हरियाणा की जनता मायूस बहोत होई सै। जो माणस म्हारे नेता के म्हां कै म्हारे ताऊ नै देख्या करते उनमैं तै और बी निराशा आई सै। इस निराशा के कारण जनता और कोए नेता टोहण की सोचै सै फेर कोए ठह्या सा नेता ए ना दीखता हरियाणे की जनता नै। या जनता करै तो के करै?
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कम्पीटीशन बेशर्मी का
कम्पीटीशन तै बड़े-बड़े देखे अर सुणे पर इस बबाल का नाम कदे नहीं सुण्या था। रागनी कम्पीटीशन, ब्यूटी कम्पीटीशन, पी.एम.टी. कम्पीटीशन तै खूब मशहूर हुए अर इन कम्पीटीशनां की देखा-देखी म्हारे देश के नेतावां नै बेशर्मी का कम्पीटीशन बी शुरू कर दिया दिल्ली मैं। टीवी पै इसका सीधा प्रसारण होवै सै अर जनता बिचारी नै चुपचाप हो कै देखणा पड़रया सै। रागनी कम्पीटीशन मैं तै कोए रागनी आच्छी ना लागै तै हू हू करकै गावणियां नै जनता बिठा बी दे, पर इन फूफ्या का के करै? बेशर्मी के ट्रेलर तै पहलड़े नेता बी दिखा दिया करते कदे कदे पर वे शर्मा बी तावले से जाया करते। फेर इस एक साल मैं ईब आली सरकार नै तै सारी ए शर्मोहया खूंटी पै इतनी ऊंची टांग दी अक कोए तारना चाहवै तो भी नहीं तार सकदा। इसनै घणे कसूते अवतार दिये सैं। तखत की गेल्यां इन अवतारां के नाम बी बदल ज्यां सैं। किसे बख्तां मैं मतलब त्रेता, द्वापर कै सतयुग मैं जिन ताहिं अवतार कह्या जाया करता उनै ताहिं इस कलयुग मैं नेता कै मंत्री कह्या जा सै।
पहली हद तै इसे मैं होली अक अटल जी की हर बखत हिलती रहवण आली सरकार ताहिं बड़ी बेशर्मी तै स्थाई सरकार कह्या जान्ता रहया पूरे साल अर इब मूंधे मूंह पड़े पाछै बी काटकड़ तार कै गेर दिया इस स्थायित्व पै। ईब ताहिं के सबतै निकम्मे प्रधानमंत्री ताहिं सबतै काम्मल प्रधानमंत्री बतावण की बेशर्मी अर देश का भट्ठा बिठावण आली सरकार ताहिं देश नै मजबूत करण आली सरकार का तमगा देवण की बेशर्मी। या सरकार पाछे सी कितनी बेशर्मी तै प्याज नै चाब गी थी अर एक बी आंसू नहीं आया था। उस पाछै कितनी बेशर्मी तै पेटैंट बिल पास कराया अर उसतै भी घणी बेशर्मी गेल्यां प्रसार भारती का भट्ठा बठा दिया। जितनी बेशर्मी तै बिहार सरकार गिराई उसतै घणी बेशर्मी तै वाह बहाल करदी। सुन्दर सिंह भंडारी हटाया जागा का बयान दाग दिया अर फेर बोले अक कोनी हटाया जावै अर आखिर मैं उसका तबादला कर दिया। वाह रै आडवाणी साहब थारा बेशर्मी मैं कोए मुकाबला कोण्या। इस बेशर्मी के कम्पीटीशन मैं जार्ज साहब एक दो राउण्ड मैं ढीले रैहगे तै उननै भी कमर कस ली अर सबतै आगै रहवण की खातर एडमिरल विष्णु भागवत कै जा खस्या अर ओ बर्खास्त कर दिया। सिलसिला जारी सै। सरकार पड़े पाछै बी जारी सै अर विपक्ष की जै सरकार बनगी तो भी जारी रहवैगा। जै या सरकार हटकै आज्या तै इसका नाम बेशर्म जयते होणा चाहिए। इसका नारा जय जवान, जय किसान जय विज्ञान जीसे थोथे नारे की जगां कोए ठोस नारा जय बेईमान, होणा चाहिए।
ईसा लागै सै अक जै या सरकार हटकै आगी तै सारे कै बेशर्मी के कम्पीटीशन शुरू करवा देगी अर इन बेशर्मां ताहिं पदमश्री अर पद्मभूषण के खिताब दिया करैगी। फेर तै पाले, सतबीर, बाली, रणबीर, राजेंद्र खरकिया, सरिता चौधरी ये सबै भूखे मर्या करैंगे।
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कुत्ता अर माणस
मेरे याड़ी की कार जिब कोठी मैं बड़ली तै उतरती हाणां मनै बूझै लिया, ‘‘कुत्ता तै नहीं पालरे सैं?’’
मेरा याड़ी बोल्या, ‘‘के बात सै? इतना डर क्यों लागै सै कुत्ते तैं?’’ मनैं अपणी बात ऊपर राखण ताहिं जवाब दिया, ‘‘आदमी की शक्ल मैं कुत्ते तै डर कोण्या लागता मनै। उसतै तै मनै निबटना आवै सै। पर साच माच के नसली कुत्ते तै बहोत डर लागै सै।’’
असल मैं कुत्त्यां आले घर मनै आच्छे कोण्या लागदे। कुत्ते आले घरां मैं सबतै पहलम कुत्ता स्वागत करैगा भों भों करकै। तुड़ाइया कर देगा छाती पै चढ़ण खातर। घरक्यां तै ‘राम रमी’ तै हुई ना होन्ती फेर कुत्ता गाली देवण लागज्या सै।’’ आया स्साला बटेऊ। सिफारिस करवानी होगी कै रिश्वत देणी होगी। भाजज्या आड़े तै।’’ इसा लागैगा जणों भों भों करकै ओ नसली कुत्ता म्हारे भीतर की बात जाण कै हमनै नसीहत करण लागरया हो। मनै तो कुत्ते के काटण का सिंह के टपके तै भी फालतू डर लागै सै। असल मैं डर सै उन चौदा टीक्यां का जो डाक्टर पेट मैं घुसेड़ै सै। वरना तै कुत्ते के काटण तै कोण डरै सै चाहे दो बर बुड़का भर ले कुत्ता तै। आजकाल पेट की जागां बांह मैं लागण आले टीके आगे। पर पेट आले टीके तै मुफ्त लाग्या करते। पर ये बांह आले टीके तै तीन सौ रुपइयां का एक लागै सै अर सात लुआणे पड़ैं सैं। यो टीका तै पूरे कुण्बे पै मार करै सै।
फेर एक बात देखण मैं आवै सै अक कुछ माणस तै कुत्ते तै भी जहरीले हों सैं। एक माणस कै कुत्ते नै दांत गड़ा दिये। दूसरा बोल्या, ‘‘बस मिर्च बान्ध द्यो इसकै। बाकी कुछ ना होवै। उस कुत्ते की सम्भाल करो, इसका कुछ नहीं बिगड़ैगा। टीके लुआणे सैं तै उस कुत्ते कै लुआओ। कई बै कइयां के घरां के दरवाज्यां पै लिख्या पावैगा अक कुत्यां तै सावधान। ईब बेरा ना उन घरां मैं माणस रहैं सैं अक निरे कुत्ते ए रहवैं सैं? यो सवाल खामैखा का सवाल कोण्या। कोए कोए माणस तै कुत्ते तै बी गुजरया हो सै। किसे विचारक नै लिख्या सै अक जै थाम किसे कुत्ते नै रोटी खवा द्यो तै ओ थामनै कोनी काटै। माणस मैं अर कुत्ते मैं योहे असली फर्क सै। माणस सब किमै खाकै बी कितने बुड़के भरदे इसका कोए भरोसा नहीं।
म्हारे पड़ौस मैं एक साहब सैं उनका सै झबरू कुत्ता। ऊंची कद काठी, काला भूरा रंग, कान खड़े, लाम्बी पूंज। उस ताहिं तीन किलो दूध रोज का प्याया जा सै। म्हारे घरां हम पांच माणस सां ढाई किलो दूध हांग्या पुगै सै। 50-60 करोड़ माणस तै म्हारे देस मैं इसे बी होंगे जिनका ब्यौंत एक किलो रोज का दूध लेवण का भी कोण्या। उस अलसैसन कुत्ते ताहिं हफ्ते मैं तीन किलो मीट ख्वाया जा सै। म्हारे घर मैं तै आज ताहिं मीट बण्या ए नहीं सै बस कितै पार्टियां मैं दां लाग ज्या तै मुर्गे की एकाध टांग थ्याज्या सै। कम तै कम 70-80 करोड़ माणस तै इसे होंगे जिननै मुर्गी खाकै देखण का मौका ए ना मिल्या हो।
एक बै यो अलसैसन बीमार होग्या तै सारे कुण्बे के पासने पाटरे कदे इस डाक्टर नै बुला अर कदे उस डाक्टर नै बुला। कुत्ते के खाज की बीमारी होगी थी। बड़ी मुश्किल तै काबू मैं आई। दसियां हजार का बिल बैठ ग्या। डांगरां आला डाक्टर बी आण्डी ए था कोए। कुत्ते कै खाज किसके तै लागी इसकी खोज करण लागग्या शेर। पन्दरा दिन गाल दिये खोज करण मैं। फेर आखिर मैं बेरा लाग्या अक घर के मालिक कै खाज होरी थी उसके तै कुत्ते कै बी लागगी। कई डाक्टरां का बड़ा बढ़िया काम चालरया सै इन पालतू कुत्त्यां के कारण। कई लोगां नै तै कई नसली कुत्तिया पाल राखी सैं। उनतै बढ़िया नसल के पिल्ले बणावैं सैं अर पांच तै लेकै दस हजार ताहिं बेचैं सैं एक पिल्ला। मांग आल्यां की लाइनै टूट कै नहीं देन्ती। या न्यारी बात सै अक जो माणस इन कुत्त्यां की दिन रात सेवा करै सै उस ताहिं बारह सौ रुपइये म्हिने के भी कोण्या मिलते। साल मैं मालिक की कमाई यो करवादे एक लाख तै ऊपर अर इसनै साल के दस हजार (एक कुत्ता) भी नहीं मिलते।
आज के जमाने मैं यो कुत्ते पालण का शौक़ सबके बसका कोण्या। किसके बसका सै या दुनिया आच्छी ढाल जाणै सै। एक कुत्ते पालण का शौक सै अर एक कुत्ता पालण की मजबूरी सै। इन दोनूं बातां मैं जमीन आसमान का अन्तर हो सै। जिस दिन इस अन्तर की असलीयत का जनता नै बेरा लाग ज्यागा उस दिन चाला ए पाटैगा।
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फायर पै फायर
टीवी मैं देख्या अक सिवसेना के चेले चपट्यां ने बम्बई के दो सिनेमा घरां मैं चलती फिल्म ‘फायर’ के विरोध मैं सिनेमा हाल तोड़ फोड़ दिये अर फायर के हवालै कर दिये। उनकी कार्यकर्ता न्यों बोली अक तोड़ फोड़ हमनै कोण्या करी, या तोड़ फोड़ तै फिल्म देखणियां नै फिल्म ना देखण देवण के बदले मैं करी सै। आगलै ए दिन दिल्ली मैं सांग रच दिया इनके चेले चेलियां नै अर टीवी पै दिखाया अक ये सारे के सारे सूड़यां मंडरे थे सीसे तोड़ण कै अर फिल्म देखणियां तै बाटै देखते रैहगे अक कद म्हारी बी बारी आवै अर हम सीसे तोड़ां। इस फिल्म के सही कै गल्त होण पै बहस हो सकै सै। हो सकै सै इसमैं चुने गए मसले के बारे मैं हम सहमत ना होवां। पर इसे नाज्जुक मुद्दे नै लेकै लोगों की भावनावां गेल्यां यो पाखण्ड आच्छी बात कोणया। जिब सिव सेना आल्यां नै अर उनके नेड़े धोरै आल्यां नै बम्बी मैं माइकल जैक्शन का प्रोग्राम करवाया जिब कित जारी थी या संस्कृति? जिब इनकी पुत्रवधु घटिया नाच गान्यां अर ऊघाड़ेपन आली फिल्म बणावै जिब इनकी या संस्कृति कित बूम्बले खावण चाली जाया करै? जिब रूप कंवर ताहिं जबरी चिता मैं बिठा दिया जा जिब या संस्कृति ‘सती’ की हिम्मत मैं दिल धौली काटकड़ तार कै धरदे तै सही माणस इस संस्कृति के बारे मैं के सोचैगा? दहेज नै अर दहेज हत्यावां नै ये ‘फायर’ पै फायर करणिया ठीक बतावै तो के समझया जा? ये दुनिया भर की मस्त राम की पौण्डी अर कोक शास्त्र सारे हिन्दुस्तान के बस अड्यां पै अटे पड़े रहवैं इसपै कद सी ध्यान ज्यागा?
दूसरी बात हिन्दू संस्कृति की सै तै या हिन्दुस्तान की इकलौती संस्कृति कोण्या। हिन्दुस्तान की संस्कृति तै 2500 हजार साल पुरानी संस्कृति सै। जिस संस्कृति का ये सिव सेना आले अर इनके भाई भतीज टोकरा ठायें हांडैं सैं उसका अर म्हारी प्राचीन संस्कृति का कोए ढब नहीं दिखता। म्हारी पुरानी देस की सांस्कृतिक विरासत मैं वेद बी सैं, उसतै पहलम की संस्कृति बी सै, इसमैं बुद्ध बी सै, इसमैं गुरू नानक बी सै, इसमैं कबीर सै, रैदास सै, रहमान सै, इसमैं जैनी बी सै, इसमैं नास्तिक बी सैं अर आस्तिक बी सैं। इस संस्कृति का इतिहास गवाह सै अक इसमैं जिसनै बी हिटलरी अन्दाज अपणाया उसनै मुंह की खाणी पड़ी।
ईब सवाल यो सै अक जै सिव सेना की भीड़ी समझदानी के नजरिये तै बी देखां अर सही नजरिये तै बी देखां तै बम्बी मैं बाकी जितनी फिल्म बणैं सै तै वे के सारी की सारी इस ‘सो काल्ड’ संस्कृति मैं फिट बैठें सैं? अर फायर फिल्म नै रोकण का यो दहसत भरया, गुण्डई अन्दाज तै हिन्दुस्तान मैं पंजाब के उग्रवादियां की कंपकंपी चढ़ावण आली याद ताजा करवादे सै। उननै भी इस संस्कृति की इसी तिसी करण मैं कसर नहीं घाली। एक कान्हीं तै पश्चिमी संस्कृति नै गाल दे कै फरमान जारी कर दिया अक कोए बी छोरी स्कूलां तैं पीली चुन्नी तै न्यारी कोए चुन्नी नहीं औढैगी। एक स्कूल की हैडमास्टरनी नै इसका विरोध करया तै उसकै गोली मारदी अर दूसरे कान्ही बेरा ना कितनी छोयिां की इज्जत खराब करी थी उसनै। ये ‘फायर’ पै फायर करणिया बी जिब ब्यूटी कम्पीटीसन करवावैं अर माइकल जैक्शन हर नै न्यौतैं तै दूसरी बोली बोलैं अर ईब दूसरी बोलैं सैं।
जनता ईब स्याणी होरी सै अर वा ईसी चालां नै खूब समझण लागली सै। इसे पाखण्ड बहोत देख लिये जनता नै। जनता का सवाल सै अब जिब बम्बी की आधी आबादी फुटपाथां मैं सोवै सै तै इस संस्कृति नै मासा भर भी सरम क्यों नहीं आन्ती? ये रोज धड़ाधड़ कत्ल होण लागरे बम्बी मैं तै या संस्कृति चुप क्यों रहवै सै? जिब बम्बी मैं मुसलमानां पै दंगई हमले करैं अर उननै मौत कै घाट तारदें तै या संस्कृति माणस मारण के फतवे क्यों देवै सै? हां अर इनके हितैसी जैन साहब बताये उननै एक चैनल चलाया था जिसपै घणी अस्लील फिल्म रात नै दिखाई जाया करती तै ये संस्कृति के ठेकेदार न्यों कहया करते अक वे ऊघाड़ी फिल्म तै जिब दिखाई जावैं सै जिब लोग बाग सोले सैं। बहोत हो लिया इस तरां का खिलवाड़ भारत की संस्कृति गेल्यां। म्हारा अपसंस्कृति तै क्यूकर छुटकारा हो? क्यूकर के चाल्या जा उस राह पै? ये लाम्बे मसले सैं। इनपै खूब बहस होनी चाहिये पर एक बात लाजमी सै अक जिब ताहिं देस में ‘ब्लैक मनी’ का बोल बोला सै जिब ताहिं ‘काली संस्कृति’ ‘अपसंस्कृति’ इसनै किमै कहल्यो या रहवैगी। धौली संस्कृति मतलब (‘व्हाइट मनी’) नै ‘काली संस्कृति’ का गुलाम बणकै उसका तलहड्डू बणकै रैहणा पड़ैगा। ‘ब्लैक मनी’ की भ्यां क्यूकर बोलै इसपै फेर कदे सही।
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जात लुगाई की
दादा लख्मी चन्द बरगा सांगी कोए एकाधै और होतै हो। मीरा बाई का सांग, नौटंकी, पदमावत, हीरामल जमाल, राजा भोज, शरण दे, मेनका शकुन्तला, चन्द किरण, ज्यानी चोर, बीजा सौरठ, सुलतान निहालदे, गोपीचन्द, चीर पर्व, कीचक पर्व, अर और भी कई सांग लिखे अर गाये। उनकी गायकी, उनकी लय सुर की पकड़ बहुत ही मजबूत थी। मगर औरत का स्थान उनके सांगों में क्या था इसका अध्ययन के बेरा आज ताहिं नहीं हो लिया। मेरे बरगा अनाड़ी इस विषय गेल्यां छेड़छयाड़ करदा बी आच्छा कोण्या लागदा। फेर काची पाकी शुरूआत तै इतने जरूरी विषय पै होणी ए चाहिए। मनै बेरा सै दादा लख्मी के भगतां कै इसा विश्लेषण गलै कोण्या उतरै। म्हारा मतलब दादा लख्मी के हुनर की नामोशी करना कती नहीं सै फेर बी इसका विश्लेषण तै होणा ए चाहिए। पंडित जी का एक सांग सै ‘नौटंकी’। राजा गजेसिंह के दो छोरे थे भूपसिंह अर फूलसिंह। फूलसिंह छोटा है उसका ब्याह नहीं हो लिया। भूपसिंह का दोस्त सै कुन्दन सेठ। कुन्दन सेठ अर भूपसिंह की घरआली आपस में बतलाई। फूलसिंह के ब्याह की खातर भूपसिंह की पत्नी फूलसिंह नै उकसावै सै। उसकी बात सुणकै फूलसिंह नाराज होग्या सै। औ सारी बात भूपसिंह ताहिं बतावै सै। भूपसिंह फेर फूलसिंह ताहिं के कहवै सै भला -
तेरी भाभी लागै सै नेग में बहोड़िया भाई की। टेक
हम दो भाई मां जाए प्यारे, तेरे तैं के काम करे सैं न्यारे,
चाल घरां गुण अवगुण छाटैंगे, सांठा जिन्दगी का सांठैंगे
तूं घरा चाल नाड़ काटैंगे, वा पलरी ढाल जमाई की
जै कोए पहल्या अवसर चूक्या हो, बोल तेरी छाती मैं दुख्या हो,
जै ब्याह शादी का भूूखा हो, करूं तदबीर सगाई की।
लख्मीचन्द छन्द नै गाले, कुछ भाई की तरफ निंघाले
जै तूं भूखा हो तै खाले, या रोटी खांड मलाई की।
इस रागनी मैं भूपसिंह फूलसिंह ने समझावै सै अक तनै अपणी भाभी कै दो थप्पड़ क्यूं न जड़ दिये। लुगाई की भी किमै जात हो सै के। तूं घरा चाल उसकी नाड़ नै काटांगे वा तेरी भाभी जमाई की ढाल पलकै सांड होरी सै। अर जै तूं भूखा हो तै या रोटी खांड मलाई की खाले। या लाइन दो अर्थी भी हो सकै सै। इसका आड़ै यू मतलब बी लाया जा सकै सै अक तेरी भाभी गेल्यां जै तनै सैक्स की भूख सै तै वा भी पूरी करले। कई लोग तै आज भी इनै बिचारां के पक्के हिमाती पा ज्यांगे। फेर इसे आडू हरियाणा में घणे ए सैं ज्याए तै तो हरियाणा संस्कृति खाड़े में पाछै रैहग्या बताया। औरत के बारे में इतनी पिछड़ी सोच की एक कहावत और कही जा सै आज बी अक लुगाई कै तै गुद्दी पाछै मत हो सै, इसकै एक घर तै बाहर जान्ते धरद्यो अर एक घरां आन्ते की साथ धरद्यो या जिबै काबू मैं रह सकै सै। इसतै घटिया बात आज के बख्तां मैं और के हो सकै सै? औरत नै हम आज भी पां की जूती समझां। रै कदे जिब म्हारी समझदानी छोटी थी। जिब म्हारी समझ विकसित ना हो पाई थी। जिब इसी बात सोचणी तै समझ मैं आ सकै सै दादा लख्मी का। फेर आज के बख्तां मैं तो ये बात मानसिक बिमारी अर कै घटिया पिछड़ी संस्कृति के खाते मैं ए आ सकैं सैं। तै लख्मी दादा की बात उन दिनों के हिसाब तै औरत के बारे में थोड़ी घणी ठीक हो सकैं सैं फेर आज के बख्तां के फीत्यां के नापे मैं वे फिट कोण्या बैठती। या न्यारी बात सै अक घर बार के, रिश्ते नात्यां के, ऊंच-नीच के रीति रिवाजां के बोझ तलै औरत का कोए अपणा बतौर एक इन्सान बतौर एक नागरिक बी कोए वजूद हो सकै सै इसका कोए खाता ‘नौटंकी’ के सांग मैं दिखाई नहीं देन्ता। भूपसिंह की बहू (भाभी) का नजरिया भी सही-सही ऊभर के नहीं आवन्ता। वा तै खलनायिका ए दिखा राखी सै अर नौटंकी जो नायिका सै उसका भी एक भोग की ‘चीज तै न्यारा कोए वजूद दिखाई नहीं देन्ता।’
इन सारी बातां का यो मतलब कति नहीं सै अक कहानी का चुनाव माड़ा सै अक छन्दां मैं कितै कमजोरी सै। ये सारी बात बढ़िया सैं बस खटकण आली जो बात सै वा सै अक औरत के समाज मैं स्थान नै लेकै जो नजरिया इस नौटंकी के सांग म्हं दीखै सै ओ खास तरां तै आज के हिसाब तै पिछड़ा औड़ सै। इसपै और बिचार करण की जरूरत हो सकै सै। आपस में तलवार काढ़ कै लड़ण की जरूरत कति नहीं सै। एक विश्लेषणात्मक अर आलोचनात्मक नजरिये तै चीजां का आकलन करण की जरूरत सै। हो सकै सै बाजे भगत के नजरिये मैं भी औरत के समाज मैं स्थान नै ले के घणा फर्क ना हो। हो सकै सै इस बारे मैं मेहर सिंह बी उड़ै ए सी खडया पावै अर उनकी आज की पीढ़ी के पण्डित कृष्ण चन्द्र शर्मा भी कमोवेश उसै नजरिये की पतवार तै नैया खेवण लागरे हों। इस मायने में मनै लागै सै दादा लख्मी, बाजे भगत, मेहरसिंह घणे न्यारे-न्यारे नहीं थे। हां वे किन-किन बातां मैं न्यारे-न्यारे थे। यो भी एक शोध का काम हो सकै सै। फेर एक सवाल तो दिमाग म्हं आवै ए सै अक दादा लख्मी के ग्रन्थ छपगे, मेहर सिंह की रागनियां के संकलन छपगे पर बाजे भगत के बारे मैं ईब ताहिं कुछ भी नहीं छप लिया या दूभान्त क्यों? कौन आच्छा था कौन किसा था इसका फैंसला जनता करणा जाणै सै। जनता नै पहलम भी करा ए था अर जै सारी सबकी बात उसकै साहमी आज्या तै जनता आप हिसाब ला लेगी अक किसमै कितना दम था। फेर सच्चाई तै ईमानदारी तैं जिसका जितना काम था ओ छपाई मैं तो आवै एक बै।
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कीसी बहस
हर बात मैं खामखा अडं़गा अड़ाणा कोए आच्छी बात नहीं बताई। फेर कई फांच्चर ठोक हरियाणा के गामां मैं इसे पाज्यांगे अक कितना ए अच्छा अर बढ़िया काम हो, पर इन लोगां नै फांच्चर जरूर ठोकणी अपणी। भाई न्यों बी भूल ज्यागा अक बड्डे बडेरयां की बातां मैं अड़ंगा नहीं अड़ाणा चाहिये अर ओ बी म्हारे प्रधानमंत्री अटल बरगे बुजुर्ग की बातां मैं। इब अटल जी नै कह्या अक बहस होनी चाहिये धर्मातरण पै। कोए बहस खातर तैयारै कोण्या इसतै भारत की प्राचीन परम्परा का उल्लंघन ठीक कोण्या। श्रवण माता-पिता की सेवा मैं ज्यान गलाग्या अर हम बहस करण नै बी तैयार कोणया। मनैं वाजपेयी जी पै बहोते घणा तरस आया अर मैं चाल पड़या अपणा डोगा ठाकै बहस करण की खातर। राह मैं एक सड़क पै एक मजदूर तै मुलाकात होगी। ‘‘राम, राम भाई मंगलू’’ मनैं कह्या। मंगलू के हाथ काम करते करते थमगे - ‘‘राम-राम दादा गणेशी। कुछ काम था के?’’ ‘‘हां भाई, थोड़ी सी बहस करनी थी,’’ मैं सहज सी बोल्या। ‘‘दादा क्यों मेरा बी अर अपणा बी टेम खराब करै सै। ओ देख औ कीकर तलै म्हारा ठेकेदार बैठया सै। जै बहस करनी सै तो उसतै जाकै माथा मार अक ओ हमनै पूरी मजदूरी क्यों नहीं देन्ता।’’ मैं बोल्या, ‘‘मैं मजदूरी की बहस कड़ै करूं सूं? मैं तै धर्मांतरण पै बहस करण का मंडासा मारकै घर तै लिकड़या सूं। ‘‘या कोई नई बला आगी कै?’’ मंगलू नै मजाक कर्या। ‘‘अरै म्हारे प्रधानमंत्री नै नहीं कह्या था कुछ दिन पहलम अक धर्म पै बहस का घघाटा ठा द्यो।’’ मनै बताई। मंगलू बोल्या, ‘‘दादा ईब पहलम तनै तो मेरे ताहिं यो प्रधानमंत्री का हिसाब किताब समझाना पड़ैगा।’’ मैं छोह मैं आकै बोल्या, ‘‘अरै तूं अटल बिहारी नै बी नहीं जानता। अरै और मन्दिर आला अटल रै ओ फूलछाप आली पाल्टी का सै। देश पै राज करै सै।’’ मंगलू बोल्या, ‘‘दादा म्हारा तै प्रधानमंत्री यू ठेकेदार है। फूल छाप अक बिना छाप। जिसका बी राज आया इसनै ठेका जरूर मिलग्या। म्हारे पै तै इसका राज चालै सै।’’ ठेकेदार नै मंगलू कान्हीं घुड़की घाली तै मंगलू दड़ मारग्या।
गाम के गोरै सी पहोंच्या तै गमलू सब्जी ले कै आया था साइकिल पै मण्डी मां तै। मनै गमलू टोक लिया। गमलू बोल्या, ‘‘बोल दादा के चाहिये सै? ताजा आलू सैं, टमाटर सैं, भिंडी सै अर गोभी है। मैं बोल्या, ‘‘रै मनै सब्जी ना चाहवन्ती। मनै तो थोड़ी सी बहस करनी थी तेरी गेल्यां।’’ मुंह फेर कै गमलू बुड़बुड़ाया, ‘‘दीखै सै दीमाग खराब हो ग्या दादा का।’’ फेर सुणाकै बोल्या, ‘‘दादा अड्डे पै ताश खेलते पावैंगे उन तै जा कै भिड़ले, मेरी तै ईबै बोहनी बी ना होली सै।’’ न्यों कहकै गमलू नै साइकिल के पैडल घुमा दिये।
मनै सोची अक मंगलू बी विपक्ष के हत्थे चढ़ग्या दीखै सै। अड्डे कान्ही सरक लिया मैं। उड़ै एक लुगाई मूंगफली के ढेर धोरै बैठी मूंगफली बेचै थीं। मनै सोची अक ले या तो बहस करै ए करैगी। वा बोली, ‘‘खस्ता करारी मूंगफली सैं पंडत जी। पांच की सौ ग्राम। बोहनी का बखत सै चार की दे द्यूंगी।’’ मनै तै बहस करनी थी।’’ मैं दुखी हो लिया था। ‘‘के?’’ वा चिल्लाई। घरां मां बाहण कोणया पंडत जी जो मेरी साथ इसी बात करो।’’ मैं तै बखत बिचार कै तावला सा आगे नै सरक लिया। इतने मैं पाछे तै होलदार नै कान्धे पै हाथ धर दिया। मेरा तै तले का सांस तलै अर ऊपर का ऊपर। होलदार बोल्या, ‘‘इस उमर मैं भी...।’’ मैं बोल्या, ‘‘हवलदार साहब वा बात ना सै जुणसी तम लारे सो।’’ ‘‘तो फेर कुणसी सै?’’ छेड़छाड़ के मुकदमे मैं आजकल जमानत बी सिफारिसां तै हो सै।’’ होलदार अकड़ सी गया। मनै तो बीस रुपइये काढ़ कै होलदार ताहिं पकड़ा दिये अक ले चा पानी के सैं। मुस्किल तैं होलदार तै पैंडा छुटवाया। मेरी समझ मैं आग्या अक अनपढ़ां कै हत्थे चढ़ग्या। इननै ना तै धर्मातरण का बेरा, ना देश प्रेम नै समझते अर राष्ट्रीय बहस तै इनके सिर पर कै जा सै। इननै ए तो देश का भट्टा बिठा दिया दादा गणेशी के वाजपेयी के कर सकै सै। साहमी के स्कूल मैं चाल्या गया। अर प्रिंसीपल तै दिल की बात बताई। प्रिंसीपल बोल्या, ‘‘बहस पाछै पहलम न्यों बता अक तेरा ब्यौंत कितना सै? आग्या बालक नै दाखल करवावण। न्यों बेरा ना अक यो पब्लिक सकूल सै। मैं बोल्या, ‘‘मनै तो धर्मांतरण पै बहस करनी थी। प्रिंसीपल बोल्या, ‘‘जा तै प्रधानमंत्री धोरै जा बहस करण। मनै तै ईबै आठमी जमात मैं पढ़ावण जाणा सै। अर प्रिंसीपल साहब चाल पड़े खड़े हो कै। मैं अड्डे पै पहोंचग्या। उड़ै चा की दुकान पै च्यार पांच बैठे बहस करण लागरे थे। मनै सोच्या अब बढ़िया मौका हाथ आग्या। बहस जारी थीं। एक बोल्या, ‘‘या सरकार तै जाण आली सै।’’ दूसरा बोल्या, ‘‘सवाले पैदा ना होन्ता।’’ तीसरे नै बूझ्या, ‘‘क्यों भला।’’ ‘‘इननै सरकार चलावणी ए ना आन्ती।’’ चौथा बोल्या, ‘‘यो अटल तो फलाप हो लिया,’’ एक बीच मैं बोल्या, ‘‘और के! न्यों कहवैं सैं धर्मांतरण पै बहस करो।’’ दूसरा बोल्या, ‘‘या हुई ना काम की बात,’’ मैं बीच मैं उछल कै पड्या। ‘‘दादा तूं बीच मैं मतना बोलै।’’ मैं बोल्या, ‘‘मैं भी धर्मांतरण आली बहस करनी चाहूं सूं।’’ आच्छा तै तूं कद तै संघी हो लिया दादा। फेर इनका जमाना तै लद लिया। एक बै अजमाने थे सो आजमा लिये। प्याज साठ रुपये खवादी अर आलू बीस। या काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ्या करती। मैं बोल्या, ‘‘एक बै धर्मांतरण पै बहस करल्यो भाई।’’ एक बोल्या, ‘‘करल्यो रै दादा बिचारा इतनी कहवै सै तै।’’ दूसरा बोल्या, ‘‘या बिचारा कोण्या। ये संघी अपने मतलब की खातर बिचारे बणज्यां सैं। वोट बड़े बिचारे बणकै मांग लेंगे अर महंगाई बधा दी अर ईब धरम पै बहस करवावैं सैं। म्हारे धोरै कड़ै बखत सै ईसी फिजूल की बहसां खातर।’’
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कुर्सी तै छोडणी ए पडैगी
लैक्सन तै समझो हो लिये। सब आपणी आपणी जीत का ढिंढोरा पीटते हांडैं सैं। असमानां मैं उडण लागरे सैं। खाड़े के पहलवानां मैं तै कइयां के कई दिन तीजां केसे कटे सैं। एक गाम मैं होक्के पै बैठ के चर्चा होरी थी अक कौण बणैगा अर कौण हारैगा। सुरता बी उड़ै बैठ्या उनकी बात सुणण लागरया था। कोए कैह था बीजेपी जीतैगी, कोए कैह था कांग्रेस जीतैगी अर कोए चोटाला ए के राज के सपणे देखै था। सुरते तै कोण्या डट्या गया अर न्यों बोल्या अक मेरै एक बात याद आगी।
सुरता बोल्या अक एक बै भिवानी जिले का एक माणस जीन्द जिले के किसे गाम मैं असनाई मैं जा था। पुराणे दिनां मैं आण जाण की ग्यारा नम्बर की सवारी हुया करती। जिब ताहिं ये मोटर टैम्पू नहीं चाले थे। पीस्से आले माणसां के धोरै कै तो घोड़े हुया करदे अर कै रथ हुया करदे। फेर रमलू धोरै इन सब का ब्यौंत कड़ै था? भाई तो ग्यारा नम्बर की सवारी पै हो लिया चालता। जिब कई कोस जा लिया तो तिस लाग्यायी। गाम के गोरै एक कुंए पै जाकै रमलू नै बाल्टी कुएं मैं पास दी। करड़ा घाम पड़ै था। पस्सीने आरे थे। रमलू दुखी करड़ा होरया था। नेज्जू भाई के हाथ तै झूटगी। धरती भीड़ी होगी भाई नै। ईब के करै?
दो तीन माणस जां थे। उनतै बताई तै उनमां तै एक बोल्या अक या बी किमै बात हुई, गाम मैं तै बिलाई लिया अर बाल्टी काढ़ ले। जीन्द मैं बाल्टी काढ़ण के कांटे नै बिलाई कह्या करैं। रमलू गाम की कान्ही चाल पड्या। बिलाई का मतलब कोण्या समझ मैं आया उसकै। ओ असली बिलाई मान बैठ्या। एक गाल मैं एक बिलाई जा थी, पूस-पूस करकै अपणै धोरै बुलाई अर पकड़ कै चाल पड्या। कुंए पै जाकै नेज्जू कै बांध कै अर कुंए मैं पास दी। अध बिचालै सी जाकै वा बिलाई म्याऊं-म्याऊं करण लागी। रमलू नै बी सुणी उसकी आवाज। ओ बहोत हाण का दुखी होरया था अर बिलाई फेर म्याऊ-म्याऊ करण लागगी तै ओ बोल्या - म्याऊं कर अर चाहे टयाऊं कर बाल्टी तो काढणी ए पड़ैगी।
होक्के पै बैठे सारे लोग हांस पड़े। नफे सिंह बोल्या अक ईब तो लैक्सनां का जिकरा चालरया था। सुरते इसे मौके पै तेरै या बात याद क्यूकर आगी? सुरता बोल्या अक भाई बी.जे.पी. चाहे म्याऊं करले अर चाहे टयाऊं करले, उसनै सिंहासन तै छोडना ए पडैगा। हाथी के दांत खाण के और अर दिखाण के और सैं बगल मैं छुरी अर मुंह मैं राम राम ये बात पहल्यां सुणी सुणी थी पर देख बी.जे.पी. के राज मैं ली। नफे सिंह बोल्या अक सुरते तो बी.जे.पी. तै इतनी खार क्यों खारया सै? तेरी के झोटी खोली बी.जे.पी. नै? सुरते तै जमा भर्या बैठ्या था। ओ न्यों बोल्या अक इसमैं तै थोथ पाई थोथ। म्हारी जड़ काटण लागरी अर स्वदेसी का लिफाफा ठारी सै। ईब के के बताऊं। रही सही कसर प्याज, आलू, तेल अर नून नै पूरी करदी। अर जै जीतैगी तो भाई इस देस की जनता पै तरस ए खाया जा सकै सै।
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खून की जात
आज के हरियाणा मैं जातां के ठेकेदार इतने पैदा होगे अक बूझो मतना। सब अपणी-अपणी जात्यां के सिस्से बढ़िया से फ्रेम मैं लवा कै कौम की सेवा करण की सूं खान्ते हाण्डैं सैं। ईसा लागै सै कई बै तो जणो पूरा ए हरियाणा जात्यां मैं बंट कै खड्या होगा अर जो माणस जातपात मैं यकीन नहीं करता उसनै हरियाणा मैं रैहण का कोए हक नहीं बचरया। गामां मैं भी माणस जात पै, गोत पै, कसूती ढाल तनकै खड़े होज्यां सैं। जागां-जागां हरिजनां के बान्ध बान्धे जाण लागरे सैं। जात के नाम पै बलात्कारी बचाए जाण लागरे सैं। निकम्मे अर चोर, ठग जात का साहरा लेकै चौधरी माणस बणे हांडैं सैं। ब्लैक करकै चौखा पीस्सा कमा लिया। दो चार पहलवानां नै गेल्यां कर लें सै अर जात के ठेकेदार। इनके तले ताहिं तलियार बी न्योंए सैं।
ईसा ए जात का एक ठेकेदार, तप्या औड़ माणस था चौधरी रमलू। उसकी फंुकाड़ मैं घास जल्या करती। मजाल सै कोए हरिजन उसकी बैठक मैं खाट पै बी बैठ ज्या। उसके खेतां मैं कोए पां टेक कै तो दिखा द्यो। बेरा ना किसे हरिजन के बालक नै उसकै बचपन मैं किसी चोंहटकी भर राखी थी अक हरिजन का नाम आया नहीं अर ओ फड़क्यां नहीं। के होया अक भाई नै भैंसा की डेरी खोलण का सौक चढ़ग्या। झीमरां का बालक धार काढ़ण ताहिं राख लिया। कुछ दिन पाछै ओ बीमार होग्या तो धार कूण काढ़ै। पड़ौस मैं हरिजना का गाभरू छोरा अत्तर था। पांच सात दिन उसनै धार काढ़ी। एक दिन उसकी मां रमलू कै घरां किमै मांगण चाली गई तै रमलू की बहू किढ़ावणी मां तै दूध काढण लागरी थी। अत्तर की मां बी ऊंकै धोरै जा खड़ी हुई तै उसका पल्ला किढ़ावणी कै लागग्या। तो फेर के था रमलू की बहू नै तो जमीन असमान एक कर दिया। म्हारी किढ़ावणी बेहू करदी अर और बेरा ना के के। अत्तर की मां बिचारी कुछ नहीं बोली पर मनै मन न्यों सोचण लाग्गी अक जिब मेरा छोरा धार काढ़ै तो बाल्टी बी बेहू ना होन्ती अर ना दूध बेहू होन्ता अर मेरे पल्ले तै किड़ावणी बेहू होज्या सै।
थोड़े दिन पाछै रमलू चौधरी करड़ा बीमार होग्या। बवासीर की तकलीफ थी खून घणा पड़ग्या। लाल मुंह था ओ जमा पीला पड़ग्या। चालण की आसंग रही ना। घरके मैडीकल मैं लेगे। उड़ै जान्तें ए तो डाक्टरां नै खून चढ़ाण की बात करी। ब्लड बैंक मैं उसके नम्बर का खून ना था। दोनों छोरे बी कन्नी काटगे। डाक्टर तै बूझ्या अक मोल नहीं मिलज्या खून। डाक्टर नै बी टका सा जवाब दे दिया अक माणस कै माणस का खून चढ़ै सै हाथी का खून थोड़े ए चढ़ाणा सै। अर जिब तम इसके बेटे ए इस ताहिं खून नहीं दे कै राजी तो और कोए कौण देवैगा। घूम फिरकै वे दो रिक्से आल्यां नै पाकड़ ल्याये चार सौ चार सौ रुपइयां मैं। खून दे दिया उननै तो रिकार्ड मैं नाम लिखावण लागे तो एक नै लिखाया रामचन्द्र सन आफ फत्ते सिंह बाल्मिकी अर दूसरे नै लिखाया लालचन्द वल्द कन्हैया हरिजन अर गाम का नाम। रमलू के दोनों छोरे एक बै तो हिचकिचाए पर फेर सैड़ दे सी दोनों बोत्तल ले कै वार्ड मैं पहोंचगे। डाक्टर नै वे खून की दोनों बोतल चढ़ा दी रमलू कै। उसके दोनूं छोरां कै जाड्डा चढ़रया था अक कदे बाबू बूझले अक यो किसका खून सै तो के जवाब देवांगे। पर रमलू तो आंख मींच कै पड़या रहया। आगले दिन रामचन्द्र अपणे बकाया पीस्से लेण वार्ड मैं आया तो रमलू नै बूझ लिया अक क्यांह के पीस्से। तो रामचन्द्र नै सारी बात बताई। रमलू ने बूझ्या अक तेरी जात के सै भाई तो रामचन्द्र नै बतादी अर लालचन्द की बी बतादी। रमलू तो चुप खींचगा, भींत बोलै तो रमलू बोलै। पीस्से दे कै सैड़ दे सी रामचन्द्र फारिग कर दिया अर मन समझाया अक खून मैं जातपात कीसी, खून तो सबका एक सा ऐ हो सै।
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मेरी बी सुणियो
लैक्सनां का टेम सै। नेता मारे-मारे फिरैं सैं। जनता किमै गर्मी मैं दुखी सै किमैं महंगाई मैं काल होरी सै। अमीरां का तै पेट का पानी बी ना हिलता पर आम आदमी पेट के धंधे मैं चौबीस घंटै लाग्या रहवै सै। फेर बी आच्छी ढालां पेट कोन्या भरता अर पेट की बात सबके साहमी बताई बी ना जान्ती। चौगिरदें कै आम आदमी कै पेट की मार मारण लागरे सैं पीस्से आले। म्हारे नैतावां के बस्ते ठाऊ आजकाल जनता के पेट की थाह लेन्ते हांडै सै। जनता पेट बजान्ती हांडै सै अर कहवै सै अक सरकार म्हारे पेट पै ए क्यों लात मारै सै?
एक किसान खेत मैं शीशम के पेड़ तलै बैठ्या बैठ्या के सोचै सै अपने नेता के बारे मैं भला:
सुण नेता जी सम्राट तनै, कर दिया बारा बाट तनै
मूंधी मार दी खाट तनै, लिया कालजा चाट तनै
बनाई राज की हाट तनै, जनता दर दर ठोकर खावै।।
शेर बकरी का मेल नहीं, या राजनीति कोई खेल नहीं
तूं नीति घटिया चाल रह्या, क्यों इज्जत नै उछाल रह्या
म्हारे बैरी नै तूं पाल रह्या, क्यों लुटवा म्हारा माल रह्या
ईबी ना कर तूं टाल रह्या, जनता सारी खोल दिसावै।।
लोक राज नारा कड़ै गया, लोक लाज म्हारा कड़ै गया
क्यों करवाया मखौल बता, क्यों तेरा पाट्या झोल बता
क्यों खुलवाई पोल बता, हर कोए यो सवाल उठावै।
गेहूं का बना घास दिया, हरियाणा का कर नाश दिया
हरियाणा कै मारी चोट, जनता का बता के खोट
जानवर कै दी इसनै वोट, दिये बिन गिनती के नोट
क्यों दिया तने गल घोट, ना म्हारी समझ मैं आवै।।
कुछ ना साथ मैं जाणा सै, आड़ै ए हिसाब चुकाणा सै,
जो हां भरकै नै नाटैगा, ना उसके कदे पूरा पाटैगा
तेरे वाद्यां नै कूण चाटैगा, बीर दिल मेरे नै डाटैगा
बणा रागनी गम नै बांटैगा, तनै साची साच बतावै।।
16----
ऊंट किस करवट बैठेगा
बिना बुलाये संसद के लैक्शन आगे। सारी जागां कूण किसकी गाड्डी मैं बैठ लिया अर कूण किस गाड्डी मां तै कूद लिया इसके चर्चे जोरों पै सैं। हरियाणा मैं चौटाला साहब भीत बिचालै अर लठ बिचालै आगे दीखैं सैं। किसान प्रधानमंत्री बणावण खातर उसनै भाजपा तै समर्थन उल्टा लिया था। जिब किसान प्रधानमंत्री ना बणता दीख्या तै किसान (बादल) के कहे तैं उल्टे जा चिपके बाजपेई जी कै। ईब के भाजपा नै किसान प्रधानमंत्री की घोषणा कर दी अक चौटाला साहब भाजपा का साथ देण नै उम्हाए हांडैं सैं। अर बात तै आड़े ताहिं आली अक चौटाला साहब न्यों कहन्ते बताए अक एक भाई स्टेट मैं खा कमा लेगा अर दूसरा भाई केन्द्र मैं खा कमा लेगा। दुनिया का नौमा अजूबा होग्या अक बंसी अर चौटाला एक स्टेज पै खड़े होकै (चाहे न्यारी न्यारी बी हों) भाजपा खातर वोट मांगैंगे। कदे किसे नै देबीलाल, बादल, बंसीलाल, चौटाला हर बरग्यां के बारे मैं एक बात कही थी अक रै ये तै वे तरपाल आले खड्डू नारूए सैं जिनपै न्यारे न्यारे ढाल की कौडडी अर् तिरपाल घाल कै पूंजीपति म्हारा बेकूफ बणावैं सैं। ये सारे खड्डू दिल्ली मैं जाकै उस पूंजीपति की धोक मारैं सैं। म्हारै पहलम जच्या नहीं करदी ईब साच माच जंचवादी बंशी अर चौटाला नै।
एकबै एक कुम्हार था उसके दो बेटी थी। एक ईसे घर मैं ब्याही गई जड़ै बरतन बना कै गुजारा करया करते अर दूजी ईसे घर मैं ब्याही गई जड़ै खेती करकै गुजारा था। (साजे बाधे की) साल पीछे कुम्हार उनकी राजी खुशी का बेरा लेण गया तै पहली बोली - जै म्हि बरसग्या तै सारे बास्सण बहै ज्यांगे। दूसरी कै गया तै वा बोली - जै म्हि नहीं बरस्या तै सारी खेती का नाश होज्यागा। उल्टा आया कुम्हार तै उसकी घरआली बोली - के हाल सै बेटियां का? तै कुम्हार बोल्या - एक मरण मैं सै।
अर लै भाई ये चौटाला साहब अर बंशीलाल जी अर अटल जी अर आडवाणी जी कितनी ए स्याणपत दिखा लियो। चौटाला अर बंशीलाल मैं तै एक तो मरण मैं सै ए। कूणसा? यो कैहणा ईबै मुश्किल सै। ईसा बी हो सकै सै अक जनता इन दोनूआं ए नै भारत दर्शन पै भेज दे अर और किसे पार्टी ने संसद मैं भेज दे। बाकी आज की राजनीति मैं कद कोण किसकी गैल्यां बैठ्या पावै कहणा बहोत मुश्किल सै। असूल की राजनीति, जनता के हक की राजनीति, अमन की राजनीति, आत्मनिर्भरता, गरीब के हक की राजनीति तै हरियाणा मैं घणे ए दिन होगे देखें। बेरा ना कद सी अक गरीबां के दिन बाहवडैंगे हरियाणा मैं। कहावत सै अक बीस साल मैं तो कुरड़ी के दिन भी बाहवड़जाया करैं। फेर जनता नै बी देखणा तो पड़ैगा अक जात पात का चश्मा तार कै, दारू सुल्फे का लोभ त्याग कै ईब कै सही पाल्टी अर सही माणसां ताहिं संसद मैं भेजणा चाहिये। कदे जनता ईब कै बी दही के भामै कपास खाज्या अर फेर कहवै अक ओहले के बेरा था न्यों बणज्यागी?
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धोखा हरित क्रांति का
हरित क्रांति का ढोल कई साल पीट लिया सरकार नै पर इसकी असलियत लोगां कै इब समझ मैं आवण लागी सै। हरित क्रांति के दौर मैं सिंचाई अर चोखे साधन आले इलाक्यां मैं चुनकै किसे भी कीमत पै पैदावार बढ़ाओ अर मुनाफा कमाओ का नारा दिया गया। खाद बीज बरगे पैदावार बढ़ाऊ अर ट्रेक्टर हार्वेस्टर बरगे मजदूर हटाऊ तरीके अपणाये गए। अर एक बै तो घघाट बांध दिया। इस ढाल की खेती करण का जुगाड़ किसान नै कुछ घर तै करया अर कुछ कर्ज लेकै करया। उत्पादकता बधगी, पैदावार भी बधगी। फेर सरकार नै दो चाल चाल कै कसूती डाण्डी मारी। एक तै उसनै खेती की उपज अर उसमैं भी नाज के भाव दाब कै राखे। इसका मतलब यो हुआ अक बढ़ी पैदावार का लाभ किसानां के हाथां मैं कोण्या जावण दिया। इसका नतीजा यो हुआ अक खेती किसान अर उसकी गेल्यां जुड़े मजदूर की मेहनत की हकदारी आम तौर पै दबी रही। फेर इसका सबतै तगड़ा झटका उड़ै लाग्या जड़ै किसान आसमान के भरोसे खेती करै सै। ओरां के मुकाबले मैं किसान की मेहनत की हकदारी और तल्ली मैं चाली गई।
दूजे कान्ही सरकार गांव और किसान के विकास की खात्तर जी ज्यान तै लागरी सै। इस आडम्बर अर छलावे नै बनाये राखण खातर उसनै कितै खाद पानी मैं दो पीस्यां की छूट दे दी तो कितै खेती की मशीनां की खात्तर रियायत दे दी। इन सारी बातां का असली लाभ तै शहर अर उड़े के उद्योग नै मिल्या। हां थोड़ा घणा फायदा बड्डे किसान नै भी हुया। पर किसान अर मजदूर कर्ज के बोझ तलै दबता चाल्या गया। जात का चश्मा पहर कै औ बड्डे किसानां की रहनुमाई मैं अपने भाग नै सराहता रहया अर सरकारां के गुणगान करता रहया। म्हारे गामां अर शहरां मैं परत दर परत गहराते संकट मैं हर परत आले नै अपणे तै नीचे की परतां के लोगां की हालत देखकै उनतै बेहतरी का गुमान बण्या रहया। गांव के किसान व शहर के अमीर की तकदीर वह अपनी तकदीर अलग मान कर चालता रहा।
फेर आई तै हरित क्रांति जिसनै आम किसान की गांठ बांधकै गेर दी। अमीर और अमीर होये अर इसकी कमाई पै पांच सितारा होटल संस्कृति पनपी। अर ईस लूट तै मालामाल हुये लोग काले धन के दम पै खेती की जमीन अर बाकी संसाधनां पै कब्जा जमावण के जुगाड़ मैं दिखाई देवैं सैं। अर इस काम में उननै विश्व बैंक जिसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानां अर पूंजी का पूरा सहारा सै। दूसरे कई देसां मैं पहलम बी किसान के घटते लाभ अर बाहरी महंगी पूंजी के दो पाटां बिचालै किसान की खेती फंसाकै कति खतम कर दी। अर ओहे सांग भारत मैं भी रच दिया। केन्द्र मैं कमजोर सरकार अर राज्यां मैं मगरूर क्षत्रपों से नीति निवेश खात्तर सीधे समझौते हमनै उसे चीज कान्ही धकेल कै ले जावण लागरे सैं। पड़ौसी श्रीलंका मैं तै विश्व बैंक से इस बाबत सीधे निर्देश मिल रहे बताये। किसान नै खुद सोचना पड़ैगा अक इन शिकारियां तै अपणा पैंडा क्यूकर छुटवावै। इसी सरकार कूणसी हो सकै सै जो आम किसान अर मजदूर के हक दिवावण की खात्तर देस की नीतियां मैं अखाड़ बाढ़े तै बदलाव ल्या सकै। कवि ने कहा है किसान ताहिं -
सदी बीतली सोतेनै ना आई ईब तक जाग तनै,
ये खूनी कीड़े खाण लागरे चौगिरदें निर्भाग तनै।
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स्वराज सूली तोड्या
स्वदेसी का नारा लावणिये आज बदेशियां की झोली मैं जा बैठे। जिस बखत तिलक नै मांग करी थी अक स्वराज म्हारा जन्म सिद्ध अधिकार सै, उस बखत उसनै सुपने मैं भी नहीं सोच्चा होगा अक उनके सपन्यां के भारत पै बहुराष्ट्रीय कम्पनियां की फौज का कब्जा हो ज्यागा। कद सोची थी अक दिल्ली मैं राज करनिये ये म्हारे राष्ट्रभक्त अपने भाग्य विधाता मुद्रा कोष - विश्व बैंक के शर्तनामे के आगै गोड्डे टेक देंगे। महात्मा गांधी जिसनै जनता की गरीबी की चीत्कार सुणी थी, जनता ताहिं लड़ण खातर प्रेरित करया था, आज म्हारे काले शासक वर्ग की करतूत देख कै हटकै मरण बरत पै बैठ जान्ते या न्यारी बात सै अक आज ये राज करणिया उसनै स्वदेशी मौत मरण खातर एकला छोड़ देन्ते।
जै जवाहर लाल नेहरू हटकै जनम ले ले तै औ आज के भारत नै देख कै छाती पीट ले। इसा भारत जो निजीकरण, बाजार संस्कृति, उदारीकरण, वैश्वीकरण अर और बेरा ना किसी किसी दोमुही अर दो अर्थी बातां का इस्तेमाल करकै आत्मनिर्भरता की जड़ खोदण लागरया सै। जो मजबूत सार्वजनिक क्षेत्र की नींव की विकास की रणनीति नै त्याग कै निजीकरण की कोली भरण लागरया सै। बेरा ना म्हारी जनता की आंख्यां की पट्टी कद खुलैगी? बड़ी चालाकी तै भारत की मजबूत परम्परा साम्राज्यावाद विरोध की राही छोड्डी जावण लागरी सै। भारत का गुट निरपेक्षता के बारे मैं सारी दुनिया में नाम था। पर आज काल का नया निजाम अपणे डालर महाप्रभु अर व्हाइट हाउस के महंतां के आगै घणे भक्ति भाव तै सिर झुकावण नै त्यार सैं।
इसमैं शक की कोए गुंजाइस नहीं सै अक जिननै देस की आजादी खातर संघर्ष अर नये आत्म निर्भर, ताकतवर भारत के विकास में अपणी भूमिका निभाई, वे जै हटकै आज्यां तै ‘वेस्ट इज बैस्ट’ के संस्कारों से ग्रस्त मुट्ठीभर लोगों नै राज पै काबीज पावैंगे। बहु राष्ट्रीय निगमां नै इस मुट्ठीभर भारत के लोगों की मुंह मांगी कीमत लाकै ये खरीद लिये अर पूरे भारत देस पै कब्जा जमावण की त्यारी सै। इन मुट्ठीभर लोगों ताहिं पीस्से की कोई कमी नहीं राखी अर ऐस करवादी। ईब ये उनकी किसे बी बात नै पत्थर की लकीर मानकै चालै सैं। ये ऐय्यासी के नसे में असली भारत जड़ै पेट मैं एक मारी दी जाण आली बच्ची के पैदा होन्ते की साथ गल घोटण आली बच्ची, साप्ताहिक हाट बाजार मैं बिकण आली आदिवासी औरत, विकास के नाम पै डूबण कै बैहवण आले आदिवासी, उपेक्षा के शिकार देहाती लोगों अर शहर की झुग्गी झोंपड़ी मैं रहवण आल्यां की इन मक्कारां नै रत्तीभर भी परवाह कोण्या। म्हारे महान पूर्वजां नै फांसी खान्ती बरियां सुपणे मैं भी नहीं सोच्चा होगा अक उनके दम्भी अर नकचढ़े उत्तराधिकारी जो आज राज मैं काबिज सैं, भ्रष्टाचार अर चुनावी तिकड़म को राजनीतिक उद्योग बणा कै अपणी झोली भरैंगे। कसूता चाला तो यो सै अक म्हारे संविधान की धज्जियां इसे की कसम खा कै उड़ाई जावण लागरी सैं। समाजवाद, विदेशी गुट निरपेक्ष नीति, राष्ट्रीयकरण, आत्मनिर्भरता अर गरीबी हटावण के सारे संविधान के जुझारू सिद्धान्त ताक पै धर दिये अर समता मूलक समाज व्यवस्था का नामो निशान मिटा कै धर दिया। अर ये हे फेर अपणे आप नै सबतै बड्डे देस भक्त कहवैं सैं। इनका राष्ट्र प्रेम रोज टी.वी. अर अखबारां मैं आंसू बहान्ता हांडै सै। लागै सै इन खातर राष्ट्र ये मुट्ठीभर लोग सैं देस की 95 करोड़ जनता इनके राष्ट्र के खाते मैं नहीं आन्ती ज्याहें तै इनका राष्ट्र प्रेम इन खातर कदे नहीं आंसूं बहान्ता। म्हारे सिर पै बदेसी करजा 95 अरब 70 करोड़ डालर तै फालतू हो लिया अर हमनै बेरा सै कर्जा देवणियां की दाब किस किस ढाल की हुया करै। ओ बेगार भी करवावैगा, ओ म्हारे घर मैं तांक झांक भी करैगा अर और बेरा ना के के। भोपाल त्रासदी अर एंडरसन कै खिलाफ बारंट की इब ताहिं उपेक्षा पाछै या बात तै कति ए साफ होली अक ये बदेसी कम्पनी भारत की न्याय व्यवस्था के घेरे तैं बाहर सैं अर ये गरीबां की जिन्दगी गेल्यां ज्यूकर चाहवैं न्यों खिलवाड़ कर सकैं सैं।
फेर जिननै यो स्वराज सूली तोड़या सै जनता उनने पिछाणण लागरी सै अर जनता उननै जरूर सूली तोड़ कै ए दम लेवैगी। इतिहास इस बात की गवाही देवण लागरया सै। मेरा पूरा विश्वास सै अक जनता जागैगी जरूर।
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फेर बी लाडो खड़ी सै
रै सुरते लाडो फिल्म देख्याया के? अरै जीते कितकी लाडो देखूं था टिकट के पीस्से तो कोनी। क्यूं के सौ रुपइये की टिकट सै उसकी? ना भाई जीते इतनी तो कोण्या बस बीस रुपइये सै पर आज काल या कड़की चाल री सै इसका तो तनै बेरा ए सै। फेर के हुया मेरे यार इसतै फालतू की तो रोज दारू ना पी ज्यावां सां। अर हां सुरते न्यों सुण्या सै अक या फिल्म तो बहोत काम्मल सै पर सरकार नै इसका टैक्स माफ नहीं करया। उड़ै खरखौदे गया जिब जिकरा होरया था अक नेशनल फिल्म डवलपमैंट कारपोरेशन के सहयोग तै बनी या पहली हरियाणवी फिल्म सै अर इसकी जो कथा सै उस ताहिं कोए नेशनल एवार्ड बी मिल्या सै। अर जिकरा तै उड़ै न्यूं भी था या पहली हरियाणवी फिल्म सै जो पैंतीस एम एम में बनी सै। कूण माणस थे जो यो जिकरा कर रे थे? न्यों तो सूरते मनै बेरा ना पर वे तै न्यों बी कहवैं थे अक नेशनल फिल्म डवलपमैंट कारपोरेशन नै इस फिल्म ताहिं नेशनल एवार्ड खात्तर भी सिफारिश करी सै।
जीते भाई इस फिलम का टैक्स माफ ना करण में मनै तो किमै पोलटिक्स दीखै सै। वा क्यूकर भाई सुरते। हरियाणवी फिल्म जो क्याहें दीन की भी नहीं थी उनके तो हरियाणा सरकार नै टैक्स माफ करे अर लाडो फिल्म जिसकी कहानी महिला के अधिकारां की कहानी सै उसके मान सम्मान खात्तर लड़ाई की कहानी सै, जिसके गीत रागनी गजब के सैं अर जिसकी प्रोडक्शन भी ऊंचे दरजे की सै उसका टैक्स माफ कोण्या करया। इसका मतलब तो योहे हुआ अक म्हारी सरकार हमनै आच्छी हरियाणवी फिल्म दिखा कै राज्जी कोण्या। इस फिल्म मैं कोए अश्लीलता ना, राजेन्द्र खरकिया नै ‘पाणी आली पाणी प्यादे क्यों लेकै डोल खड़ी होगी’ रागनी गावण मैं तोड़ कर राख्या बतावैं सैं फेर बी टैक्स माफ क्यूं ना करया म्हारी सरकार नै?
अर जीते न्यों सुण्या सै अक टैक्स माफ करण खातर एक कमेटी बणा राखी सै म्हारी सरकार नै। उस कमेटी नै तो घणे जोर की सिफारिश करी थी इस फिल्म का टैक्स माफ करण की पर फेर बेरा ना इसका टैक्स माफ क्यूं ना हुया। या तो बहोतै माड़ी बात हुई भाई सुरते। जिब कमेटी नै तगड़ी सिफारिस कर दी थी तो बात कड़ै जाकै अटकी? भाई जीते घणा तो मनै बेरा ना पर रोहतक मैं मान सरोवर पार्क मैं कइ जणे बैठे न्यों बतलावैं थे अक सी एम की मेज पै जाकै उल्ट-पुल्ट होग्या। रै सुरते के बात काम्मल हरियाणवी फिल्म म्हारे सी.एम. साहब नै आच्छी कोणया लागती के? मनै तो इसा लागै सै अक म्हारे सी एम  साहब ताहिं या फाइल पहोंचै कोण्या ली सै। बीचै मैं कोए कुण्डली मारकै बैठ्या सै। जिब चन्द्रावल जिसी फिलम का टैक्स माफ हो सकै सै तो उसी फिलमां तै सो गुणा काम्मल फिल्म का टैक्स माफ ना हो तो दुख तो आवै ए सै।
रै जीते मनै तो इसा-सा लागै सै अक या फाइल ऊपरली मेज पै जाकै अटकी सै। इसमैं एकै चोटाला अर के दो पालिटिसनां के अहम की टकराहट अड़कै खड़ी होगी, म्हारे मुख्यमंत्री चौटाला साहब की अर डी. आर. चौधरी की। सुरते आच्छा तो या फिलम इननै बनाई सै के? भाई जीते या फिलम डी.आर. साहब के बेटे अश्विनी नै अर उसकी पत्नी कुमुद नै बनाई बतावैं सैं। तो भाई सुरते इसमैं छोरे की बहू अर छोरे का के कसूर? अर हरियाणा के बढ़िया हरियाणवी फिलम देखण आल्यां का के कसूर? या तो वाहे बात हुई भाई अक ‘झोटे झोटे लड़ैं अर झाडां का खोह’। बाबूआं की लड़ाई मैं छोरे की बहु अर छोरा पीस दिये अर बढ़िया हरियाणवीं संस्कृति की वाहक “लाडो” फिलम पीस कै धरदी। म्हारा ताऊ बंशीलाल के बालकां के किसे केस मैं मिसाल कायम करग्या था अक राजनीतिक द्वेष का असर बेकसूर बालकां पै नहीं पड़णा चाहिए।
अर एक और बात सै जीते अक बढ़िया हरियाणवी फिलम के चाहवण आल्यां नै बी या टैक्स माफी की बात क्यूं नहीं ठाली ईब ताहिं? राजेन्द्र खरकिया के रागनी प्रेमियां नै बी या बात क्यूं नहीं ठाई? महिला के अधिकारां खात्तर जी ज्यान एक करकै लड़ण आले संगठनां नै बी इसपै सोचणा चाहिये।
रै सुरते छोड़ मेरे यार यू टैक्स तो माफ होन्ता रहवैगा बोल कद देखण चालैगा या लाडो फिलम? तेरे हिसाब तै तो या घणी काम्मल फिलम सै? रै जीते कद का किसनै बेरा सै भाई? कबीर बी कैहग्या - काल करे सो आज कर, आज करे सौ अब। पल में परले होएगी, बहुरी करेगा कब? तो भाई आजै चालांगे। पर भाई सुरते भाभी नै साथ ले चालिये। रै जीते वाके करैगी। उनकी खात्तर फिलम बणी अर वे ए देखैं नहीं तो फेर के फायदा। मैं भी मनभरी नै ले चालूंगा। हां जै काम्मल नहीं पाई फिलम तो तेरे धोरै पीस्से उल्टे ले ल्यूंगा। रै जीते तूं चाल अर जै फिलम आच्छी ना लागी तो दुगणे पीस्से मेरे धोरै ले लिये।
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अनैतिकता के ठेकेदार म्हारे रूखाले
एक चाला आजकाल कसूता देख्या अक असल मैं जो म्हारा सबतै बड्डा बैरी सै ओ हमनै सबतै प्यारा लागै सै अर असल मैं जो म्हारा भला चाहवै सै ओ हमनै अपणा पक्का बैरी दीखै सै। भाषा सबकी एक फेर काम न्यारे-न्यारे ढाल के। एक आवैगा अर कहवैगा अक भाई अपणा मारै छां मैं गेरै। हम भी सैड़ दे सी बिना सोचे-समझें हां मैं हां मिलाद्या सां। कदे सोची सै अक जिब माणस मरे लिया तो उसनै घाम किसा अर छां कीसी? उसकै लेखै चाहे घाम रहो अर चाहे छां रहो। इसे तरियां तम्बाकू म्हारे सरीर का जमा नास करदे सै फेर हमनै बहोत प्यारा लागै। दारू म्हारा सरीर ढाह के गेरदे, घरनै तबाह करदे, बालकां की बर्बादी का कारण बणै फेर हमनै कितनी प्यारी लागै सै। ट्रक ड्राइवरां नै बेरा सै अक पराई बीरबानी धोरै जावांगे तो एड्ज बीमारी ले कै आवांगे फेर सारी जिन्दगी का रोना पूरे कुण्बे का। फेर कोए छिदा ए ड्राइवर बचता होगा। बेरा सै हमनै अक न्यूण जावांगे तो झेरा सै उसमैं जरूर पड़ांगे फेर जाणा जरूर अर पड़ना बी जरूर झेरे मैं।
दूसरी तरफ या किस्मत हमनै परजीवी इन्सान बणावण मैं अर म्हारी मेहनत की लूट करवावण मैं लूटेरयां के हाथ मैं बहोत काम्मल हथियार सैं अर हम इसकी कौली भरे बैठे सां। किमै बात होज्या, एक्सीडैंट तै होवै ज्यां करकै अक सड़क खराब, अर टायर डुप्लीकेट, अर इंजन घटिया। अर न्यों कहवांगे अक के करया जा सकै सै, उसकी राम जी नै इतनी ए सांस लिख राखी थी। बालक दस्तां तै मरज्या तै कहवांगे अक किस्मत माड़ी थी। सारी दुनिया नै बेरा सै अक बालक कै दस्त साफ पानी ना हो अर नेड़े धोरै गन्दगी हो उस करकै लागैं सैं। बालक की मौत का कारण दस्त अर दस्त का कारण खराब पाणी तै म्हारे बालक की मौत का कारण खराब पाणी हुया अक म्हारी किस्मत हुई? साफ पाणी खात्तर हम संघर्ष ना करां, मांग ना करां, इस खात्तर म्हारै किस्मत की बेड़ी घाल राखी सैं। जै इन बेड़ियां नै तोड़ कै आपां साफ पाणी खात्तर संघर्ष करां तो फेर पुलिस, फौज की बेड़ी सैं उन धोरै। जड़ या किस्मत हमनै भकावण का अर अपणे काले कारनामे छिपावण का बहोत पैना हथियार सै लुटेरयां के हाथां मैं। जो म्हारे दुखां का कारण सै उसकी हम घणी कसूती कौली भररे सां। भरें रहो खूंटा ठोक के करै? समझाए सकै सै और ओ 25 साल तै समझावण लागरया सै, ईब ना समझया चाहो तै थारी मरजी।
तीसरी बात जिननै गंगा जी मैं परदूसण फैला कै उसका पाणी काला जहर कर दिया, कोए ऊनमान नहीं कारखान्यां का कितना जहर रोज गंगा के पाणी मैं रलज्या सै। इन कारखान्यां मां तै अर कितने और गन्दे नाले इसमैं आवैं सै, के कोए गिनती सै इनकी। अर हम इस जहर मैं लाखां लोग डुबकी लावण जावां अपणे पाप धोवण जावां। अर जो इसमैं जहर घोलैं रोज वेहे इसकी पवित्रता के ठेकेदार बणै हांडैं। इसके बारे मैं कोए किमै कैहदे तो उसकै मारण भाजैं। यातै वाहे बात हुई अक चिट बी मेरी अर पिट भी मेरी। पाछै सी ‘वाटर’ फिल्म के बणावण पै तहलका मचा दिया था इन अनैतिकता के ठेकेदारां नै। जो खड़या ए अनैतिकता की कुरड़ी पै हो ओ नैतिकता की सीख तड़के तै सांझ ताहिं देन्ता हांडै यो इस महान भारत देस मैं ऐ हो सकै सै। म्हारे गुरू जी, म्हारे बाबू जी, म्हारे फलाणे जी ये सारे ईसे खाते मैं आवैं सैं।
चौथी बात, अक आजकाल म्हारे राजनीतिक नेतावां कै भी म्हारी संस्कृति की, म्हारी परम्परावां की, समाज के नैतिक पतन की घणी चिन्ता होगी दीखै सै। जिसनै देखो ओहे नैतिकता का पाठ पढ़ान्ता हांडै सै। जिब एक नेता मैं जितने ऐब इस दुनिया के तख्ते पै गिनाये जा सकैं सैं वे सारे ऐब हों अर औ हमनै नैतिकता का पाठ पढ़ावै अर हम भी उसकी गैल दो सेर का सिर हां मैं हां मिलाण ताहिं हिलाद्यां सां। अनैतिकता का डामचा हो अर म्हारे ये रूखाले हों तो जो बणैगी अर बणण लागरी सै समाज की ज्यादातर महिलावां गेल्यां, दलितां गेल्यां अर नौजवानां गेल्यां उसका दोस किसनै देवां? दोस म्हारा सै, म्हारे मैं पैनी नजर की कमी का सै, म्हारी नजर मैं कई ढाल के खोट सैं उनका सै। ना ते चौड़े पड़ी दीखै सै अक इस समाज नै नरक बणावण के कारखाने कित-कित सैं अर उनके मालिक कूण सैं। अर वे म्हारा बेकूफ बणारे सैं। रक्षक बणगे भक्षक।
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एक मरण मैं सै
या बात जग जाहिर होली अक विशाल देहात मैं किसान कसूती फफेड़ मैं आरे सैं। एक बी अखबार कोन्या, एक बी पत्रिका इसी कोन्या जिसमैं इस संकट का जिकर रोजाना इसके पन्यां पै ना आन्ता हो। देश के कोने कोने तै किसानां के संघर्षां की भी खबर छपैं सैं। संसद मैं भी किसानां के इस संकट पै बहोतै हंगामा हुया सै। राज्य सरकारें केन्द्र पै राहत की खातर दबाव गेरण लागरी सैं। फेर ज़मीनी तौर पै हालात मैं सुधार ही झलक कोण्या दीखती। पाछली बरियां धान के भा बधवाणा भूल कै किसान इस बात पै आ लिये थे अक किसे भी भा सरकार म्हारे धान खरीद ले। फेर खरीदणिया भी टोहे नहीं पाये। ईबकै बी 30 रुपइये गिहूआं के बधा के स्याण सा करया सै किसानां पै फेर जै कोए मण्डी मैं 610 के भा तै ठावणिया ए नहीं पावैगा तो इस टोफी का के बणैगा?
किसानां की इस बदहाली के कई पहलू सैं। जै फसल भरपूर होज्या तै उसका खरीददार नहीं मिलता। सरकारी एजैंसी कोए बाहणा बणा कै नाज खरीदण तै इन्कार कर दें सैं। किसान नै अपनी गुजर बसर करण की खातर जो सामान खरीदणा पड़ै उस खातर फालतू पीस्सा देणा पड़ै। ऊपर तैं खाद पै सब्सिडी घटा दी। अर डीजल की कीमत बधा दी। बिजली के रेट तै बढ़ा दिये फेर उसकी आपूर्ति तै नियमित कोण्या करी। सारे देश मैं मजबूरी मैं फसल घटे औड़ दामां पै बेचण की दर्दीली दास्तान सुनाई देण लागरी सैं। ईसा अजीबो गरीब वाक्या होवण लागरया सै जो आजाद भारत मैं ईब ताहिं अनजान था। आड़ै सस्ती कृषि जात चीजां के आयात की इजाजत दे दी गई सै जिस करकै कीमत गिरती जावण लागरी सैं। दूजे कान्हीं अपने देश मैं मौजूद नाज के भण्डारां नै कोए खरीदणिया कोण्या। कर्जदारी बढ़ती जावण लागरी सैं। बड़े पैमाने पै किसान अपनी जमीन तै हाथ धोवण लागरे सैं अर मजदूरां के गैहटे मैं शामिल होवण लागरे सैं। कई किसान तो आत्महत्या जिसा हताशा भरया कदम ठावण पै मजबूर हुए सैं। चारों कान्हीं तै हमला सै किसान पै अर इस संकट की जड़ सै यो भूमंडलीकरण। इस वैश्वीकरण की चाल के साहमी राज में बैठे लोगां नै तो कति गोड्डे टेक दिये लाग्गैं सैं।
पर इस संकट नै किसानां के संघर्ष मैं भी एक नई ज्यान घाली सै। उनके गुस्से का बहोतै जुझारू ढंग तै इजहार होवण लागरया सै। अफसरां, मंत्रियां अर आड़े ताहिं अक मुख्यमंत्रियां ताहिं भी नीं बख्स्या जान्ता। खबर सै अक राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कारवां पै पत्थर बरसाये अर छोह मैं आये किसानां नै एक जनसभा मां तै खदेड़ भी दिया था। चन्द्र बाबू नायडू नै कई जनसभावां मैं किसानां के प्रदर्शनां का सामना करना पड़या। पंजाब मैं भी किसानां ने मोरचा थाम्बया। हरियाणा मैं भी सुरसुराहट सै फेर जात ईबै पट्टी बांधरी सै। पहल्यां आले संगठन ठप्प से होगे अर गरीब अर मझोले किसानां के नये संगठन उभर कै आवण लागरे सैं। कवारी के असली हिम्माती मसले पै जुझारू संघर्ष जारी सै जिसमैं महिला भी शामिल सैं। पाले बन्दी होवण लागरी सै। किसानां के असली हिम्माती कूण सैं नकली हिम्माती कूण सैं ईबकै जरूरी बेरा लागज्यागा। घणे दिन काठ की हान्डी चढ़ी नहीं रैह सकदी।
एक बर एक कुम्हार कै दो छोरी थी। एक का ब्याह थोड़ी धरती आले कै कर दिया अर दूसरी का ब्याह बर्तन बणावण आलै कै कर दिया। साल पाछै कुम्हार की घरआली नै कहया अक बिमला अर कमला का बेरा तो लिया। कुम्हार चाल्या गया पहलम बिमला कै। हाल चाल बूझया। बिमला बोली - बाबू खेती सूकण लागरी सै, जै मींह बरस ज्यागा तो जी ज्यावैंगे। बाबू बोल्या - करैगा राम जी मेर सी। दूसरी छोरी कमला धोरै गया तो उसका हाल चाल बूझया। कमला बोली बर्तन बहोत थाप राखे सैं। जै मींह नहीं बरस्या तो जी ज्यांगे बाबू। बाबू बोल्या - राम जी मेर करैंगे। घरां आकै कुम्हार की घर आली नै बूझया अक के हाल सै छोरियां का। कुम्हार बोल्या - एक मरण मैं सै।
तो आई किमै समझ मैं अक नहीं? इन नकली नेतावां मैं तै अर किसानां मां तै एक मरण मैं सै। जै किसानां नै इन नकली नेतावां का असली रूप नहीं पिछाणा तो वे मरगे अर जै इन नकली नेतावां का असली चेहरा पिछणग्या तो ये नकली नेता मरगे। फेर यू पिछाण करण आल्या काम क्यूकर होवै अर कूण करैगा?
यू किसानां नै करना पड़ैगा। अर ज्यूकर जात का चश्मा तारकै ये जिब भैंस खरीदण जावैं सैं तो धार काढ़ कै देखैं सैं तो न्यों ए किसानी का चश्मा पहर कै इन नकली नेतावां की असली करतूत देखणी पड़ैगी। नहीं तै जात के चश्मे मैं इनका असली चेहरा साहमी कोनी आवै।
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म्हारा बजट-2001
मानगे इस साल के बजट नै। चाले पाड़ दिये बतावैं सैं। चारों कूट रुक्का पड़रया सै ‘स्वप्न बजट’, ‘स्वप्न बजट’ का। अर भाई रोल्ला के झूठा सै? कार सस्ती होगी, ए.सी. सस्ते होगे अर इसे ढाल की बाकी चीजां भी सस्ती होगी। ईबै गर्मी नहीं सै फेर ठंडे की बोतल सस्ती होगी। कर्जे सस्ते होगे। बाहर तै पूंजी ल्यावणा सस्ता होग्या। भीतर का हो चाहे ना हो, बाहर तै समान मंगवाणा सस्ता होग्या। बड़ी कमाई बी सस्ती होगी अर सुण्या सै सरकार बी सस्ती होगी। अर जिब सरकार सस्ती होगी तै सरकारी कारखाने बी सस्ते तो होवणे ए थे। होगी होंगी किमै राशण-वाशण की कुछ चीजां महंगी। कुछ दवा-दारू, बिजली, आण-जाण का भाड़ा किमै महंगे जरूर होगे होंगे। फेर इन चीजां की महंगाई का रोणा कितने दिन ताहिं रोवन्ते रहवांगे आपां? बताओ ऊंबी राशण इंसान खात्तर सै अक इंसान राशण की खात्तर? बहोत दिन सस्ता नाज (राशण) खा लिया, सस्ती बिजली जला ली, सस्ती गाड्डी मैं घूम लिए, सस्ते मकान मैं रह लिए, सस्ती पढ़ाई पढ़ ली, सस्ते इलाज करा लिये। ईब पब्लिक भी तै अपणी कैड़ तै कुछ कौड़ी दो कौड़ी खरच करना सीखै। जनता की या मुफ्तखोरी के हमेशा चालती रहवैगी? भला ये बिचारे पीस्से आले भी कद ताहिं अपणा पेट काट-काट कै इस नाशुक्री जनता के ऐश-आराम का खर्चा भरते रहवैंगे? अर बिचारे राज करणिया दिल्ली आले कद ताहिं राशण-पानी तै लेकै अर दीयाबात्ती ताहिं के जनता ताहिं इन्तजाम करते रहवैंगे? जै ईसै मैं ये लाग्गे रहे तो देश नै इक्कीसवीं सदी मैं क्यूकर लेज्यांगे? बम-बाम्ब क्यूकर बणावैंगे? हम भी कुछ सां, यो दुनिया खात्तर क्यूकर दिखावांगे? यू राष्ट्र-गौरव का मामला सै अर राष्ट्र के गौरव खात्तर तो कोए भी कीमत कम सै। ईब राष्ट्र-गौरव भी जनता नै मुफत मैं चाहिये? इसकी कुछ तै कीमत देणी ए पड़ैगी ना?
एक बात सै म्हारा वित्त मन्त्री पूरा गुरू सै गुरू। इसनै मन मोहन सिंह अर चिदंबरम सब पाछै छोड़ दिये। गुरू के कटोरा दांव तै सारे विरोधी चित् पड़े सैं। गुरू नैं तो शब्दां के मतलबै बदल कै धर दिये। ईब विपक्ष आले करलें विरोध क्यांका करैंगे। वे कहवैंगे कुछ अर उसका मतलब कुछ लिकड़ैगा। सरकार ना तै राशण खरीदैगी अर ना राशण बेचैगी - इसनै ईब विकेन्द्रीकरण कहवैंगे। पब्लिक तै ईब हर चीज का ज्यादा दाम वसूल्या जावैगा - इसनै ईब सुधार कहवैंगे। नाज, दवा, बिजली, पाणी, रेल, सबतै सरकार हाथ खींच लेगी अर इसतै ईब गरीबी घटना कह्या जागा। नौकरी, मजदूरी सब मैं कमी होगी - इस ताहिं रोजगार की स्थिति मैं सुधार बताया जागा। बाल्को तै झांकी सै अर यू सारा पब्लिक सैक्टर बाकी सै। इस सारे नै बेच कै अर्थव्यवस्था मजबूत करी जागी। जिसनै टेलीविजन दिखावैगा वा पब्लिक मान जागी बाकी जनता जाओ भाड़ मैं।
चारों कान्हीं बजट की तारीफ होवण लागरी सैं। कोए टेलीविजन के इस चैनल पै फूल बरसावै सै तो कोए उसपै। कोए बजट की किसे बात पै लट्टू होरया सै तो कोए किसे पै। जड़ बात या सै अक बजट बहोतै घणा काम्मल सै। कितना काम्मल सै यो असली जनता धोरै कोए जान्ता ए कोण्या। रही-सही कसर सुलफे, स्मैक अर दारू नै पूरी करदी। सोने पै सुहागे का काम टी.वी. नै कर दिया। जनता भूखे पेट भी राम-राम पुकारै अर बजट बढ़िया-बजट बढ़िया न्यों पुकारै। देखियो सारा साल इस बजट तै क्यूकर पूरा होवैगा?
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फासीवाद
एक बर मने एक सेमिनार मैं जावण का मौका मिलग्या। मनै सोच्ची अक ले तूं भी ले चाल किमै ज्ञान की बात चालकै गाम मैं बताइये भाइयां ताहिं। उड़ै बात होवण लागरी साम्राज्यवाद पै, पूंजीवाद पै, सामन्तवाद पै अर फासीवाद पै। कई बोलणियां आये अर अपणी बात अंग्रेजी मैं के टूटी फूटी हिन्दी मैं कैहकै चाले गए। मेरै आधी एक बात पल्लै पड़ी अर कई बात कानां पर कै बी गई। खड़या होकै कुछ बूझल्यूं इसकी हिम्मत नहीं पड़ी। फेर एक बात जरूर समझ मैं आगी अक इन वादां के बारे मैं बेरा पाड़े बिना ईब म्हारा काम कोण्या चालै। दो तीन दिन बहोत बेचैन रह्या। मेरे यार दोस्त भी मेरे बरगे क्लीन स्लेट थे इस मामले मैं। अपणे कालेज के टीचरां तै बूझण की कोशिश करी तो उननै न्यों कैंहके धमका दिया अक घणा आण्डी मतना पाकै ईबै तै राजनीति मतना करै पढ़ले। आच्छी ढालां, पहलम अपणा कैरियर बणा ले फेर इन हरफा की पूछड़ ठा ठाकै देखें जाइये। मेरै और बिश्वास होग्या अक इनके बारे मैं जानना तो और भी जरूरी होग्या। यो टीचर आप तै राजनीति मैं बड़या रहैसै हमनै दूर राखणा चाहवै सै।
लायब्रेरी मैं चाल्या गया। उड़ै किताबा मैं माथा मारया। कई किताब देखी पर उड़ै इन हरफां के दर्सन कोन्या होकै दिये। आच्छा साका हुया। मेरा इसा हाल होग्या अक जणूं तै मनै बावली गादड़ी के कान पाकड़ लिये हों - छोडडूं तो मरग्या अर ना छोडडूं तो ऊं पसीने आ लिये। मेरा इसा हाल होग्या अक बस के बताऊं। उठते बैठते, सोते-जागते मेरे दिमाग मैं फासीवाद, साम्राज्यवाद, सामन्तवाद के हथौड़े से लागण लागगे। मैं एक अपणे पड़ौस मैं कांग्रेसी नेता धोरै गया अर उसपै बूझया इनका मतलब तै ओ हंसकै टालग्या। मेरै बी जिद्द होगी अक बेरा जरूर पाड़णा सै इनके मतलब का। चौटाला का भगत सै मेरा एक स्साला मैं उसके धोरै गया। ओ तै जमा कोरा काल्लर पाया। न्यो बोल्या मनै तो पहली बार सुणे सैं ये सब। हां ताऊ पहलम पूंजीवाद अर पूंजीपतियां का जरूर जिकरा कर्या करता अर इननै गाल बकया करता। इननै बहोतै भूंडे बताया करता। पर इसका मतलब कदे खोल कै उसनै बी नहीं बताया म्हारे ताहिं। अर आजकाल तै ताऊ की यारी दोस्ती होरी सै उनकी गेल्यां तो ईब तो इसका मतलब क्यांनै बतावै था। मैं माथा पाकड़ कै बैठग्या। यो नेता माड़ा सा स्याणा दीखै था मनै पर यो बी निरा धौल कपड़िया पाया।
कांग्रेसी बूझ कै देख लिए, इनेलो आले झाड़ पिछोड़ लिये तो मैने सोच्ची अक ईब कित जाऊं? मैं एक बीजेपी आला रहवै सै म्हारे पड़ोस मैं उसके घरा चाल्या गया। चा बणवा ली अर बात सुरू होगी। भाई नै तो अपणा रिकाट चढ़ा दिया अटल का। अटल जी न्यूं, अर अटल जी न्यूं, आध घन्टे ताहिं सांसै कोन्या लेकै दिया बन्धु नै। फेर बोल्या हां तो बन्धु बताओ कैसे आये? मेरे जी मैं जी आया अर मनै बूझया अक मैं इन चार हरफां का सताया औड़ हांडण लागरया सूं - साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, सामन्तवाद, अर फासीवाद। इनका मतलब मनै खोल कै समझाद्यो बंधू जी। अरे मेरे कान्ही इसे ढालां लखाया ज्यूकर कसाई बकरे कान्ही देख्या करै। फेर बोल्या ये म्हारी संस्कृति के सब्द कोन्या। संस्कृत मैं अर म्हारे पुराण ग्रन्थों मैं इन हरफां का कितै जिकराए कोण्या। ये सब तै कोरे बदेसी सबद सैं बन्धु इनके चक्करां मैं मतना पड़ै। भूलज्या इन हरफां नै अर फेर भूल के बी याद मतना करिये। मैं अपणा सा मुंह लेकै आग्या। सोच्चण लाग्या अक मामला तो घणा गड़बड़ सै। पूरे हरियाणा मैं इतने पढ़े लिखे माणस, हरियाणा इतनी तरक्की करग्या अर इन चार हरफां का मतलब साफ-साफ खोल कै बतावणिया कोए नहीं पा लिया।
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रोहतक डूब लिया
रोहतक जिले का सत्यानाश जावण मैं बस माड़ी सी कसर रैहरी सै। रोहतक जिले की पागड़ी सबतै भार्या। रोहतक जिले की नाक सबतै लाम्बी। रोहतक जिला हरियाणा की इज्जत मान्या जावै। हरियाणा मैं राजनीति का गढ़ रोहतक मान्या जा सै। इसा कामल इतिहास रहया सै म्हारे रोहतक जिले का फेर बेरा ना ईब के होग्या इसकै। ईब तै रोहतक जिले के खाते मैं पूरे हिन्दुस्तान मैं महिलावां की सबतै कम संख्या होवण का तमगा आवै सै। एक हजार माणसां पै रोहतक जिले मैं 796 महिला बताई। अर ईस 2000-2001 के साल मैं ये और भी नै जाली होंगी।
बेरा ना के चाला सै छोरे की भूख बधती ए जावै सै रोहतक आल्यां की। सुरते हर तीन भाई थे। ईब सुरते के तीन छोरी अर चौथा छोरा आगै सैं। पांचमा बालक सुरते की बहू कै होवण आला सै। किसे नै टोक लिया सुरते अक रै ईब तो बस कर खसम, ईब तो छोरा भी सै तो सुरता बोल्या एक का बी होना ना होना बराबर सै, दो तै होणे ए चाहिए। छोरा होगा तो बुढ़ापे की लाठी बणैगा। छोरियां का के सै ये तो पराया धन सैं। जिस माणस नै सुरते टोक्या था ओ बोल्या अक सुरते थाम कितने भाई सो? सुरते बोल्या अक हम तीन भाई सां। टोकणिया माणस बोल्या अक थारे मां बाबू कूणसे मैं रहवैं सैं वे? सुरता बोल्या - वे तै न्यारे ए रहवै सैं। हम तीनू भाई न्यारे-न्यारे सां। ओ माणस बोल्या - थाम तो इनके बुढ़ापे की लाठी कोन्या बणे तो वे थारे बुढ़ापे की लाठी क्यूकर बणज्यांगे? आज काल छोरी ए तो थोड़ी घणी सम्हाल बेशक करले मां बाप की बाकी छोर्या कै बिसर तो रहियो ना। पर छोरियां के घर का तो हमनै म्हारी परम्परा मैं मनाही सै। जै छोरी के घर का पाणी बी पी लिया तो चौबीसी आली पंचायत जात बाहर कर देगी। अर महापंचायत बुला लेगी अक सुरते के बाबू नै अपनी बेटियां कै घर का पाणी क्यूं पी लिया?
सुरते बोल्या - थाम्बू तूं भी बेरा ना कित की बात नै कित लेग्या। मेरा मतलब था अक छोरा तो वंश चलावण आला हो सै। बिना छोरे के वंश क्यूकर चालै माणस का? थाम्बू बोल्या - जवाहर लाल का वंश कोनी चाल्या के? जवाहर लाल की बेटी थी ना इंदिरा गांधी। जिब उसके नाम तै नेहरू परिवार आवण लागर्या तो म्हारी छोरियां के नाम तै म्हारे परिवार क्यूं ना चालैंगे? थाम्बू बोल्या - फेर क्यूं कोली भर्या सै इस वंश की? ये बालक तनै सूंघैं ना अर छोरियां कै तूं जावै ना, उनके घर का पाणी पीवै ना। थारी परम्परा, थारे रिवाज, थारी मूंछ का बाल बणज्यां सैं। तो फेर मैं के करूं थाम्बू? सुरते दुखी हो कै बोल्या। थाम्बू बोलया - इन अपणे रिवाजां नै चूंघै जा अर दिन तोड़े जा। थाम्बू बोल्या अक तूं इस जमीन मां तै छोरियां का हिस्सा छोरियां नै दे दे। आड़ै दो किले बाटैं आवैं सैं उसकै, उसनै बुला ले अर आड़ै बसा ले। सुरते का पीला मुंह होग्या अर बोल्या - इसतै आच्छा तो मैं फांसी खाल्यूंगा। थाम्बू नै कम तै कम दस गामां के नाम गिणवा दिये जित छ-छ सात-सात छोरी अपने गामां मैं आकै बसरी थी। सुरता फेर बोल्या - न्यो तै म्हारे गाम मैं कई गोत होज्यांगे। फेर उनके ब्याहवां मैं रोला माचैगा। थाम्बू बोल्या - कितै कुछ ना होवै चौटाला गाम मैं तीन चार गौत सैं उनके गाम की गाम की आपस मैं ब्याह होवण लागरे तो म्हारे गाम मैं के डूबा पड़ै थी। दो-तीन दिन पहलम खबर थी अखबार मैं अक एक छोरा था उसनै ना रूजगार मिल्या कितै अर ब्याह बी कोण्या हुया। उसका तो बेटे नै मां अर बाबू दोनूआं का कत्ल कर दिया अक या प्रोपर्टी तावली हाथ लागज्या अर ब्याह होज्या। इसतै बड्डा जुलम और के हो सकै था? एक खबर या भी थी एक बिहार के किसे गाम तै 15 जवान छोरी लापता सैं। शक था अक छोरी बेचण आले गिरोह आले उननै ठा लेगे। सुरता बोल्या - म्हारे घरां तै बालक की मां न्यूं कहवै थी अक छोरी कम होगी तो आच्छा ए सै अक इनकी कीमत बधज्यागी। इबतै जला दें सैं दहेज के लोभी फेर हथेलियां पै राख्या करैंगे छोरी नै। थाम्बू नै माथे मैं हाथ मार लिया अर बोल्या - रै सुरते ये माणस सैं माणस, डांगर कोण्या, कै प्याज कोण्या अक इनकी कीमत बधज्यागी। इनपै अत्याचार बधैंगे। समाज मैं असुरक्षा का माहौल बधैगा। सुरता दुखी सा होकै बोल्या - रै जिब इसका इलाज बी बतावैगा किमै? थाम्बू बोल्या - मनै बीमारी खोल कै बता दी ईब इलाज तो गाम राम टोहवैं!
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कुछ तै सरम करो
रमलू अर उसका परिवार शुक्रवार की सांझ नै टी.वी. देखण लागरे थे। सांझ नै चाण चणक सी खबरां मैं देख्या अक नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री की सपथ लेण लागर्या सै अर बिहार का गवरनर सपथ दिलावण लागर्या सै। आगली न्यूज मैं लालू यादव एक सौ साठ एमएल्यां की लिस्ट दिखावण लागर्या सै। रमलू नै न्यूज देख कै के सोची भला बिहार के गवरनर के बारे मैं:
टेक: जनतंत्र का चौड़े मैं दिया क्यों गल घोट तनै।
इसकै क्यों कालस लादी मारी कसूती चोट तनै।।
1. जनतंत्र की जागां लाठा तंत्र बिहार मैं घुमाया आज
नीतीस कुमार तै सपथ दिवादी किसा खेल रचाया आज
संविधान पाड़ बगाया आज के खाये नोट तनै।।
2. कायदे कानून और परम्परा पढ़ण बिठाये क्यों
बेसरमी की हद होगी राबड़ी हर ना बुलाये क्यों
बाजपेई बौखलाये क्यों जनता देवै ना वोट तनै।।
3. काले धन का ईब उड़ै खुलकै दौर चलाया जागा,
लालच दे एम.एल.ए. तोड़ैं न्यों हाथ उठाया जागा,
गरीब उड़ै दबाया जागा करया भारी खोट तनै।।
4. बिहार की जनता ना सै माड़ी या सबक सिखावैगी,
बिहार की गद्दी खोसैगी दिल्ली मैं हाथ दिखावैगी,
या जेलां मं खंदावैगी उड़ै मिलैंगे सूके रोट तनै।
इतनी वार मैं रमलू के पड़ौस तैं मनभरी आज्या सै रमलू की घरआली सन्ता तै फेट्टण। रमलू की घरआली रमलू की बात सुणकै गरमी खारी थी। वा मनभरी ताहिं के कैहवण लागी भला:
टेकः आहे सखी एक बात बताऊं, यो दिल अपणा खोल दिखाऊं
नीतीश नै कर दिया चाला, हे मनै तेरी सूं।
गवरनर नै सपथ दिलवाई, नीतीश कै न्यों कुर्सी थ्याई
यो होग्या गुड़ का राला, हे मनै तेरी सूं।
राबड़ी की कुर्सी खोस लई, जनता की आस मोस दई
जनतंत्र का पिट्या दिलवाला, हे मनै तेरी सूं।
नीतीश टोहले कुआं झेरा, जीवन का काम ना तेरा
तेरा चेहरा होग्या काला, हे मनै तेरी सूं।
किसे ढाल बी हक ना बणै, फेर बी कुर्सी पै आण तणै
डेमोक्रेसी का सै गाला, हे मनै तेरी सूं।
ओ कीड़े पड़कै मरियो, कान बात मेरी पै धरियो
खिंचग्या संघर्ष का पाला, हे मनै तेरी सूं।
मनभरी बोली अक न्यों कहवै सैं अक हक तै राबड़ी का ए बणै था पर इन बाजपेई हर नै टेलीफून कर दिया गवरनर ताहिं अक यू नीतीश मुख्यमंत्री बणाणा सै। टेलीफून का रंग चढ़ग्या सै अर वा भी सुर मैं सुर मिला कै के कैहवण लागी भला:
टेकः नीतीश कुमार बिहार का मुख्यमंत्री बण्या देखो,
यो काला बादल असमान के मां आज तण्या देखो।
1. फासीज्म की भारत मैं या बुनियाद धरी गई,
देस तोड़ण की नीम भाई दिल्ली के मां भरी गई,
साजिस पूरी करी गई मेरै सांप सा लड़या देखो।
2. बिहार की आवाज घोट दी सारे नर-नार सुणो,
ये कानून गये भाड़ मैं चाहिये सरकार सुणो,
विधानसभा मैं हाहाकार सुणो रास्सा छिड़या देखो।
3. अवसरवाद और कट्टरवाद का इननै बेरा पटज्या,
विधानसभा मं रैहज्यां थोड़े सिर ठोड़ै ए कटज्या,
नीतीश पाछै नै हटज्या ना तै बिहार ठण्या देखो।
4. खूंटा ठोक की बातां नै कदे भूल ना जाइयो,
किसे के बहकावे ऊपर ध्यान मूल ना लाइयो,
रै घणे टूहल ना जाइयो जाल कसूता बुण्या देखो।
सन्तरा मनभरी की बात सुणकै बोली - कुछ तै सरम करैं। के कोए दीन ईमान बच्या सै अक नहीं इनकै? बडे़ पाक साफ चेहरे आले बतावैं थे अपणे आप नै पर यू चेहरा तै बड़ा खूंखार लिकड्या। मनभरी बोली - मैं तै राबड़ी धोरै एक चिट्ठी गेरूंगी अक घबराइये मतना हम हरियाणे की महिला अर पूरी जनता थारी गैल सैं।
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इस जात तै बच कै
आजकाल पूरे रोहतक मं चर्चा सै महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय मैं सुहाग साहब की अर जे के शर्मा जी की। जितने मुंह उतनी बात। कोए कहवै सै अक यूनिवर्सिटी का नाम तो दयानन्द पै अर आड़ै काम इतने घटिया। आड़ै काम करणिये औधेदार बेरा ना कुणसी दुनियां मैं रहवैं सैं। धरती पै पां टेक कै ए ना चालते। दूसरा बोल्या अक यू राजनीति का खाड़ा बणा कै गेर दिया। राज मैं बैठे औड़ लोगां की वी.सी. इतनै गलत सही सारी बात माणता रहवै इतनै तो ओ वी सी बहोत काम्मल सै उन खात्तर अर जै माड़ा सा भी अहरा पहरा होज्या तै उसकी खाट खड़ी करण मैं चण्डीगढ़ मैं बैठे नेता माड़ी सी बी वार कोण्या लावैं। रिकाट सै इस यूनिवर्सिटी का अक जितने वी.सी. आये वे अधम बिचालै गए अर कै बस आखरी दिन क्यूकरै पूरे करकै गए। चाहे बतरा का मसला हो, चाहे जे डी सिंह का राज हो, चाहे हरद्वारी लाल की सल्तनत का बख्त हो, चाहे जे डी गुप्ता का बख्त हो, चाहे एस एन राव वी सी रहया हो, चाहे राम गोपाल की हकूमत रही हो, चाहे कैपरीहन धोरै चार्ज रहया हो, चाहे लेफ्टीनैंट जी सी अग्रवाल का जमाना हो, चाहे ब्रिगेडियर चौधरी की टरम की बात हो, चाहे विवेक शर्मा के दौर की चर्चा हो, अर चाहे ले.ज. कौशिक के मौसम का जिकरा हो, इस यूनिवर्सिटी नै अपणा जोबण कदे देख्या नहीं अक न्यों कैह सकै माणस अक ओ बख्त बहोत बढ़िया था।
आड़ै जात्यां कै ऊपर कुछ लोगां नै अपणी गोटी फिट करण की रिवायत घाल राखी सै। जो वी.सी. इस जात के शिकंजे तै थोड़ा बहोत बाहर रैहग्या ओ ओरां के मुकाबले ठीक बी कहवाग्या। आड़ै च्यार पांच पोस्ट सैं उन पोस्टां पै नया वी.सी. आन्ते ए की साथ उस जात के माणस आ बैठ्या करदे अर कैहन्दे अक ईब जाटां का राज सै यूनिवर्सिटी मैं, ईब बाह्मणां का राज सै, ईब पंजाबियां का राज सै, ईब बणिया का राज सै। इन जात्यां के कई-बई सौ कर्मचारी अपणी मांगां खात्तर धक्के खान्ते हांडैं जां सैं - उनकी इन राज आल्यां नै कदे परवाह नहीं करी। असल मैं ये इन जात्यां के वफादार बी कोण्या, ये मौका परस्त लोग सैं, अपणा काम काढू चाहे क्यूकरै बी लिकड़ो इन नै नहीं जात की इसी तिसी करी। पर हम भी इतने आडू सां अक जात कै पाछै इनकी आंख मींच कै जय बोलते वार नहीं लावन्ते। म्हारे आडूपन के कारण ये आज ताहिं काच्चे काटदे आये सैं।
हां तै जो भी वी.सी. आया उसनै यूनिवर्सिटी का भला करण की बहोत कोशिश करी पर यूनिवर्सिटी ऊपर नै उट्ठण की जागां तलै नै जान्ती गई। अर ईब तै लोगां की तनखा के बी लाले पड़रे सैं। इसे बख्तां मैं आये सैं म्हारे नये वी.सी. साहब। बख्त बहोत अष्टा सै। यूनिवर्सिटी की माली हालत खस्ता सै - सरकार नै मदद देवण के नाम पै हाथ खड़े कर दिये अर न्यों कहया बतावैं सैं अक यूनिवर्सिटी आले अपणा आप कमाओ अर खाओ।
पढ़ण लिखण का माहौल भी माड़ा ए सै। ना कोए पढ़ कै राज्जी अर ना कोए पढ़ाकै राज्जी। जो पढ़ाणा चाहवै भी उसनै और पढ़ावण नहीं देवैं जो पढ़णा चाहवै उसनै पढ़ण ना देवैं।
इसे माहौल मैं एक माणस जो वी.सी. साहब का फैन सै, उसनै बहोत उम्मीद सैं अक बहोत कुछ होवैगा ईब यूनिवर्सिटी मैं। उसकी भावना इस रागनी के मांह कै ओ पहोंचाणा चाहवै सै बेरा ना पहोंचैगी अक नहीं पहोंचैगी।
वायस चान्सलर बणग्या इस यूनिवर्सिटी का आज तूं,
तीन साल मैं म्हारे धोरै म्हारे पूरे कर दिये काज तूं।
यूनिवर्सिटी कालेज का प्रिंसीपल घणे दिन का खटकै सै,
डी एस डब्ल्यू की पोस्ट भी म्हारे रैह रैह कै नै अटकै सै,
म्हारा भाणजा नौकरी खात्तर यो घणे दिनां का भटकै सै,
कई डेलीवेज कुकावैं सैं उनका केस बी तो लटकै सै,
अपणी चालती मैं चलाकै मेट लिए ईब सारी खाज तूं।
कई कर्मचारी हिमाती धुरके आच्छी पोस्ट पै बदली करदे,
कई जो विरोधी म्हारे उनका आज सिर काट कै न धरदे,
राजा मिस्त्री आला राज तेरा कर म्हारा तूं ऊंचा सिरदे
ब्योहारी माणस दो दिन मैं घर अपणा खुशियां तै भरदे
आज तलक जो चाल्या कोण्या इस चला दिये रिवाज तूं।
नेता जी नै तूं राजी राखिये उनका पूरा कैहण पुगाइये,
गलत सही वे जो भी कैहदें बस हां में हां भरता जाइये,
दिन नै रात अर रात का दिन सुर मैं सुर मिलाइये,
बिल्ली के भागां छींका टूटया काच्चे काट कै खाइये,
तिकड़म लड़ाकै पहरें रहिये यो वी.सी. आला ताज तूं।
नियम कायदे अर नैतिकता ये सब बात कैहणे की सैं,
पाणी का बहाव देख कै रूत लहरां के बल बैहणे की सैं,
के बेरा कितणे दिन ये पावर थारे धोरै रैहणे की सैं,
हमनै अपणे हक की बात पूरी ढालां तै लैहणे की सैं,
खूंटा ठोक कै जूत मारिये मतना करिये लिहाज तूं।
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मेडिकल ठेके पै
मैडीकल नै आजकाल पी जी आई कहवण लागगे। न्यों कहवैं सैं अक सरकार नै इसका औधा बधा दिया। बाकी सब किमै न्यों का न्यों तै नाम बदलण की बी के जरूरत थी। हरियाणे का इकलौता मैडीकल पर अखबारां आले इसके पाछै पड़े रहवैं सैं। आजकाल मैडीकल आल्यां कै एक धुन और सवार होई सै। या धुन आई तै वर्ल्ड बैंक धोरे तै चाल कै सै पर आड़े के कार मुख्त्यार इसनै निखालस अपणे दिमाग की उपज बतावैं सैं। सुद्ध हरियाणवी अर और बी सही कही जा तै सही रोहतकी। या धुन सै सब किमै ठेके पै देवण की। पहलम कैन्टीनां का ठेका उठ्या करता, स्कूटर स्टैंड का ठेका उठता देख्या फेर इबतै ठेक्यां का कोए औड़ै कोण्या रह्या।
मैडीकल कालेज मैं रहणियां की सबकी सारी हाण घिग्घी बन्धी रहवै सै। कदे इस डाक्टर कै घरां चोरी तै कदै उस डाक्टर के घरां चोरी। कदे स्कूटर की चोरी तै कदे कार की चोरी की सीनाजोरी। अस्पताल मैं वार्डां मैं मरीजां के रिश्तेदारां की सामत आई रहवै सै रोज, ओ पी डी मैं बीमारी की मार फेर ऊपर तै भीड़ की लाइन की मार अर सोने पै सुहागा यो अक पाकेट मारां की मार। डाक्टर मरीजां पै वार करैं अर जेब कतरे मरीजां अर डाक्टरां दोनूआं पै दया दृष्टि राखैं सैं अपनी। चोरी की बी देखी जा माणस और मेहनत करकै कमा ले।
आजकाल एक साक्का और बधग्या। महिला चाहे डाक्टर हो चाहे नर्स हो, चाहे स्वीपर हो अर चाहे मरीज हो अर चाहे पढ़ण आली हो, उसकी गेल्यां बहोतै भुण्डी बणै सै। राह चालदी औरतां नै छोरियां नै छेड़ना बधता जावण लागरया सै। बदमासां के टोल के टोल हांडे जावैं सैं। कोए रोक टोक ना। कई डाक्टर अर नर्स बतावैं सैं अक कई बर तो ड्यूटी पै उनकी गेल्यां बहोतै भुण्डी बणै सै। कई महिला मरीजां अर उसकी रिस्तेदार देखभाल करण आली औरतां की मजबूरी का फायदा ठावन्ते लोग वार नहीं लावन्ते। लेडी डाक्टर अर नर्सां के छात्रावासां मैं भी असामाजिक तत्वां की घुसपैठ दिन पै दिन बधती जावण लागरी सैं। सुरक्षा के प्रबन्ध बहोतै ढीले बताये अर पुलिस चौकी (मैडीकल आली) पै तै दिन छिपे पाछै सोमरस का भोग लाकै घणखरे पुलिस आले राम की भक्ति मैं लीन हुए पावैं सैं। कई बै ये सवाल उठे अर आखिर मैं प्रशासन के समझ मैं आगी अक मैडीकल की सुरक्षा का काम ठेके पै दे दिया जा तो चोरी जारी अर बदमाशी पै कंट्रोल कर्या जा सकै सै। देखियो कदे जिन ताहिं ठेका दिया जा वोहे चोहदी के बदमाश लिकड़याए तै के मण बीघै उतरैगी?
कई बै जिब मरीज धोई औड़ बैड सीट मांगले कै ड्राई क्लीन कर्या औड़ साफ काम्बल मांगले तै उसनै नहीं मिल सकता चाहे मंत्री ताहिं की सिफारिस करवा कै देख ले। अर मंत्री बी उस एक मरीज की खातर तै टैलीफोन कर देगा फेर बाकी भी तै मरीज सैं इस मैडीकल मैं उनकी चिन्ता ना मन्त्रियां अर ना मुख्यमंत्री जी नै। जड़ बात या सै अक साफ बैड सीट का जिकरा चालै तै लाण्ड्री का जिकरा चाल पड़ै अर इसकी मसीन 30 साल पुरानी, बदलै कूण? तै प्रशासन मैं बैठे लोग फेर न्यों कैहदें सैं अक कपड़यां की धुलाई का काम भी ठेके पै देण की प्लान बणन लागरी सै।
वार्डां की सफाई का मसला हो चाहे बाथरूमां की सफाई का मसला हो अर चाहे प्रेशन तै पहलम मरीज के बालां की सफाई का मसला हो, इन सारे कामां खातर ठेकेदारी प्रथा की वकालत करणिया बहोत पैदा होगे हरियाणा मैं। तै फेर तै सारा ए मैडीकल ठेके पै छुटा दिया जा। सरकार का 32 करोड़ का बजट बच ज्यागा अर 30-40 करोड़ रुपइये मैं इसका ठेका उठैगा। इसी तंगी के बख्तां मैं सरकार ने 72 करोड़ का फायदा हो सकै सै इस दवाई तै। ठेके पै काम तै डाक्टरां की ‘स्टीराइड’ आली रामबाण दवाई सै बेरा ना इब ताहिं सरकार की समझ मैं क्यों नहीं आली ?
जनता का के होगा? इसकी परवाह ना सरकार नै सै अर ना खुद जनता नै सै। अर जै न्यों ए चालता रहया तै पहलम तै पूरा मैडीकल ठेके पै ठवाया जागा। फेर न्यों ए एक पूरा जिला ठेके पै चलावण की बात बी चाल सकै सै अर फेर पूरा हरियाणा अर फेर कदे पूरा भारत देश ठेके पै जावैगा।
28----
रोग कसूता के करूं
हरियाणा के विद्वानों, राम-राम!
मेरी उम्र सै याणी सी। मैं सौला सतरा साल का बालक सूं। जवानी पहरे मैं पां धरया ए था अक एक दूसरी दुनिया मैं आग्या जणो तै। म्हारी गाल मैं आठ जणे सां म्हारी उम्र के। म्हारी गाल मैं चार छोरी सैं म्हारी उम्र की। मेरे तै पहलम तीनां गेल्यां तीनां की यारी थी। चौथी गेल्यां मेरा बी याराना होग्या। सारी हाण डर लाग्या रहवै। अपणे घरक्यां का डर कदे छोरी के घरक्यां का भय कदे गाम के लोगां का भय। पर या लुका छिपी म्हारी दो तीन साल चाली। एक दो बर उनके घरां मैं थ्यावन्ता थ्यावन्ता बच्या। इस सारी बातां का बेरा ना मेरे दिमाग नै बोझ मान्या अक के बात हुई मेरा तै करंट खत्म होग्या। वैद धोरै दवाई ली। शक्ति क्लीनिक मैं धक्के खाये। जुनेजा क्लीनिक बी गाह कै गेर दी। मेरठ मैं एक हकीम बताया उसकी दवाई बी बेअसर रही। मनै सहज सहज यार दोस्तां तै जिकर करया तै उन मां तै बी कईयां नै बताई अक म्हारे बी गोड्डे से टूटे रहवैं सैं। किसे काम मैं जी लागता ना। सरीर मैं कमजोरी आगी। सवाल सै अक मैं ठीक हो ज्यांगा अक नहीं? एक बात और सै मेरी बातां नै मजाक मैं मतना लियो या एकला मेरा सवाल नहीं सै। मनै तै होंसला करकै विद्वानां कै साहमी अपनी किताब खोल कै धरदी पर घणे सैं जिनकी किताब बन्द सै। सोचो किमै अर बताइयो हमनै। मैं करूं तै के करूं?
म्हारी गली का कर्मबीर सै। उसकै बी यो रोग था। उसनै सर्मान्ते नै अपणे घरक्यां आगै या बात बताई कोण्या। उसका ब्याह होगा फेर उसे दिन तै भाई तो और भी घणा कमनू सा रैहवण लागग्या। उसकी घर आली नै अपणी सासू ताहिं बतादी सारी बात अर वा कर्मबीर नै ठायें ठायें हान्डै सै। कदे कितै तै झाड़ा लुवा कै ल्यावै सै अर कदे किते तै गन्डा ताबीज बन्धवा कै ल्यावै सैं। पर उसकी घर आली दो बरस तै अपणे घरां बैठी सै। कर्मबीर कै और घणा सदमा होग्या। एक दिन तै ओ सल्फास की गोली खाग्या था। बड़ी मुस्किल तै मैडीकल आल्यां नै पांच छह दिन की खुबात करकै बचाया। उसकी घर आली बी आई कै आणा पड़या उसनै।
पर मनै तो बहोतै घणी चिन्ता होरी सै। इस चिन्ता नै दीखै मेरा और बी घणा भट्ठा बिठा दिया। कर्मबीर तै होंसला लेकै मैं भी मैडीकल मैं गया। उड़े तै डाक्टरां नै बस इसा ए सा देख्या अर गोली लिख दी। मेरे कोए आराम कोन्या हुया। मुंह की हाड्डी चिलकण लागगी। बेरी मैं एक वैद बताया इस बीमारी का उस धोरै दवाई ल्याया। छह म्हिने दवाई खाई। मुस्किल ते नकल नुकल मारकै बी.ए. करली इब आगै कोए राह नहीं दीखता अक करूं तै के करूं?
नौकरी ना कितै। कोए काम धन्धा चलाऊ तै पीस्सा कोन्या। ऊं बी हिम्मत सी कोन्या बनती। दो चारां नै अपणा काम धन्धा सुरू करया था। सारे के सारे तीस-तीस अर कै पचास-पचास हजार तलै आगे अर ईब ठन-ठन गोपाल हुये हांडैं सैं।
तो मेरी हरियाणा के विद्वानां तै, याड़े के कद्रदानां तै, म्हारे नेता महानां तैं जो ईब लैक्सन लड़ण आवैंगे या हाथ जोड़ कै प्रार्थना सै अक मेरा मार्ग दर्सन करो। मैं किस धोरे अपणा इलाज कराऊं? मैं कित तै रोटी खाऊं? अर क्यूकर अपणा ब्याह रचाऊं? मनै इन्तजार सै थारी सलाह का। मेरा पता बूझणा चाहो सो? तो मेरा पता सै हरियाणे के हर गाम मैं मेरे बरगे तीस-चालीस नौजवान जरूर पा ज्यांगे, उनके किसे के नाम तै एक चिट्ठी मैं लिख कै बता दियो समझो वा चिट्ठी मेरे धोरै पहोंच ज्यागी।
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अधखबड़ा माणस
म्हारे देस मैं अर खास कर हरियाणा मैं अधखबड़े माणसां की गलेट लागै सैं। दो साल पहलम गणेस की मूर्तियां नै दूध पीणा सुरू करया। देस के महानगरां मैं अर बिदेसां मैं ये खबर जंगल की आग की ढालां फैलगी। भौतिक प्रयोगसाला का एक साइंसदान बी दूध प्यावण आल्यां की भीड़ में खड़्या पाया गया। कुछ साल पहलम बम्बई के मसहूर टाटा इन्सिटिच्यूट ऑफ फण्डा मैंटल रिसर्च के एक माने ओड़ खगोल शास्त्री के बारे में चर्चा थी अक ओ ग्रहण लागण के बख्त न्हाण का पाखण्ड कर्या करता। जै इसे अन्धविस्वासी साइंसदान देस मैं वैज्ञानिक नजरिये की एक धुरी सैं तो दूजे छोर पै ओ मोची सै जिसनै टी.वी. पै यो साबित कर दिया था अक उसका तीन टांगा आला औजार भी गणेश की ढालां दूध पी सकै सै। इस बात तै एक बात तै साफ उभर कै आवै सै अक म्हारे देस मैं वैज्ञानिक शिक्षा अर वैज्ञानिक सोच में कोए सीधा रिस्ता नहीं सै। कोए जमाना था जब शिक्षा अर वैज्ञानिक दृष्टिकोण एक प्रक्रिया का हिस्सा थे। मतलब आधुनिकता का हिस्सा थे। पढ़े लिखे माणस अन्ध विश्वासां तै अपणी मुक्ति नै अनपढ़ां के मुकाबले मैं अपणी श्रेष्ठता का कारण बतान्ते हान्डया करते। पर आज वे बातै कोन्या रैहरी। कई माणस वैज्ञानिक दृष्टिकोण नै कुदरत अर व्यक्तिगत जिन्दगी ताहिं ए लागू करैं सैं पर समाज के प्रति उनके दृष्टिकोण नै वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण का हिस्सा कोन्या मानते। बस योहे अध खबड़ापन सै उनका अक वे विज्ञान के नजरिये नै समाज तै न्यारा करकै राखै सैं।
म्हारी आज की संस्कृति नै एक अधखबड़ा माणस तैयार करण का ठेका सा ठा राख्या सै। यो अधखबड़ा माणस एक ढाल तै विचारसील हो सै, वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी हो सै उसका, वैज्ञानिकां आले काम भी सारे करै सै पर दूसरे कान्ही ओ विवेकहीन भी सै अर अवैज्ञानिकता का सिकार भी सै। अर या बात हरियाणे मैं तो हर सहर अर गाम मैं पावै सै पर इसे अधखबड़े माणस सारी दुनियां मैं सैं।
एक डॉक्टर (अधखबड़ा माणस) मरीज का परेसन करकै न्यों कहवैगा अक ले हमनै तो जो करणा था सो कर दिया, ईब बाकी ऊपर आला जाणै। मास्टर जी स्कूल मैं तो बालकां नै पढ़ावैगा अक बरसात बादलां तै हो सै अर घरां आकै अड़ कै बैठ ज्यागा अक बरसात हवन करे तैं हो सै। बताओ इसा मास्टर बालकां मैं किसा वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करैगा? इन अधखबड़े माणसां नै ब्रूनो नाम का साइंसदान जिन्दा जला दिया था। ब्रूनो का कसूर इतना ए था अक उसनै एक सच्चाई दुनिया के साहमी ल्यावणी चाही थी अक म्हारी धरती सूरज के चारों कान्हीं घूमै सै। इसतै पहलम दुनियां न्यों मान्या करती अक म्हारा सूरज म्हारी धरती के चारों कान्हीं घूमै सै। आज जिब जमाना इतनी आगै जा लिया, विज्ञान नै इतनी तरक्की करली तो भी इन अधखबड़े माणसां नै राजस्थान मैं भंवरी बाई गेल्यां सामूहिक बलात्कार कर्या। उसका कसूर इतना ए था अक उसनै बाल विवाह का विरोध कर्या था। बेरा ना म्हारे संविधान (जिसमें बाल विवाह कानूनन जुर्म मान्या गया सै) के रुखाले भंवरी बाई नै बचावण क्यूं नहीं आये। उल्टा बलात्कारियां के पाले मैं जा खड़े हुए। और भी घणे कारण रहे होंगे इसके पर मनै लागै सै अक ये अधखबड़े माणस थे अर उनकी अधखबड़ी सोच थी जिसनै भंवरी बाई ताहिं न्याय नहीं मिलण दिया।
म्हारे समाज नै, म्हारी मानवता नै, इन्सानियत नै जै सबतै घणा खतरा किसे तै सै तो इस अधखबड़े माणस तै सै इसकी अधखबड़ी सोच तै सै अर उस समाज व्यवस्था तै सै जिसनै ये अधखबड़े माणस बणावण के बड्डे कारखाने ला राखैं सैं।
30----
आडू.
नेता जिसकी पीठ पै एक बर हाथ फेर दे सै उस माणस का दिमाग काम करणा छोड़ज्या सै, उसकी तर्क शक्ति की ताकत सापड़ज्या सै, आच्छे-भूण्डे का फरक करण की ताकत मारी जा सै, हां मैं हां मिलावण की आदत पड़ ज्या सै, देखी आंख्यां माक्खी निगलण की खूब ‘प्रैक्टिस’ होज्या सै, झोटे की ढालां गस खाणा भी आज्या सै, अर नेता के सम्मोहन मैं फंसज्या सै। नेता की हर बात की चाद्दर के पल्ले कै गांठ मार ले सै। उसकी रीढ़ की हाड्डी कड़ थेपड़तें ए की साथ बेरा ना कित रफ्फू-चक्कर होज्या सै अक पिंघल ज्या सै। ज्यूकर सामण के आन्धे नै हरया ए हरया दिख्या करै न्योंए उस माणस नै बी ओए दीखै सै जो उसका नेता दिखाना चाहवै।
सत्ता पक्ष के लोग तो अपणे कार्यकर्त्ता नै समझावैंगे अक जो अपणी चालदी मैं नहीं चलावै ओ माणस बी किमै माणस हो सै? सदियां तै यो दस्तूर चालदा आया सै। जिस की चाली उसनै चलाई। महाराजा अशोक तै हिन्दुस्तान का अशोक सम्राट माण्या जा सै फेर गद्दी पै बैठण ताहिं तो उसनै बी अपणे तीन-चार भाइयां का कत्ल करवाया ए था। तो फेर आज के जमाने मैं राज डाट्टण की खात्तर बीस-तीस कत्ल कर दिये जां कै करवा दिये जां तो के हरजा सै? या तै म्हारी विरासत सै, म्हारा रिवाज सै यो, म्हारी पुरानी संस्कृति का सवाल सै। म्हारी आस्था नै ठेस पहोंच सकै सै जै हम बख्त-बख्त पै सौ-दो सौ चार सौ माणसां नै धर्म पै कै जात पै लड़वा कै मरवा नहीं द्यां। शाबाश रै म्हारे नेताओं! तम अशोक समा्रट की सही साच्ची शुद्ध सन्तान सो।
बिना मैरिट, नौकरी दिवावण का झांसा देकै राखणा, बिना मैरिट यूनिवर्सिटी मैं दाखला, बिना मैरिट मैडीकल मैं लैक्चर अर प्रोफैसर लवाणा, रातों-रात करोड़पति बणा देणा ये सारे गुण सैं आजकाल के नेतावां मैं। कायदे-कानूनां को ठोक्कर मारकै घटिया काम करणियां ताहिं बचाणा, ये सारी चीज़ ऊपर तै लेकै तले ताहिं घटण की जागां बधती जावैं सैं। ईसे नेता आण्डी कै फक्कड़ कहे जावैं सैं। अर हम भी पक्के आडू. सां जो इन की इतनी घटिया बातां नै आंख मूंद कै सहन करें जावां सां। म्हारे मां तै कई तो न्यों कहवैंगे अक जै माणस चालती मैं भी नहीं चलावैगा तो फेर नेता बणण की जरूतै के सै? ईब ईसे ढालां सोचणिया माणस आडू. तै न्यारा के हो सकै सै?
ये नेता दूसरी बात अपने चेले-चपट्यां नै या सिखाया करैं अक अपणा मारै छां मैं गेरै। अर हम बी न्यों कैहण लागज्यां सां अक बात तो सोला आने सही सै। अपणी समझदाणी पै जोर देकै सोचण की तो आपां नै बी सूं खा राखी सै। पहली बात तो या सै अक आपां अपणा किसनै समझां सां अर पराया किसनै समझां सां। ऊत, बलात्कारी, कात्ल, सुलफाबाज, काला धन कमावणिया तै हमनै प्यारा लागै सै इस करकै अक ओ म्हारी जात का सै, ओ म्हारा गोत्ती भाई सै, ओ रिस्तेदारी मैं पड़ै सै। ईमानदार, आम जनता का भला चाहवणिया, साच नै साच अर झूठ नै झूठ कहवणिया, अपणे असूलां पै चालणिया सरीफ माणस हो तै आपां उसनै सूंघते बी कोण्या। इस करकै अक ओ अपणी जात का कोण्या, ओ गोत्ती भाई कोण्या। कोए बूझै तो कैहद्यां सां अक ऊत सै तो के सै, सै तो अपणी जात का। जिस माणस की फितरत बलात्कारी की होगी ओ जात की छोरियां तै भी बदफेली करैगा अर दूसरी जात की छोरियां गेल्यां बी। औं नहीं बक्शै किसे जात नै। अर फेर बी हम उसनै अपणा मानां अर उस पै केस नहीं चालण देवां।
जिस माणस का काम सुलफा बेचण का सै तो ओ योहे काम तै म्हारे बालकां नै भी सिखावैगा। बताओ ईसे रिस्तेदार अर गोत्ती भाई नै के कोए चाटै? ये हे माणस सैं जो अपणे बचण की खातर यो मुहावरा इस्तेमाल करैं सैं अक अपणा मारै छां मैं गेरै। हम भी सैड दे सी कहवांगे अक बात सही, अपणा माणस फेर बी किमै तो ख्याल राखैगा ए। हम एक बात कति भूल ज्यावां सां अक मरे पाछै किसी छां अर किसा घाम? मरै पाछै निर्जीव शरीर का कोए किमै करो के फर्क पड़ै सै? कई माणस तो समझण लागगे अक जात पै बांट कै ये नेता म्हारा उल्लू बणावैं सैं। फेर कई झकोई इसे पावैंगे जो मान कै ए कोण्या दें। समझाल्यो क्यूकर समझाओगे ईसे आडूआं नै। आडू. कैहण का बुरा मानज्यां, अपणे आप सोचैं ना, दूसरे की समझाई औड़ समझैं ना। पढ़्या-लिख्या माणस घणा आडू पावै सै। अनपढ़ आडू. फेर बी समझाया जा सकै सै फेर पढ़े-लिखे आडू. नै समझा कूण दे, अंगद की ढालां पां गाड कै खड़या होज्या सै। सबनै दीखै सै अक ये बदेशी कम्पनी सब क्याहें पै छावण लागरी सैं फेर म्हारा नेता इनपै चुप सै तो आपां भी चुप खींचरे सां। न्यों चुप खींच कै कितने दिन काम चालैगा? इस बाजार व्यवस्था मैं सब किमै पीस्से के पाछै भाज लिया अर म्हारे नेता इसका गुणगान करण लागरे सैं, तो हम भी इसके कसीदे खींचण लागगे। अरै इन नेतावां तै कोए सवाल भी करैगा? कोए बूझैगा अक इस देश का, इस देश के लोगां का क्यों आडू. बना राख्या सै? किसे दिन म्हारे नेता जी बदेश मैं बैठे पावैंगे अर हम आडै़ एक-दूसरे की धोती की लांगड़ पकड़ कै खींचते रहवांगे। अर तुम हमनै के बेरा था न्यूं बणज्यागी? ईब कूण बतावै अक आडूआं गेल्या इतिहास मैं भी न्यों ............................ ..............................................................................................................
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आपाधापी घणी मचाई देस के ठेकेदारां नै
सारी दुनिया नै जो विकास की राही पकड़ी उस करकै अमीर तै और घणा अमीर होग्या अर गरीब और घणा गरीब होन्ता आवै सै। सारे न्यों कहवैंगे अक यो तै किस्मत का खेल सै ऊपर आला किसे नै राजा तै रंक बणा दे अर रंक नै राजा। हर बात की किस्मत कै गांडली बांध कै सोवण के आदि होगे हम भी अर अपणे दिमाग पै तो माड़ा सा भी जोर देकै राज्जी कोन्या अक यो इस दुनिया मैं होवण के लागरया सै? शहीदां के बालक तै खस्ता हाल सरकारी स्कूलां मैं धक्के खावैं सैं अर मुखबिरां के बालक एयरकंडीशंड घर मैं रहवैं, एयर कंडीशंड बस मैं एयर कंडीशंड स्कूल में पढ़ण जावैं। अर इस सारे घालमेल नै फेर किस्मत का खेल बतावैं अर हम बी उनकी गेल्यां मिलकै हां मैं हां मिलावैं तो म्हारे तै निरभाग कौण होगा? काले बाजारियां की किस्मत मेहनतकश किसान तै बढ़िया लिखण आले भगवान की बी नीयत पै सवाल तो उठै ए सैं फेर हम सवाल ठाणा तो भूले गए। विकास की खामियां नै किस्मत के जिम्मै छोड्डें काम कोणी चालै। सच ही कहा है किसी कवि ने -
आपाधापी घणी मचाई देस के ठेकेदारां नै,
सारे रिकार्ड तोड़ धरे धन के भूखे साहूकारां नै।
विकास राही माणस खाणी इनै रोजगार घटाया सै,
महिला जमा बाहर राखी ईसा महाघोर मचाया सै,
बाबू बेटा ज्यानी दुश्मन बहू सास मैं जंग कराया सै,
बूढ्यां की तै कदर कड़ै जिब जवानां का मोर नचाया सै,
माणस तै हैवान बणा दिये सभ्यता के थाणेदारां नै।
ईसा विकास म्हारा नाश करैगा या बात क्यों जरती ना,
गरीब अमीर की या खाई आज क्यों दुनियां मैं भरती ना,
चारों कान्हीं माफिया बधगे या बुराई आज डरती ना,
अच्छाई पै हमला कसूता फेर बी कदे या मरती ना,
बदेशी कम्पनी छागी छूट दे राखी राज दरबारां नै।
यो कौण दादा पाक गया सारे कै आतंक मचाया सै,
थोड़ा सा साहमी बोल्या इराक पढ़ण बिठाया सै,
यूगोस्लोविया पै बम्ब गेरे यो कति नहीं शरमाया सै,
तीसरी दुनिया चूस लई भारत मैं जाल बिछाया सै,
बदेशी अर देशी डाकू सिर चढ़ा दिये सरकारां नै।
उल्टी राही चला दई म्हारे देश की जनता किसनै रै,
सोच समझ कै बेरा पाड़ां देश तै भजावां उसनै रै,
इस विकास राही नै बदलां मोर बनाया जिसनै रै,
म्हारा ईसा विकास हो जो मेटै सबकी तिसनै रै,
दीन जहान तै खो देगी या जनता इसे बदकारां नै।
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वैश्वीकरण की माया
दुनिया मैं विकास की राही आन्धी सुरंग मैं जाली लागै सै। इसनै ठीक राही पै ल्यावण खात्तर चार बातां की राम बाण दवाई की खोज करी गई - वैश्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण अर बाजारीकरण। ईब कई माणस ईसे पावैंगे जिननै इनके मतलब का ए कोनी बेरा। कई तै इनका नाम सुणकै ए सिर पाकड़ कै बैठगे होंगे। चालो इनपै तो फेर कदे चर्चा कर ल्यांगे जिब थाम ठाली से होवोगे फेर ईब चर्चा इस बात पै सै अक इस राम बाण दवाई नै के असर दिखाया? तो थोड़ा सा जी करड़ा करकै सुनियो। म्हारे देश की खाद्य सुरक्षा तै कति मूंधी मारदी। विश्व वाणिज्य संस्था के दबाव मैं म्हारे देश नै कृषि पै अनुदानां (सबसिडी) पै कटौती कर दी अर जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) की घीस काढ़ कै गेर दी। अनाज अर दूसरे खाद्य सामग्रियां की खुले व्यापार की इजाजत दे कै मुनाफा खोरां ताहिं लाभ पहोंचावण आली नीति अपणा ली। इन सारी बातां नै मिलकै ईसी हालत पैदा कर दी जिसमैं जनता के विशाल हिस्से नै जिंदगी की मूलभूत सामग्रियां के लाले पड़ण लाग लिये सैं। जनता रम्भावण लागरी सै म्हंगाई की मार करकै।
1995-98 मैं गिहूं की पैदावार मैं 50 लाख टन की गिरावट आई। चावल अर दाल पाछली जागां पै ए खड़े कदम ताल करें गये। इसतै गाम के माणसां नै दाल रोटी का और फालतू संकट होग्या। फेर गामोली बी बण बेरा ना कूणसी माट्टी के रहे सैं। भूखे मरै सैं पर कोए हाल बूझै तो बेरा सै के कहवैंगे? न्यों कहवैंगे अक तीजां बरगे कटरे सैं। हां तो रेपसीड अर सरसों के उत्पादन मैं भी 20 लाख टन घाट पैदावार हुई। तिलहन मैं 20 लाख टन की, गन्डे मैं 10 लाख टन की, आलू मैं 50 लाख टन की अर आदि वासी लोगों के मोटे खाद्यान्नों मैं भी 30 लाख टन की गिरावट आई। कई जिन्स दूसरे देसां तै मंगवानी पड़ी। फेर बी प्रति व्यक्ति खाद्यान्नां की उपलब्धता प्रति दिन 473.7 ग्राम तै घटकै 450.9 ग्राम रैहगी। दालां की 38.4 ग्राम तै घटकै 32.3 ग्राम पै आगी अर यू सारा काम एकै साल मैं हो लिया।
इस बात का म्हारे साइन्स दानां नै बेरा पाड़ लिया अक प्रत्येक व्यक्ति नै रोज कम तै कम बीस 40 ग्राम दालां की अर 478 ग्राम नाज की जरूरत हो सै। फेर इस बखत ये हालात इस सच्चाई नै ए आगै ल्यावैं सैं अक गामां की जनता भुखमरी के दरवाजे पै खड़ी ल्या करी। एक चाला और देखो देश मैं तो लोग भूख तैं मरण लागरे सैं अर हम गिहूं का निर्यात करण लागरे सां (दूसरे देसां नै भेजा सां)। गिहूं 120 डालर प्रति टन के हिसाब तै बाहर भेजण का फैसला कर लिया जबकि गिहूं की पैदावार अर उसकी आपूर्ति पै 190 डालर प्रति टन का खर्चा आवै सै। मेरै तो समझ नहीं आया यो हिसाब किताब अर जै थारै समझ आया हो तै बीरा एक पोस्ट कारड पै लिख कै जरूर भेजियो दखे भूल मतना जाइयो। रामधन सिंह किलोई आला ईब याद आवै सै। देश के प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डा. एम.एस. स्वामी नै हिम्मत करकै इसी देश विरोधी अर जनता विरोधी नीतियां कै खिलाफ आवाज ठाई सै अर चेतावनी भी दी सै। वाह डाक्टर साहब जुग जुग जियो। मेरै बड़ा घी सा घल्या जिब थारे बारे मैं बेरा लाग्या।
यू तो ट्रेलर सै जिब पूरी फिल्म आवैगी तो देखियो के बणैगी? ईबै मेरी बात घाट जचै सै फेर आन्धी सुरंग का विकास तावला ए जंचा देगा। हमनै भी खाली नहीं बैठना चाहिये अखाड़ बाढ़े तै हटकै अपणी समझ पैणी करके सिर कै मंडासा मारकै मैदान मैं उतरना पड़ैगा। मित्तर की प्यारे की अर असली बैरी की पिछान करणी पड़ैगी, निशान देही करनी होगी। पाले बन्दी करकै वार करने पड़ैंगे।
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तीजां केसे कट-रे सैं
देस पै 95 अरब 70 करोड़ डालर का बदेशी कर्जा चढ़रया सै जिसका ब्याज पाड़ण खातर भी म्हारे देश नै और कर्जा लेणा पड़ै सै, मूल तो न्यों का न्यों खड़या रैहज्या सै। यो कर्ज क्यों चढ़रया सै म्हारे देश पै? हमने कदे नहीं बूझ्या। सरकारी दफ्तरां की, सरकारी स्कूलां की, सरकारी अस्पतालां की माट्टी पलीद तो करैं देशी अर बदेशी कम्पनी, विश्व बैंक अर मुद्रा कोष मिलकै, अर इन सबके पताल मैं ले ज्यावण की जिम्मेदारी का घंटाला बांध्या जा सै इनमैं काम करणियां की कामचोरी कै, अर कै उनके निकम्मेपन कै, अर कै भ्रष्टाचार कै। अर जनता बी ईसी आडू. सै अक उसनै बी यो झूठा प्रचार साचा लागण लागज्या सै। देश मैं भ्रष्टाचार, कामचोरी अर निकम्मेपण की एकै राम बाण दवाई बताई जा सै - ‘निजीकरण’। अर म्हारे बरगे आडू. भी सैड दे सी, हां मैं हां मिला द्यां सां अक निजीकरण तै होणा ए चाहिये। देश मैं आज कै दिन बीस हजार तै बी फालतू बदेशी कम्पनी सैं, जिनै अपणा मकड़ जाल फैला दिया। अर हमैं इननै न्योतण आले सां। देश का धन लूट-लूट कै ये बदेशां मैं ले जावण लागरी सैं अर हमनै कोए एतराज नहीं इनके बारे मैं, म्हारा राष्ट्र प्रेम बेरा ना कित पड़कै सोज्या सै?
आज देश मैं 52 करोड़ तैं फालतू लोग बीस रुपइये रोज मैं दिनां कै धक्के देवण लागरे सैं। इनका हाल देख कै म्हारा सिर बेरा ना शर्म तै क्यों ना झुकता? बेरा ना किस मुंह तै आपां कहवां सां मेरा ‘भारत देश महान’।
लैक्शनां मैं कह्या जा सै अक यू जनता द्वारा जनता ताहिं चुण्या गया जनता का राज सै। फेर या बात जचण की तो कोण्या। यू राज जनता का सै के? अक यू राज बदेशी कम्पनियां का सै? अक बड्डी-बड्डी देशी कम्पनियां का सै? माफिया का राज सै के? बची खुची खुरचन मैं मुंह मारणिये बस्ता-ठाऊआं का सै? सवाल टेढ़ा सै। एक बात तै जमा नंगी होकै साहमी आली अक यू रोज रोज के बीस रुपइये कमावणिया अर इसतै कम आले 91 करोड़ लोगां का कोन्या। और चाहे किसे का बी हो।
तो फेर किसका सै यो देश? जिसकै बी इस देश की कमाई का चौखा हिस्सा हाथ लागरया सै, यू देश तो उसे का मान्या जाणा चाहिये। तो इस हिसाब तै सबतै फालतू लेगी बदेशी, कम्पनी अर उनकै लागता सा मिल्या बड्डी देशी कम्पनियां नै उस पाछे नम्बर लाग्या जमींदारां का अर घणी धरती आले अमीर किसानां का। भ्रष्ट अफसर, भ्रष्ट नेता, माफिया, चन्द्रा स्वामी बरगे जीमगे एक हिस्से नै। बासी कुशी तले की तिलच्छट हाथ आवै सै मध्यम वर्ग कै, अर टटपूंजिये कर्मचारियां कै। ईबतै समझ आगी होगी अक यो देश किसका सै? अक और बी खोल कै बतावणी पड़ैगी?
सवा सौ करोड़ तै फालतू की आबादी आले देश मैं तीन करोड़ लोग तै तीजां केसे दिन काटण लागरे सैं, अर बाकी के 97 करोड़ क्यूकरै घिसटन लागरे सैं, इस बाट मैं अक कदे तो थारे बी दिन बाहवड़ैंगे। ये तीन करोड़ कैहन्ते हांडैं सैं अक ‘हमाम मैं सब नंगे सैं’ तो हम भी कैहण लागज्यां सां ‘हां हमाम मैं सब नंगे सैं’। इसतै इन लुटेरयां का नंगापन ढंक ज्या सै, अर हमनै बेरा ए नहीं पाटता। न्योंए ये तीन करोड़ कहवैं सैं अक म्हारे ता तीजां बरगे दिन कटरे सैं, तो हम भी कहवां सां अक म्हारे तो तीजां केसे कटरे सैं। जिसनै बीस रुपये रोज मिलैं, जिसनै दस रुपइये रोज मिलैं, ओ तीजा बरगे दिन क्यूकर काटण लागरया सै, मेरी तो समझ तै बाहर सै, अर जै थारी समझ आरी हो तै मनै भी बताइयो मेरे बीरा!
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हरियाणा बिक लिया
बिजली बेच दी, बीमा कम्पनी बेचण की तैयारी सै, बैंक बेच दिये, हवाई जहाजां आला म्हकमा बेच्या जावण लागरया सै, टी.वी. बेच दिया, पब्लिक सैक्टर की और कई कम्पनी बेच दी, देश का सोना बेच दिया, देश का भाईचारा बेच खाया, देश की रेल बेचण की तैयारी करण लागरे फेर बी सरकार रूक्के मारै सै अक हम भारत माता नै चांद पै पहोंचा के दम लेवांगे। वाह रै मेरी प्यारी सरकार इसके गैहणे बेच के इसके लत्ते बेच कै अर इसकी इज्जत आबरू बेच कै चांद पै पहोंचावण का तरीका बहोत काम्मल टोहया।
देश की शिक्षा बेच खाई - यूनिवर्सिटी बेच खाई, देश का स्वास्थ्य बेच खाया - अस्पताल बेच खाये - हल्दी नीम अर बैंगन बेच खाये।
सब किमै बेच कै भी ढाक के वे हे तीन पात। विकास नै रफ्तार नही पाकड़ ली सै इब ताहिं। अड़ कै खड़या सै। म्हारी सरकार फेर बी रूक्कै मारै सै अक घबराओ मतना हम आर्थिक सुधारां की नई खेप ल्यावण लागरे सां। पहलड़े सुधार तै लिये दिये पड़ते ना आगलयां का और टोकरा ठा लिया म्हारी सरकार नै। एक बै एक माणस कितै गाम में बदमाशां कै फंसग्या। उन्नै उसका खंडुआ तार लिया, जूती कढ़वा ली अर लांगड़ काढ़ दी अर अड़बन्द कान्ही हाथ घाल दिया। माणस नै सोची अक बहोत भूंडी बनी या तै। उसनै हांगा सा मारया अर छटवा कै भाज लिया। गाम मैं आया तै सांस चढ़रे उसकै। लोग बूझण लागगे अक रै नफे के बात हुई?
माणस बोल्या - खंडवा तार लिया, जूती कढ़वा ली, लांगड़ काढ़ दी बदमाशां नै। पर मैं बी के बस मैं आऊं था। पछन्डे पछान्डे मार कै इज्जत बचा कै भाजे आया। म्हारी सरकार गेल्यां बी किमै इसी एसी बात होरी दीखे सै। अक यो बी बेच दिया अर वो बी बेच दिया पर फेर भी हम अपणे पाह्यां पै खड़े सां अर स्वदेशी, पुकारण लागरे सां। कई न्यों कैहदे सैं अक देश बिक लिया तो बिकै सौ बै, इसका म्हारी सेहत पै के असर पड़ैगा? ईब उस आडू नै कूण समझावै अक देश के बिकण का असर टाटा बिड़ला की सेहत पै घाट पड़ैगा अर म्हारी थारी सेहत पै सबतै फालतू पड़ैगा। देश बिक लिया होगा फेर हरियाणा क्यूकर बिक लिया? म्हारा इतना काम्मल मुख्यमन्त्री यो के हरियाणा नै बिकण दे सै। ईब पहली बात तो या सै अक जिब देश बिक लिया तो हरियाणा बिकण तै क्यूकर बचैगा?
नहीं बचै ना, अक फेर बी थारे जंचै सै अक बच ज्यागा तो म्हारे थारे बरगा आडू माणस कूण हो सकै सै? हमनै ताश खेलण तै फुरसत ना। हमनै एक दूसरे की टांग खिंचण तै फुरसत ना, हम फांचर ठोक तै बण सका सां, हम कढ़ी बिगाड़ भी हो सकां सां, हम स्मैकिये बी हो सकां सां, हम चोर जार भी हो सकां सां, हम बलात्कारी भी हो सकां सां, हम कसूते दारू के गुलाम हो सकां सां, हम बस्ता ठाऊ हो सकां सां, हम किसे मन्त्री के दलाल हो सकां सां फेर हम माणसै नहीं हो सकदे, हम एक नागरिक नहीं हो सकते? क्यूं? इस क्यूं का जवाब तै खूंटा ठोक धोरै भी कोण्या। ईब के बताऊं देश बिक लिया, हरियाणा बिकण लागरया अर हम बैठे ताश खेलण लागरे? भला क्यूं?
इस क्यूं का जवाब एक ना एक दिन ढूंढणा पड़ैगा। चाहे आज चाहे काल अर चाहे परसों। सोचणा पड़ैगा यू समाज कड़ै जावण लागरा सै? इसका इलाज के सै? इलाज सै ए कोण्या या बात नहीं सै। बैठ कै सोचना पड़ैगा, लड़ना पड़ैगा, समाज बदलना पड़ैगा। काम टेढ़ा सै। फेर सब किमै बिके पाछै न्यों मतना कैह दिये - ओहले हमनै के बेरा था न्यूं बण ज्यागी।
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आत्मा का रगड़ा
भारत मैं लाखां साधु-संत, स्वामी ज्योतिषी अर पुजारी इस बात का टोकरा सिर पै धरे पाज्यांगे अक आदमी के शरीर मैं परमात्मा की दी औड़ ‘आत्मा’ हो सै। मौत पाछै या आत्मा अपणा शरीर बदल लेवै सै। जिब या बात करी जा सै अक परमात्मा की दी औड़ आत्मा नाम की शरीर में कोए चीज नहीं होन्ती तो म्हारे मन मैं कई सवाल खड़े होज्या सैं अक या ‘ज्यान’ कै ‘आत्मा’ के चीज सै? मरे पाछै या ‘ज्यान’ कै ‘आत्मा’ कड़ै चाली जा सै? दूसरे माणस के शरीर में या ‘आत्मा’ क्यूकर बड़कै जन्म लेवै सै? यो सुरग अर नरक का के रोला सै? इन बातां पै गहराई तै सोच्चण की जागां आपां आसान सा रास्ता टोहल्यां सां अक ‘आत्मा’ होन्ती ए होगी। म्हारी इस दिमाग पै जोर दे कै ना सोच्चण की कमजोरी का फायदा कई ढाल के चालबाज माणस ठायें जा सैं। लूट की कमाई के साधनां पै अपणा कब्जा राखण खात्तर ये फरेबी जनता के मन मैं या पक्की जंचा दें सैं अक आत्मा हो सै। सुरग-नरक बी हो सैं अर जै आत्मा की मुक्ति नहीं हो तै या भूत-प्रेत बण कै चारों कान्हीं घूमें जा सै आर मौका पान्तैहें की साथ किसे बी शरीर मैं प्रवेश कर ज्या सै। जै लोगां के दिलां मां तै इस आत्मा का विश्वास लिकड़ ज्या तै भूत प्रेतां पर तै बी उनका विश्वास उठ ज्यागा, सुरग-नरक पै भी सवाल खड़े होज्यांगे, आगले पाछले जन्म का मामला भी गड़बड़ा ज्यावै सै। अर किस्मत का मामला भी खटाई मैं पड़ज्या सै। देखे इस परमात्मा की आत्मा के कमाल जी। एक दूसरी आत्मा सै जो माणस के भीतर हो सै अर उसकी गैल्यां ए मर बी जावैं सै। आत्मा नै कुछ लोग इच्छा शक्ति के रूप मैं देखैं सैं। कुछ लोग इसनै भीतर की आवाज भी कहदें सैं अर कुछ इसनै अन्तरात्मा की पुकार का नाम बी दे दें सैं। ये दोनू मामले न्यारे-न्यारे सैं। दूसरी आत्मा माणस नै इन्सान बणावण मैं, उसनै कुदरत तै टकरले कै नई खोज करण मैं, आत्म विश्वास बढ़ावण मैं, बहोत बढ़ियां ढालां मदद करैं सैं, माणस कै पूरा साहरा लावै सै। हां तो आज जिकरा पहलड़ी आत्मा का सै जो हमनै अपनी आंगलियां पै सारी जिन्दगी नचायें जावै सै।
हर होवण आली घटना का कोए न कोए कारण जरूर हो सै अर हर घटना कुदरत के कुछ नियमां के तहत हो सै। जै आपां परमात्मा की दी औड़ आत्मा की बाबत बताई गई सारी बातां की जांच परख गहराई तै सोच समझ कै तर्क की कसौटी पै करां सां तै हमनै या बात समझण मैं वार कोनी लागदी अक यू लूट खसोट का सिस्टम (गोरख धंधा) कायम राखण का हथियार सै। जै या आत्मा सर्वशक्तिमान सै तो अपणी मर्जी तै आवै सै। माणस इसमैं कोए दखलन्दाजी नहीं कर सकदा। पर जै माणस जहर खाकै मरज्या सै तो उसके मरतें ए आत्मा शरीर नै छोड़ के डिगरज्या सै। इसका मतलब साफ सै अक इस आत्मा नै शरीर तै बाहर करण ताहिं आदमी ए जिम्मेदार सै। जै या आत्मा सर्वशक्तिमान होन्ती तै जहर खाये पाछै बी आदमी नै जिन्दा राखती अर उसमैं रहन्ती। कोए स्वामी न्यों बी कैहन्ता पाजयागा अक जहर बी माणस नै आत्मा ए खवावै सै। मान ल्यो किसे की आत्मा नै ओ चोला छोड्डण की त्यारी कर ली अर अपणे शरीर ताहिं जहर खाकै मरण का हुक्म दे दिया। ओ जहर खावणिया माणस जहर खाकै बेहोश होज्या सै अर उस माणस नै इलाज करकै डाक्टर बचालें सैं तो फेर उस सर्वशक्तिमान आत्मा के हुक्म का के हुया? न्यों बी कह्या जा सै अक या आत्मा नंगी तलवारां तै बी नहीं डरती। इस आत्मा नै कोए भी हथियार काट नहीं सकदा, आग जला नहीं सकदी, अर पाणी डबो नहीं सकदा कै गला नहीं सकदा। या आत्मा तै अमर सै, निडर सै। फेर असल मैं देखण मैं आवै सै अक जिब कोए संकट (ज्यूकर बाढ़) आवै सै तो कई सौ माणस डूब के मरज्यां सैं अर उनकी आत्मा उनका शरीर छोडज्या सैं, इसका मतलब ये आत्मा संकट का मुकाबला करण तै डरैं सैं। कई न्यों कैहदें सैं अक जै परमात्मा आली आत्मा ना होती तो बढ़िया विचार किततै पैदा होन्ते? जै ये आत्मा ए आच्छे विचार माणसां मैं पैदा करैं सैं तो म्हारी धरती पै पांच अरब माणस रहवैं सैं जिनमां तै घणे ए बढ़िया सैं अर घणे ए भंूडे बी सैं। तो ये भूंडे माणस जो माफ ना करे जा सकण आले जुलम करैं सैं तो उनमैं ये बुरे विचार किसनै पैदा करे? उनकी परमात्मा आली आत्मा नै? इसे भूंडे विचार पैदा करण आली परमात्मा की आत्मा के बारे मैं के ख्याल सै म्हारा? असली बात या सै अक आच्छे भूंडे काम तै म्हारा समाज अर म्हारी शिक्षा पैदा करै सै। उस आत्मा (परमात्मा आली आत्मा) गेल्यां इसका कोए रिश्ता नहीं सै, हां म्हारी इच्छा शक्ति (माणस की खुद की आत्मा) गेल्यां इसका रिश्ता जरूर सै। आज के वैज्ञानिक युग मैं तो या परमात्मा आली आत्मा माणस की इच्छा शक्ति, माणस की आत्मा आगै पूरी तरियां गोड्डे टेकगी। थोड़ा दिमाग पै जोर देकै समझण का मामला सै। फेर हरियाणे आल्यां की एक बड्डी कमजोरी या सै अक अपणे दिमाग पै जोर देकै सोच्चण का ब्यौंत घाट सै। जो और किसे नै सोच कै बता दिया उसकी हां मैं नाड़ हिला देंगे, कै ना मैं नाड़ हिला देंगे। अर जै किमै ऊक चूक होज्या तो कैह देंगे - ओहले हमनै के बेरा था इसका मतलब यू था।
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बेढ़ब संस्कृति
‘‘दखे चालदी मैं बी जो ना चलावै उसनै माणस पागल की उपाधि दे दिया करैं’’ - चान्दो बोली। क्यों के बात होगी? के काम अटक ग्या? सूरते नै जवाब दिया। ईब तनै कौण समझावै अर क्यूकर समझावै। न्यों कह्या करैं सैं अक सोवन्ता औड़ माणस तो ठाया जा सकै सै पर दड़ मारे औड़ माणस नै क्यूकर ठावै? चान्दो नै नाराजगी तै कहया। उसनै फेर होंसला सा करकै कह्या अक तनै नहीं बेरा अपणे बेटे कर्मबीर नै मास्टरी की दरखास दी सै। सुण्या सै घणीए जागां लिकड़ री सैं। सूरता बोल्या अक भरया होगा फारम, दी होगी दरखास इसमैं मेरा के जोर चालै सै। किस्मत मैं होगी मास्टरी तो कौण हाथ अड़ा सकै सै। चान्दो न्यों के हार मानण की थी। वा बोली अक तकदीर वकदीर कुछ ना। भाज दौड़ करनी पड़ैगी। किसे मन्त्री तै सढ़ा लाणा पड़ैगा। कोए बिस्बास का बिचौलिया थापणा पड़ैगा। आजकाल बिचौलिए बी तो थोथे लिकड़यावैं सैं। जे बेटे की नौकरी लाग ज्यागी तो समझो मैं तो गंगा जी न्हाई जांगी। अपणे हल्के आला एम.एल.ए. बी सुण्या सै मन्त्री बणग्या। उसकी तो दांत काटी रोटी सै तेरी गेल्यां। बेढ़ब गेल्या तो तेरा पूरा ढब सै।
जिब ओ एम.एल.ए. नहीं बण्या था तो सुरते के घरां ए पड़या रहया करता। गाम मैं तो जी नहीं लागता अर शहर मैं उसके धोरै इनतै न्यारा ठिकाना नहीं था। ऊं मन का मौजी माणस सै, यारां का यार सै। खाओ अर खाण दयो यो उसका सिद्धांत कदे कदीमी का सै। जिब बढ़िया मूड मैं हो तो कहवैगा अक मारो खाओ पर हाथ ना आओ अर जै पकड़े जाओ तै अकड़ ना दिखाओ। बस जी हजूरी तै अर कै पीसे तै काम बनाओ। मन्त्री बणण नै बणग्या पर भाईके सिद्धान्त वेहे सैं। जिब ओ किमै बी ना था तो कई बै चान्दो ताहिं कह्या करता अक के करूं भाभी क्यूकर नौकरी ल्वाऊं, राजपाट तो मेरे हाथ मैं कोण्या। जै कदे दा लागग्या तो सबतै पहलम बेटे की नौकरी का जुगाड़ करूंगा। थारे स्यान के मेरे पै इस उमर मैं उतरैं सैं। ईब मन्त्री बणे पाछै तो म्हिने हो लिए भाई नै फुरसतै कोण्या लागली भाभी तै फेटण की। रोज बेढ़ब की बाट देखै सै भाभी। भाभी नूनामल नै बेढ़ब कहया करती।
सूरते के दिमाग मैं आई अक नूनामल ईब तो बिचास कै देखना ए चाहिये। सूरता पहोंचग्या चण्डीगढ़ एम.एल.ए. होस्टल मैं। उड़े तै घणी ए वार मैं बेरा चाल्या अक नूनामल की कोठी तो सात सैक्टर मैं सै। उड़ै आया। बाहर घणीए भीड़ लागरी थी, ओ बी जाकै बैठग्या उनमैं। एक पर्ची पै नाम लिख कै दे दिया। दो घण्टे होगे भीतरै ना बुलाया। सुरते कै बहोतै घणा छोह उठ्या पर के पार बसावै थी छोरा नौकरी जो ल्वाणा था। खैर बुला लिया भीतर। उठकै कौली भरकै फेट्या नूनामल। इतनी वार मैं तिवाड़ी जी आण बिराज्या। तिवाड़ी जी नै बताया अक छोरा एम.ए. करकै घरां बैठ्या सै। इबकै ये ठेके पै लैक्चरर लावण लागरे सैं। उसमैं उसका बी नम्बर आज्या तो कुछ तो साहरा लागैएगा। नूनामल नै तो सैड़दे सी उड़ती चिड़िया के पर गिण लिये अर न्यों बोल्या अक तिवाड़ी जी जै थारा काम नहीं होगा तो फेर किसका होगा। छोरे के नम्बर कितने ए अक सैं? सत्तर फीसदी नम्बर लेरया सै और के कहया करैं सैक्ट भी पास करराख्या सै। खेलां मैं बी घणा अगाड़ी था। नूनामल बोल्या अक तिवाड़ी जी समझो थारा काम होग्या। सीरनी बांटो जाकै। या तो अपनी संस्कृति की बात सै ना अक काम होए पाछै लोग सरीनी बाँटया करते तो अपनी संस्कृति तो आपां नै भूलनी नहीं चाहिये। आज मैं अर पहलम मैं बस फर्क इतना सा सै अक पहलम सीरनी काम होए पाछै बांटया करते आजकाल काम होए पहलम बांटैं सैं।
तिवाड़ी जी नै तो झट गोज मैं हाथ घालया अर एक मोटा सा लिफाफा काढ़या अर नूनामल ताहिं दिया अर बोल्या अक हमतो सीरनी पहलम बी अर पाछै बी बांट देंगे पर काम हो जाणा चाहिये। नूनामल नै लिफाफा गोज कै हवालै करया अर न्यों बोल्या अक फिकर मन्ना करो। जाकै ताण कै सो ज्याओ। तिवाड़ी चाल्या गया तो नूनामल नै कहया अक मैं कई दिन तै आण की सोचूं था पर फुरसतै कोण्या लागी। सूरता तो किसे और दुनिया मां तै उल्टा आया। नूनामल बोल्या - किमै काम सै तो तावला बता मनै तीन बजे मीटिंग मैं जाणा सै। रात नै डटिये घर बिध की बतलावांगे। सूरता बोल्या - काम के हो था, मैं तो बस फेट्टण आग्या था। नूनामल बोल्या - छोरे का काम हो ज्यागा तूं घबरावै मतना। सुरते कै थोड़ी शान्ति होई। फेर चालता-चालता नूनामल बोल्या - गाम मैं स्वागत पूरे ताम-झाम तै होणा चाहिये। इक्यावन हजार तै कम की माला के कोए मतलब नहीं। या सुआगत करण की रिवाज म्हारी पुरानी संस्कृति मैं सै। सुरता चाल पड़या उल्टा। बस मैं बैठ्या सुरता सोचै था - या नई संस्कृति बी मारैगी अर पुरानी संस्कृति ऊं बांसैगी। मरण सुरते का अर ठाठ नूनामल के, या कोणसी संस्कृति?
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नैतिकता की शिक्षा
जब भी नैतिकता की बात चालै तो मान लिया जा सै अक लोगां नै धर्म कर्म छोड़ दिया ज्यां तै चरित्र अर नैतिकता तले नै जाते जा रहे सैं। फेर असल मैं या बात ठीक इसकै उल्ट सै। इन धर्मां नै म्हारी सोच मैं अर म्हारी नैतिकता मैं जितना जहर घोल दिया उतना किसे चीज नै नहीं घोलया। जगन्नाथ के मन्दिर मैं सैंकड़ों मन दाल अर चावल हजारों पुजारियां की खातर रांधे जावैं सैं। इस मन्दिर के जय विजय दरवाजे पै पत्थर की ईसी मूर्तियां देखी जा सकैं सैं जिनमैं देवता जगन्नाथ विभिन्न ढाल के सम्भोग आसनां मैं विराजमान सैं। मन्दिर की बाहर की दीवारां पै औरत मर्द के पूरे कद काठी के अन्दाजे के हिसाब मैं 64 सम्भोग आसन खुदे औड़ सैं जिनका वर्णन सुण्या सै वात्सायन के कामसूत्र मैं लिख राख्या सै। न्यों बतावैं सैं अक रात के दस बजे मन्दिर के दरवाजे बन्द कर दिये जावैं सैं अर इसमैं नृत्य भजन हो सै। यो नाच गाना मन्दिर मैं सेवा करण आली 20 लड़कियां मां तै एक नै करना पड़ै सै। इस नाच गाने नै जगन्नाथ की निर्जीव मूर्ति अर संगीतकार ब्राह्मण पुजारी ए देखैं सैं। ज्यों-ज्यों नाच गाना शिखर पै पहोंचै सै नाचण आली छोरी अपणे लत्ते तार बगावै सै अर पूरी मगन हो कै नाच करै सै। आखिर मैं वा या कैहकै मूर्ति पै पड़जया सै - हे भगवान मैं थारी दुल्हन सूं, थाम मेरे तै प्यार करो। या जगन्नाथ की निर्जीव मूर्ति फेर उसतै प्यार करै सै अक ओ जिन्दा ब्राह्मण, इस बात का किसे नै नहीं बेरा। नाच्चण आली ये लड़कियां... जो कि... देवता जगन्नाथ की सेवा करती-करती सेवा मुक्त होज्यां सैं, पवित्र नगर जगन्नाथ पुरी की गलियां मैं वेश्यावृत्ति करकै अपना पेट पालैं सैं अर उनके ग्राहक ईसे भगत हों सैं जो हजारां की संख्या मैं आड़ै पूजा अर्चना करण की खातर आवैं सैं। न्योए साईं बाबा के एक अमरीकन चेले ‘‘टाल ब्रुक’’ नै अपनी किताब मैं लिख्या सै अक साईं बाबा नै मेरे तै अर फुटपाथ के दूसरे गोरी चमड़ी आले नौजवानां की गेल्यां समलिंगी बलात्कार करण की कोशिश करी थी। न्योंए बीटन जॉन लेनन के कहे मुताबक बीटल नै महर्षि महेश योगी का साथ ज्यां करकै छोड़ दिया था अक उसनै एक स्त्री श्रीमति मिया फैरो की गेल्यां बलात्कार करण की कुचेष्टा करी थी। गुरू महाराज जी का चित्र, गुप्त कैमरे द्वारा उस समय खींच लिया गया जिब ओ घर की नौकरानी नै आलिंगनबद्ध करकै चूम्मण लागरया था अर उसकी अमरीकन पत्नी उड़ैए किसे दूसरे कमरे मैं थी।
प्रथम शंकराचार्य - ‘‘आदिशंकर’’ जो खुद नै बड्डा ब्रह्मचारी अर त्रिलोकदर्शी बताया करता उसतै एक भगत नै ‘काम’ के बारे में सवाल कर दिया। उसनै अपणे भगत तै कहया बतावैं सै अक मैं ‘काम’ का जवाब इसका अनुभव प्राप्त करकै दयूंगा। न्यों कहवण मैं आवै सै अक शंकराचार्य एक ब्याहे औड़ माणस के शरीर मैं प्रवेश करग्या अर उसनै उस माणस की पत्नी गेल्यां सम्भोग करया।
जो माणस स्कूल कालजां मैं धार्मिक शिक्षा शुरू करण की वकालत करैं सैं उननै कदे न्यों सोची सै अक इन कल्पित देवतावां की काम वासना आली कथावां का बालकां के भोले-भाले दिलां पै के असर पड़ैगा? एक प्रसिद्ध वकील अर लेखक फ्रैंक स्वेन कारा नै न्यारे-न्यारे देशां मैं धर्म अर अपराध के बारे मैं खोज करी सैं। उसमैं तै एक देश सिंग सिंग मैं 100 सालां के भीतर जिन लोगां ताहिं कत्ल के जुल्म मैं फांसी दी गई उनमैं 65ः कट्टर रोमन, 21ः प्रोटैस्टैंट, 6ः हीब्रूज, 2ः मूर्ति पूजक अर एक प्रतिशत के तिहाई भाग तै भी कम धर्म नै नहीं मानणिया आले थे। इसतै एक बात तो साफ दीखै सै अक अनैतिकता की सीढ़ी पै चढ़कै नैतिकता का प्रचार करणिया माणस अर देश इतिहास मैं पिछड़ते रहे सैं। एक दौर मैं जो भारत सबतै आगै था ज्ञान के प्रचार-प्रसार मैं, जित नालन्दा अर तक्षशिला जिसे शिक्षा के केन्द्र थे जित दूसरे देशां के माणस शिक्षा ग्रहण करण आया करते ओ देश रसातल मैं क्यों चाल्या गया? इसपै कोए ठोस खोज हुई हो बेरा ना। मनै दीखै सै अक म्हारे समाज मैं धर्म की कट्टरता की अर अनैतिक काम करणियां की पकड़ नै म्हारी सोच के दरवाजे खुलणै कोण्या दिये जिस करकै नई खोज नई जरूरत के हिसाब तै भारत देश नहीं कर सक्या अर धर्म के कट्टरवाद नै इसकी सोच, इसकी समझ और भी भीड़ी कर दी। जिस करकै जो कुछ पहलम हमनै बणाया था ओ बी खत्म होन्ता चाल्या गया। अर आज बी सही बात नै तर्कशील विचार नै, जनता के हक की बातां नै हम आस्था के नाम पै, परम्परा के नाम पै, राष्ट्रभक्ति के नाम पै पाछे नै धिका द्यां सां। तालिबान आल्यां की ढालां फतवे जारी करण लाग लिये सां। इसतै देश तरक्की कोनी करै। एक बात और सै अक जो लोग मन्दिरां मैं नंगे नाच करवावण के हिम्माती सैं वेहे तालिबानी फतवे भी जारी करणिये सैं। आज सभ्य जमाने के आचरण अर नैतिकता के स्तर की तुलना मैं ये देवी देवतावां की घटिया किस्म की कथा म्हारे बालकां के मनां पै इसा ए असर गेरैंगी जिसे माइकल जैक्शन के डान्स अर कै सौन्दर्य प्रतियोगिता अर कै टी.वी. की बाजारू संस्कृति। हमनै बालकां ताहिं धर्म के नाम पै ईसी झूठी अर घटिया नैतिक शिक्षा देवण तै तो परहेज करना ए चाहिये।
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या चाल तरक्की की
जुलाई 1992 में सरकार अपने बिदेशी ऋण दातावां नै संतुष्ट करण ताहिं बैंक ऑफ इंग्लैंड की तिजोरी मैं लगभग 47 टन सोना भेजण नै मजबूर होगी थी। कुछ दिन तो सांस आया पर फेर सांस चढ़ा दिये। विश्व बैंक नै एक तरफा डिग्री का नोटिस भेज दिया। भारत एक आंख तै हंसै था अर दूसरी तै रोवै था। और बी कई देशां गेल्यां ईसी ए बणरी थी जणों तै ये सारे एकै आवे के बास्सण हों। जो कर्जा देवै उसकी दाब कर्जा लेवणिया पै कितणी होसै उसनै भुगतभोगी ए बता सकै सै, हम तो अन्दाजा ए ला सकां सां। कर्जा देणिया घरुड़ कै तै ब्याज लावै अर कदे कहवैगा मेरी भैंस नये दूध होसै इसनै लेज्या, कदे हुकम दे देगा मेरा किल्ला बाहदे, कदे कहदे बालकां की मां नै खंदा दिये रोटी पोंचाज्यागी। दारु पीवण का अड्डा बी कर्जा लेवणिया के घर मैं ए बणावैगा अर कई बै तो इज्जत का गाहक बी होज्या। ओं न्यों कहवैगा अक भाई मैं तो सभनै एक आंख तै देख्या करूं। कर्जा लेवणिया उसकी एक-एक रग नै जाणदा हुया बी उसका हुकम मानै अर होंठ बन्द राखै।
इसे ढालां अमीर देश गरीब देशां नै कर्ज देन्ती हाणा बेरा ना के-के शर्त ला देंगे, इननै मानै जिब मरगे अर ना मानै तो कर्ज कोण्या मिलै। ईब कई माणस न्यों कहदें सैं अक कर्ज लेवण मैं हर्ज केसै? फेर उन शर्तां के बारे मैं विचार नहीं करैं, दिमाग पै कती जोर दे कै राजी कोण्या अक ये ब्याज की शर्त केसैं? कई कहदेंगे अक हमनै सारा बेरा सै। क्यों? बेरा सै थामनै अक न्यों ए धूल मैं लठ मारण लागरे सो? कई शेर न्यों कहदें रै हमनै इनकी शर्तां तै के लेना-देना म्हारे तो तीजां केसे कटरे सैं। फेर इन आडूआं नै न्यो कूण समझावै अक घणे दिन काच्चे कोण्या कटैं इस ढालां तो। ये शर्त सैं - सामाजिक सेवा के कामां के खर्च मैं कटौती (शिक्षा अर सेहत), खाद्यान्न पै सब्सिडी का खात्मा, सार्वजनिक क्षेत्र नै निजी क्षेत्र के हाथां बेच्चण का काम, जितने बीमार कारखाने सैं उननै बन्द करण की योजना, बिदेशी पूंजी नै सून्नी छोड़णा, बैंकां अर बीमा क्षेत्र नै बिदेशी कम्पनियां नै देणा। आई किमै समझ मैं अक पढ़दे-पढ़दे नींद आवण लागगी। बेरा सै मनै पर के करूं बातै इतनी गहरी सैं। ये समझणी जरूरी सैं नातै देश फेर गुलाम होज्यागा।
1991 मैं मुद्रा कोष की गैल भारत नै एक ऋण समझौता करया अर गैल की गैल विश्व बैंक का ढांचागत समायोजन ऋण लिया। ये सारे पापड़ बेले तो थे भुगतान संतुलन की कठिनाई दूर करण नै अर वित्तीय घाटा कम करण की खात्तर पर बणगी उल्टी। हम और घणे दाब मैं आन्ते जाण लागरे सां अर म्हारा कर्जा आये दिन बढ़ता जासै। सन् 1998 ताहिं तो करज 95 अरब 70 करोड़ डालर होग्या बताया। इसके रुपइये कितने होगे यो हिसाब तम आप्पै ए ला लियो। इसकी दाब मैंए म्हंगी बिजली बेचै सैं वे हमनै अर और भी कई ढाल बांह मरोड़ैं सै म्हारी।
घरेलू खरीद की ताकत सिकुड़गी अर बिदेशी पूंजी बेरोक-टोक आवै जावै सै। अब इसतै व्यापार का जो संयोग बणै सै ओ भारत के उत्पादकां का दिवालिया काढ़ कै छोड्डैगा। कर्ज भुगतान का बोझा बढ़ता जावण लागर्या सै। कर्ज उल्टा देवण ताहिं और कर्जा लेना पड़र्या सै। ज्याण के लाले पड़रे सैं। गरीब ज्याण बचावण की खात्तर नये ढंग के हथियार पिनावण लागर्या सै। गरीब की पिटाई मैं उसके घणखरे नुमाइंदे भी शामिल सैं।
विश्व बैंक नै बेरा था अक थारी इन नीतियां करकै गरीब मूधे मुंह पडैंगें। ज्यूकर सर्कस मैं जाल हुया करै सर्कस आल्यां की हाड्डी-पसली टूटण तै बचावण की खात्तर। न्यों ए मुद्रा-कोष नै बेरा था अक इस उदारीकरण अर वैश्वीकरण करकै घणे माणसां की कड़ टूटैगी तो इननै एक ‘सेफ्टी नेट’ बणाया पर फेल यो भी होग्या अर हाथ-पां टूटण आल्यां की गलेट लागरी सैं। पर भारत की सरकार खड़ी-खड़ी जुगालै सै। आज सब किमै बाजार की ताकत कै साहमी माथा टेकग्या दिखै सै। थोड़े से अमीरां कै सूत भी खूबै ए आरी सै। बाटा नै पहलम अपणी फैक्ट्री के संगठित मजदूरां ताहिं 80 रुपइये की दिहाड़ी देनी पड़या करती। विश्व बैंक का साहरा लेकै ये मजदूर तो घरां नै चालते कर दिये उसने अर ईब स्वतन्त्र मोचियां धोरै ठेके पै 25 रुपइये दिहाड़ी पै काम करवावै सैं। अमीरां के बालक एयर कन्डीशन्ड घर में रहवैं, एयर कन्डीशन्ड बस मैं एयरकन्डीशन्ड स्कूल मैं पढ़ण जावैं। उननै के बेरा पोह का जाड्डा किसा हुया करै? उन ताहिं हर चीज हाजिर सै। समाज आड़े ताहिं गिर लिया अक औरत की भी बाजार मैं बिठा कै और चीजां की ढालां बोली लुआदी। वाह रै तरक्की तेरे के कहणे? गंगा के पाणी मैं जहर घोलणिये इसकी पवित्रता के ठेकेदार बणे हांडैं सैं। जै याहे रफ्तार रही अर इसे दिशा मैं रही तो आगले दस साल मैं के होज्या कुछ नहीं कहया जा सकता। सत्यानाश होलेगा तो न्यों कहोगे ओहल्ले भाई! हमनै के बेरा था अक न्यू बणज्यागी?
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रलदू बनाम बीरमती
रलदू के घरां बी लैक्शनां की चर्चा थी अक कूण जीत्या अर कूण हारया? रलदू की घर आली बीरमती नै बात बातां मैं कहया अक बंगाल मैं कामरेडां नै झंडे गाड़ दिये। छटी बरियां फेर जीतगे। रलदू कै तो तेल किसे छींटे लागगे। कसूता छोह मैं आकै बोल्या अक तेरे तै कई बै कैहली सै तूं इन कामरेडां का नाम मतना लिया कर। एक बर तो बीरमती डर सी गई फेर वा भी पाला पकड़गी। बोली के बात? के कमी सै इन कामरेडां मैं? हवाला कांड मैं इनका नाम था के? रलदू बोल्या - ये तो धोरे कै बी कोण्या गये हवाला कांड कै। इनका के ब्यौंत था। घणे डरपोक सैं ना ये तै। बीरमती - फेर इनका नाम तहलका काण्ड मैं आरया सै के? रलदू ना तहलका काण्ड मैं भी कोण्या आरया। कोए बी ना दीख्या इन मां तैं तो। बीरमती किसे बी काण्ड मैं इनका नाम आया हो? रलदू नै खूबै सिर खुजाया फेर किसे बी काण्ड मैं किसे बी कामरेड का नाम कोणी पाया उसनै। बीरमती नै होंसला करके बूझया। ये कामरेड घड़ी चोर सैं के? रमलू बोल्या ना। बीरमती थोड़ी सी और होंसले मैं आई अर बोली - किसे और केस मैं इनपै भ्रष्टाचार के मुकदमे चालरे सैं कै? रलदू - ना भ्रष्टाचार के मुकदमें बी कोण्या चाल रे। बीरमती - ये कामरेड झूठे सैं के? रलदू खीज सी कै बोल्या - ना झूठे बी कोण्या। बीरमती की आवाज ऊंची होती गई अर बोली - ये देश तै गद्दारी करण आले सैं के? रलदू - ना ये तै देश पै ज्यान कुर्बान करणियां सैं। बीरमती पै रहया नहीं गया अर वा जोश मैं आकै बूझण लाग्गी झूठ ये बोलैं ना, चोरी ये करते ना, भ्रष्टाचारी ये ना, किसे बी काण्ड मैं इनका नाम कोण्या, तो फेर तेरै तेल किसे छींटे क्यूं लागैं सैं? रलदू चुप होग्या। दिमाग पै बहोत जोर दिया अक कोए तै खोट ढूंढै कामरेडां मै। लिकड़े की गेल्यां धरती नै कुरदें गया। फेर एकदम बोल्या - गांधी कै गोली इन कामरेडां नै मारी थी। बीरमती हंस पड़ी अर बोली - तनै इतना बी न बेरा अक गांधी कै गोली किसनै मारी थी। नाथू राम गोडसे का नाम सुण्या सै ना, उसनै गोली मारी थी गांधी कै अर यो गोडसे आर.एस.एस. का माणस बताया। रलदू पै कई मटके पाणी सा पड़ग्या। फेर थोड़ी सी वार मैं बोल्या - चाहे तूं और किसे की बी बड़ाई करले पर इन कामरेडां की बड़ाई मत करया कर। मनै ये कती आच्छे नहीं लागते। म्हारला नेता कहवै था अक इन कामरेडां कै घर परिवारै ना होन्ता। ये मां नै मां अर बाहण नै बाहणै कोण्या मानते। बूढ़यां कै बतावैं सैं गोली मरवादें सैं। इसे माणसां नै तो सूली पै लटकादे। बीरमती सैड़दे सी बोली - आज ताहिं किसे कामरेड का नाम बलात्कार करणियां मैं पढ़या सै। रलदू नै दिमाग पै जोर मारया अक अखबारां की खबरां मैं कदे कोए नाम आया हो फेर कोण्या पाया। बीरमती बोली - बूढ़यां का बहोत मान सम्मान करैं सैं ये अर औरत नै बराबर का इंसान मानैं सैं। थारे बरगे कोण्या ये। तनै बेरा सै अक नहीं? रलदू बोल्या - मनै के बेरा? बीरमती - ना बेरा तै फेर क्यों सूधा लीतरां इनके सिर पै चढ़रया सै। रलदू फेर चुप। छोह मैं आकै बोल्या - कुछ भी हो मनै इन कामरेडां का नाम आच्छा नहीं लागता। बीरमती क्यों ना लागता न्यों तै बताना ए पड़ैगा। बहोत दिन तनै मैं भी अंधेरे मैं राखली। रलदू - ये दो खूड बचरे सैं जै ये आगे तो इननै बी खोस लेंगे। बीरमती ईब तो कामरेडां का राज कोण्या आड़ै तो घणखरां के खूड ईब किसनै बैंकां मैं धरवा दिये। अर दो किले आले के कित खूड खोसे बता। बंगाल मैं इतनी धरती बांटी सै। जितनी पूरे देश में नहीं बांटी। थोड़ी धरती आल्यां धोरै धरती नहीं खोसी बडै़ की। रलदू - क्यों झूठ भकावै सै धरती खोसनिया धरती क्यूकर बाटैगा? बीरमती - या तै थारी सरकार बी मानै सै अक उड़ै धरती बंटी सै। कै तो इनमैं दोष बता अर ना मेरी बात मानले इन कान्ही देखण लाग ईब तै।
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ज्याण पाणी मैं
अपणै एक कहावत सै अक ‘जल जीवन सै’। फेर यो इबै बेरा पाट्या अक यू जल राजनीति बी सै। जल जीवन खातर जितना जरूरी सै, राजनीति खातर बी रोजाना उतना ए जरूरी होन्ता जावण लागर्या सै। दो पड़ौसी देसां मैं इतनी तकरार नहीं देखण मैं आन्ती जितनी आड़ै दो प्रदेशां बिचालै रोज देखण मैं आवै सै। कितै कर्नाटक अर तामिल नाडू मैं लाठा बाजरया सै, कितै पंजाब अर हरियाणा लठ ठायें हांडैं सैं। जिब इसे विवाद हो सैं तो राजनीति बी गर्मा ज्या सै अर जिब राजनीति गर्माज्या सै तो उसपै नेतावां के स्वार्थ की रोटी बी सही सिकैं सैं। नेता आपणी जनता का हितैषी दिखण का कोए मौका हाथ तै नहीं जावण देना चाहन्ते। दोनों कान्ही बंद करे जावैंगे, आन्दोलन चलाया जागा अर जनता नै अपणे पक्ष में खड़या करकै चुनाव जीत जावैंगे।
जै चुनाव तै पहलम कोए पानी का झगड़ा उठ ज्यावै तै यो बहोतै घणा फायदेमन्द हो सै ज्यूकर एक बख्त मैं ताऊ देबीलाल की खातर यू साबित हुया था। फेर ईबकै एक कमाल यू हुया अक कर्नाटक अर तामिल नाडू के बीच का पानी का झगड़ा ना तै चुनाव तै पहलम उठया अर ना चुनाव के बीच मैं किसे नै ठाया। ठीक उल्टा हुया। जिब इन दोनूआं के लैक्शन हो लिए, जिब जय ललिता नैं हाथ फैंक फैंक के गाने गा लिये, जिब जाकै यो विवाद हटकै खड़या हुया सै। सारे लक्शन हो लिए, जिब सुषमा स्वराज कन्नड़ बोल के उत्तर कान्ही कोए दूसरी भाषा बोलण नै आली अर जिब हेगड़े जी इसपै अपणा गुस्सा जाहिर कर चुके अक किसेनै उसका साथ नहीं दिया। जिब जाकै यो विवाद हटकै खड़या हुया सै। सारे लैक्सनां मैं या उपलब्धि दोहराई गई अक कावेरी विवाद सुलझा दिया फेर लागै सै यो और घणा उलझ ग्या सै।
न्योंए हरियाणा पंजाब का मसला सै। ईब तै पंजाब मैं बादल अर बी जे पी की सरकार, हरियाणा मैं चौटाला साहब अर बी जे पी की सरकार अर दिल्ली मैं भी बी जे पी की सरकार तो फेर यू पाणी का फैंसला अधर मैं क्यूं लटक्या आवै सै ईब ताहिं? कीड़ी का घाट कड़ै सी अक नीम तलै। या किसी दोस्ती बादल अर देबीलाल की जो जनता के हितां तै ऊपर अपणे हितां नै राखै। कई माणस गामां मैं पाज्यांगे न्यों कैहन्ते अक देवीलाल मरण तै पहलम जै पाणी और दिवा दे तै चौटाला नै सांस आज्यागा ना तै इस लैक्शन मैं चारों खाने चित्त जागा।
ईब लोगां नै कूण समझावै अक हाथी के दान्त खावण के और हों सैं अर दिखावण के और होंसै। बिना पाणी खेती सूनी अर बिना खेती किसान सूना अर किसान सूना तै जहान सूना अर जहान सूना तो दिल का अरमान सूना, फेर घर परिवार सूना अर सूने पन नै तोड़ण खात्तर फेर दारू का सहारा कै स्मैक का लारा। फांसी खा कै मरज्या तै कहवैं आत्महत्या करग्या बिचारा, किस्मत का मारया। जिब तांहि या सोच रहवैगी जिन्दगी के बारे मैं तो काम कोनी चालै। जिन्दगी नै देखण का नजरिया बदलना पड़ैगा। मिल बैठकै पाणी का लफड़ा सुलझाणा पड़ैगा। बड्डे भाइयां ताहिं समझाणा पड़ैगा अक छोटे भाई का हक नहीं मार्या करते। इतना लाम्बा लटक लिया यू पाणी का अर एस वाई एल के खोदण का मामला। माणसां नै आस छोड़ दी पर फेर बी मां बीच कै मसकोड़ा सा मारैं सैं वोट गेरदे सै, अर सोज्यां सैं। दूध की रूखाली बिलाई बिठा राखी अर फेर पाणी की बाट देखां तो म्हारे तै बड्डा आडू. कूण हो सकै सै?
एक बात जरूर सै अक ईसा निपटारा तो करवाइयो मतना जिसा कावेरी के पाणी का करवाया था। अक फैंसला हो भी गया, अर बात उड़ै। इसतै आच्छा तो फैसला नाए होवै। ईब न्यों तो तसल्ली सै अक फैंसला कोण्या हुया सै कदे तो फैंसला होवैएगा। अर एक दूसरी बात और बी सै अक या नहर खोदे पाछै बी म्हारी जरूरत पूरी कोण्या होन्ती। म्हारी जरूरत सै 400 यूनिट की अर नहर खोदे पाछे बी हमनै 200 यूनिट तै फालतू पाणी नहीं मिलता (कुल मिलाकै - एस वाई एल तै तो 200 यूनिट मिलैंगी) यो बाकी का पाणी 200 यूनिट बचग्या इसका जिकरा कोए नहीं करता। अर म्हारे बुद्धिजीवी भी बेरा ना के जमाल घोटा सा पीरे सैं अक उननै इसी बातां पै सोचण की फुरसतै कोण्या। आज सोचां अर कै काल सोचां इन बातां पै सोचना तो पडै़एगा।
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बिना होश का ‘जोश’
गाभरू छोरे-छोरिया में ‘जोश’ फिल्म बहोत सराही गई। बढ़िया कलाकार चोखी कहानी, सुरीला संगीत, एक्शन अर चूमा चाटी तै भरपूर मसाले आली या फिल्म बाक्स आफिस पै हिट बतावैं सैं। फिल्म के किस्से मैं दो गिरोह सैं एक ईगल गिरोह सै जिसका सरदार मैक्स (शाहरूख खान) सै उसकी एक जुड़वां बहन (ऐश्वर्या राय) सै अर उसके गिरोह के कुछ और माणस सैं। दूसरे गिरोह का मुखिया (शरद कपूर) सै, उसका एक छोटा भाई सै (चंद्रचूड़सिंह) अर और कुछ गुण्डे। इस गिरोह का नाम बिच्छू सै। गोआ के किसे शहर की तसवीर दिमाग मैं राख कै बणाई गई सै या फिल्म। ईगल अर बिच्छू गिरोह मैं कसूती दुश्मनी सै। इन दोनूं गिरोहां का काम मकान खाली कराणा सै ठेके पै अर छोटे मोटे मसल्यां मैं दादागिरी दिखा कै निबटावण के पीस्से लेवण का सै। यू सिलसिला चालता रहवै सै।
फिल्म नया मोड़ जिब लेवै सै जिब बिच्छू गिरोह के दादा शरद कपूर के छोटे भाई चन्द्रचूड़ सिंह तै ईगल गिरोह के सरदार (शाहरूख खान) मैक्स की बाहन का इश्क शुरू होज्या सै। चन्द्रचूड़ सिंह पिटाई खून खराबे के खिलाफ सै। इसे कारण ओ अपणे भाई नै मजबूर करै सै अक ओ एक दुकान खोल कै ईमानदारी की रोटी खा कमावै। चूड़ का मानना है अक सच के जरिए जीत हासिल करनी चाहिए। ज्याएं करकै औ ईगल गिरोह की कारस्तानी अपने भाई तै कई बै छिपमा राखले सै, बतान्ता नहीं। बात आड़े ताहिं चाली जा सै अक जिब शाहरूख खान उसके भाई शरद कपूर को गोली मारकै खून करदे सै तो ओ कोर्ट मैं ब्यान देवै सै अक मैक्स (शाहरूख खान) नै गोली अपणा आपका बचा करण तांहि चलाई थी। ओ अपणे भाई धोरै आला चाकू भी अदालत मैं पेश करै सै। जिसनै ओ मैक्स नै मारण गया था। चन्द्रचूड़ के इस व्यवहार नै देख कै शाहरूख खान भी या बात मानले सै अक मार पिटाई खून खराबे का यू राह ठीक कोन्या।
असल मैं इस फिल्म के निशाने पै शहर मध्यम वर्ग का नौजवान सै। एक बात और सै अक हालांकि या फिल्म हिंसा कै खिलाफ सन्देश देवै सै फेर जिब गाभरू सिनेमा हाल तै बार लिकड़ैं सैं तो उसपै मैक्स अर बिच्छू की दादागिरी सिर पै चढ़ कै बोलै सै जिस तरीके तै खून खराबा इस फिल्म में दिखाया गया सै वाह चीज गाभरू छोरे-छोरियां पै घणी करड़ी छाप छोड्डे सै बनिबस्त इसके अक खून खराबा बुरी बात सै।
इस फिल्म की सबतै बड्डी कमजोरी याह भी सै अक या फिल्म मैक्स के अर बिच्छू के दादा बणण के असली कारणां पै अपणा कैमरा फोक्स कोन्या करती। इसके राजनैतिक अर सामाजिक कारण सैं फेर उनके तो या फिल्म बारणे के आगे कै बी कोन्या लिकड़ती। आज समाज मैं जो निराशा अर हताशा जगां-जगां पै देखण मैं आवै सै अर नौजवान उस करके हताश सै, उसका बी कितै कोए ‘सीन’ नहीं दीखता पूरी फिल्म मैं। इस हिसाब तै देखां तो या फिल्म पटी तै उतरगी। दिशाहीन होगी। इसके मुकाबले मैं 80 के दसक मैं बणी फिल्म ‘अंकुश’ पै नजर डालां तो इसमैं भी गिरोहबाजी सै फेर बेरोजगारी के कारण पैदा हुई हताशा बी उस फिल्म मैं दिखाई गई थी। शिक्षा जगत अर समाज का भ्रष्टाचार बी दिखाया था।
आज के नौजवानां की भावना गेल्यां घणा कसूता खेल खेलगी या फिल्म अर हम बी उसकी तरज पै मैक्स अर बिच्छू बणण की प्रैक्टिस मैं जुटगे। रोग की असली रग तै दूर कर दिये। वाह रै जोश फिल्म तेरे क्या कहणे।
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पर पहल कूण करै
म्हारे देस की गंगा जमुनी तहजीब की रक्षा का सवाल क्यूकर हल कर्या जा? न्यों तो सब किलकी मारैं सैं अक नास हो लिया। पर यू नास कूण करण लागर्या सै इसपै सारे न्यारी-न्यारी बात करैं सैं। पर एक सवाल यो बी सै अक म्हारे समाज मैं जो किमै थोड़ा घणा सही अर ठीक सा काम बच बी रहया सै जो आर्थिक नीति की नई झलां तै क्यूकर बच्या रैहग्या यो क्यूकर बचाया जा अर इस नई आर्थिक नीति की के काट टोही जा। दलितों, पिछड़ों अर नारी समुदाय मां तै उभर कै आई दावेदारी की भावना अर पिछड़े इलाक्यां के समूचित विकास बरगे नये अर पुराणे मुद्दयां पै जो हलचल होण लागरी सै इन ताहिं के दिशा दी जावै? म्हारे पर्यावरण का भट्ठा बठा कै गेर दिया, ईसी परियोजना शुरू करदी जो फायदे की जागां नुकसान फालतू करैंगी। बेरा ना किसे-किसे बम बणा लिये, ईब इनपै रोक कूण लावैगा? एक बम तो निर्जीव नै कुछ नहीं कहवै पर जीव नै मारैगा। भ्रष्टाचार नै सारे राज पाट की चूल हिला कै धरदी।
कोए मानो अर चाहे मत मानो अक म्हारे नागरिक जीवन के सैन्यीकरण तै लेकै अन्ध राष्ट्रवाद के लबादे मैं अल्प संख्यक विरोध, श्रद्धा पै आस्था इन बातां का असर म्हारे समाज मैं बधण लागर्या सै। देश की आजादी पाछै हमनै जो अपणे देश की तरक्की की राही टोही थी, उसके फल के रूप मैं सै यो सब कुछ। अमीरपरस्त मिलीजुली अर्थ व्यवस्था के तहत म्हारे खून पसीने की कमाई तै जो पब्लिक सैक्टर खड्या करया था उसतै आड़े कै टाटा बिरला हर खूब मोटे होन्ते चाले गए। अर इसे बीच मैं म्हारे बीच मां तै एक पैंट कोट आला बाबू जी अर उसतै ऊपर अफसर बी पैदा होग्या। इसनै मध्यम वर्ग कहवण लागगे। इस मध्यम वर्ग नै लन्दन आल्यां कै जुल्म कदे नहीं सहे, अमरीका की चालबाजी का कदे शिकार नहीं हुया। कइयां का तो आजादी की लड़ाई तै कोए लेना-देना नहीं था।
इस बात मैं भी कोए शक नहीं रहया अक दिल्ली तै जै किसे गाम के शहर के विकास खात्तर जै एक रुपया चालै सै तो उड़ै तो पन्दरा पीस्से ए पहोंचैं सैं बाकी के पिचासी तो बीचै मैं रैह लें सैं। यो रुपइये का रुपइया अपणी सही जागां पै क्यूकर पहोंचै? म्हारी शिक्षा, म्हारी सेहत, म्हारे मकानां के बारे में कूण सोचैगा? हमनै खुद सोचणा पड़ैगा।
सबतै पहली बात तो याहे सै अक हमनै लूटणिया के दा पेंच समझण की खात्तर अपणी सोच भी तेज करनी पड़ैगी अर अपना सूरड़ापन अर ऐहदीपन भी छोड़ना पड़ैगा। या पहली शर्त सै म्हारी बढ़िया जिन्दगी जीण की। म्हारी पैनी सोच बेरा पाड़ सकै सै अक मुनाफे की लूट पै टिक्या औड़ यू सामाजिक ताना बाना म्हारे काम का कोण्या। पिचासी पीस्से आले नै यो ताना बाना न्यूं का न्यूं राखण खात्तर म्हारा संविधान भी उसे की हिमात मैं जा खड्या हो सै अर या पुलिस अर फौज बी उसे की हिफाजत खात्तर म्हारे पै गोली तान कै खड़ी होज्या सै। इब चुनाव आवण लागरे सै हमनै म्हारे लीडरां धोरैं न्यों तो बूझणा ए चाहिये अक यू के सांग सै? चौवन हजार करोड़ रुपइये का बैंका का कर्जा कूण लेरे सैं? यू पीस्सा म्हारे खून पसीने की कमाई मैं तै टैक्सां की मार्फत कट्ठा करे औड़ पीस्से मैं तै इन कारखाने दारां नै उधार लिया था। ईब देवण तैं नाटैं सैं। क्यूं? इस पीस्से नै उल्टा लेण की हिम्मत कूण करैगा?
नहीं तो ईक्कीसवीं सदी मैं भी म्हारा न्योंए बैंड सा बाजैगा जिसा बीसवीं सदी मैं बाज्या सै। सवाल फेर योहे सै अक अच्छाई की जंग ठाडी हो, गरीब नै उसके हक मिलज्यां, जातपात अर धर्म के ऊपर लोग आपस मैं कट कै ना मरैं, मेहनत करण आले की समाज मैं कदर होज्या, इस जंग का नक्शा कूण त्यार करैगा? कूण इसमैं रंग भरैगा? इसमैं ईसे रंग भरणिया माणसां की खोज करनी पड़ैगी। अर ये माणस और किते आसमान मैं तै कोण्या टपकैं ये म्हारे में ए सैं, हमनै आंख खोल कै अपणे चारों कान्हीं देखण की जरूरत सै।
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ओहले भाई !
यो तै मानना ए पड़ैगा अक वजीरे आजम वाजपेयी किस्मत का सिकन्दर सै। एक बै उनकी पार्टी के बड्डे नेता नै उस ताहिं अपणी पार्टी का ‘मुख’ नहीं ‘मुखौटा’ घोषित कर दिया था पर बखत का फेर अर बाकी पार्टियां की अक्ल का इसा दिवाला लिकड़या अक सारे मुखां ताहिं हट परे नै कैहकै यो ‘मुखौटा’ ए फेर जा बैठया दिल्ली की गद्दी पै। ले ऊं तै तेरह म्हिने जिब ये सरकार चलावण लागरे थे तो एक बी दिन इसा कोण्या बीत्या जब उनकी सरकार की काबिलयत पै सवाल ना खड़े करे गये हों। और तै और उसके अपणे ‘परिवार’ आल्यां नै आज ताहिं के सबतै नकारा प्रधानमंत्री का औहदा इस ताहिं दे दिया था। फेर कारगिल मैं घुसपैठ का मामला के शुरू हुआ अक इसकी लॉटरी सी फेर खोलग्या। ओहे ‘नकारा’ प्रधानमंत्री अपणी पार्टी के भीतर अर बाहर एक इसा युद्ध नायक उभरया अक वाजपेयी नै 15 अगस्त नै राष्ट्र के नाम सन्देश मैं ‘स्वतन्त्रता संग्राम’ ताहिं नहीं बल्कि ‘कारगिल संग्राम’ ताहिं फूल चढ़ाये। या बात न्यारी थी अक कारगिल नै दिल्ली सरकार पै कई सवाल खड़े करे अर इसके बड़बोलापन कि पोल भी खोल कै धरदी अक हमनै एटम बम्ब बणा लिया ईब पाकिस्तान नै देखांगे। तेरा म्हिने के ‘फ्लाप शो’ का तमाशा खत्म होण आला था अक इतने मैं कारगिल आग्या। साची बात या सै अक कारगिल के मामले मैं बी बीजेपी की धौल साहमी आई पर जनता फेर बी इसकी गेल्यां रही। इसमैं कोए डूंघा मामला दीखैसै जो म्हारी समझ मैं नहीं आ लिया। अर ऊंबी सोचण अर समझण के काम तै हरियाणा आले अर पूरे उत्तर भारत के लोग बेरा ना बिदकें क्यों सैं? सोच कै राजी ए तो कोण्या।
कोए न्यों कैहन्ता पाज्यागा अक कारगिल के मुद्दे नै लेकै संघ अर उसके परिवार आले टी वी अर अखबारां मैं छागे अर तले ताहिं मार करगे। कई न्यों बी कैहन्ते पावैं सैं अक सेना के जवानां की लाशां पै सरकार नै अपनी राजनीति के टीक्कड़ सेके सैं। पर इन बातां तै इस सवाल का जवाब कोण्या मिलता अक ‘फ्लाप शो’ ‘कामयाब शो’ मैं क्यूकर बदलग्या? इस बात मैं कोए शक नहीं बचरया अक म्हारी जिन्दगी मैं सैन्यीकरण की भावना बढ़ी सै। अर दूसरी बात या लागै सै अक राष्ट्रवाद के लबादे मैं अल्प संख्यकां का विरोध म्हारे दिमागां मैं घर करग्या। म्हारी मानसिकता मैं इसा कीड़ा बाड़ दिया जो इनकै सूत आवै सै। पर आपां नै यो बेरा ए कोनी अक आपां आस्तीन के सांपां नै दूध प्यावण लागरे सां। इन सांपां नै म्हारी आच्छी आच्छी पढ़ाई की जागां मैं अर नई खोज करण आली संस्थावां मैं अपणे बिल बणा लिये, घणी कसूती बाम्बी बणा ली। म्हारे मध्यम वर्ग के दिमाग तै साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष की बची खुची याद खतम करकै उसमैं साम्राज्यवाद तै ‘प्यार’ के तौर तरीके बिठावण की पूरी ताकत लाण की तैयारी सैं। अर यो मध्यम वर्ग भी इसा अभाग हो लिया अक अपणी खातर सुविधा लेवण नै यो कुछ बी कर सकै सै - यू देश बेच सकै सै, यू बिल बेच सकै सै, यू सुविधा बेच सकै सै यू मानवता की भ्यां बुला सकै सै अर और बेरा ना के के कर सकै सै?
ऊं देखैं तो संघ परिवार जिंके पूर्वज हिटलर अर मुसोलिनी के प्रशंसक रहे सैं अर जिनका देश की आजादी की लड़ाई मैं भागीदारी का अपणा कोए बी इतिहास कोण्या फेर बी इनका राज मैं आवणा खतरे की घंटी सै। या घंटी बाजण लागरी सै अर आपां नाच्चण लागरे सां। किसा चाला हुया। ब्याह मैं नाचदे माणस देखे। बालक होण पै नाचैं अर और बी कई खुशी के मौके हों सैं जिन पै माणस नाच्या करैं। पर हम तै अपणी तबाही पै नाच्चण लागरे, अपणी बर्बादी की खुशी मणावण लागरे, अपणे देश अर अपणे प्रदेश के गुलाम अर कर्जदार होवण का जश्न मणावण लागरे सां आपां। आजै कोण्या बेरा लागै इन बातां का। पेड़ बोया जा सै, खाद पाणी दिया जाया करै, रूखाल करी जा फेर जा कै दो एक साल मैं फल थ्याया करै। अर जै बबूल बोद्यां तै काटे जरूर मिलैंगे तो थोड़ा सा और नाच ल्यो फेर कद आखरी धम्म होज्या बेरा नहीं सै। अमरीका परस्ती बढ़ण लागरी सै। म्हारी नई आर्थिक नीतियां म्हारे देश के विकास की कड़ तोड़ण लागरी सैं। अर आपां खुश सां अक अमरीका म्हारी कड़ थेपड़ण लागरया सै। होल्यां राज्जी कै दिन होवांगे? फेर न्यों कहे काम कोण्या चाले-ओहले भाई। मनै के बेरा था न्यों बण ज्यागी?
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विकास खात्तर पीस्सा किततै आवै
कई बार बात चालै अक विकास इसा हो जिसका फल गरीब तै गरीब ताहिं पहोंच ज्यावै। फेर कई न्यों कैहन्ते पाज्यांगे अक क्यूकर करै इसा विकास सरकार धोरै पीस्सा तो सै ऐ कोणया अर या पिलजुआ रोज बधण लागरी गिजाई की ढालां। सबतै बड्डा गजब तै इस विकास का यो होग्या अक माणस पिलजुआ अर गिजाई बणा दिया। न्यों कहया जा सै अक किततै आवै इननै ख्वावण खात्तर? फेर येहे वैज्ञानिक अर बुद्धिजीवी न्यों बी कैहन्ते बताए अक ‘विकास सबतै बढ़िया अर टिकाऊ गर्भ निरोधक सै फेर मेरै तो मोटी-मोटी तीन च्यार बात समझ मैं आवैं सैं जिनके करे तै पीस्यां का तोड़ा विकास खात्तर कोण्या रहवै बाकी जै कोए पीस्से ए नै चाबणा शुरू कर देगा तो पूरा कोण्या पाटै।
एक तै हमनै अपणे डायरेक्ट टैक्सां का दायरा बढ़ाणा पड़ैगा। ईब हम अमीरां पै तो टैक्स घटावण लागरे सां। कोरपोरेट टैक्स, वैल्थ टैक्स अर इन्कम टैक्स जिसे टैक्स बधाए बी जाणे चाहियें अर इनकी वसूली भी फेर सख्ती तै होणी चाहिये। कोए लिहाज शरम इनपै नहीं बरती जाणी चाहिये।
दूसरा तरीका सै ब्लैक के पीस्से का राह बांधण का। कोए तो कहवै सै अक ब्लैक का पीस्सा इतने करोड़ सै अर कोए इसनै अरबां खरबां बतावै सै। कोए अन्दाजा ए कोण्या इस काले धन का। किसान की कमाई, मजदूर की कमाई नै जीमगे ये काले बजारिये अर दूसरे देशां मैं जा जमा करवाये पीस्से। यो पीस्सा खोद कै बाहर काढ़णा चाहिये अर विकास के कामां मैं लावणा चाहिये। पर यू काम करै कूण? यो काम करे बिना कितने ए वर्ल्ड बैंक तै उधारे पीस्से ले ल्यां बात बणती कोण्या दीखती।
तीसरा तरीका सै अक म्हारे सरकारी खरच (फिजूल खरच) कम करे जावैं। इसका यो मतलब कति नहीं सै अक नौकरियां की भरती पै पाबन्दी ला दी जावै। इसका मतलब सै अक नौकरशाही के अर मन्त्रीयां के फिजूल खरच पै रोक लाई जावै। भ्रष्टाचार की गांठ बांध कै समन्दर मैं गेर कै आणा पड़ैगा।
चौथा तरीका सै अक बड़े-बड़े कारखाने आल्यां पै बैंकां की 45 हजार करोड़ की देनदारी खड़ी सै। ये कारखानेदार यो पीस्सा देवण तैं नाटैं सैं। एक कारखाने नै दिवालिया करकै दूसरा कारखाना खोल लेवैं सैं। पीस्सा उल्टा देवण का नाम नहीं। हम किसानां की सब्सिडी नै तो रोए जावां सां पर इस रुपइये की वापसी पै अपने चुनाव पत्रां मैं कुछ बी नहीं कैहन्दे। जनता बी कदे नहीं कैहन्दी अक इस 45 हजार करोड़ का हिसाब कूण मांगैगा?
पांचवी बात सै अक दुनिया बम्बां पै अर हथियारां पै इतना पीस्सा खरच करण लागरी सै अक बूझो मतना। जै यू हथियारों पै खरच होवण आला पीस्सा विकास पै खरच होवण लागज्या तो भारत का नक्शा अर दुनिया का नक्शा पांच साल में बदल सकै सै। मैं एटम बम के इस्तेमाल को स्त्रियों, पुरुषों और बच्चों के सामूहिक विनाश के लिए विज्ञान का सबसे शैतानी इस्तेमाल मानता हूं। महात्मा गांधी ने ये शब्द बहोत पहलम कहे थे पर हमनै इनके परखचे उड़ावण मैं कसर नहीं छोड्डी।
एक नाभिकीय बम पै आवण आले खरच (चार करोड़ रुपइये) तै गाम के गरीबां खात्तर बत्तीस सौ घर बणाए जा सकैं सैं। एक सौ पचास गामां मैं पीवण के पाणी का संकट दूर कर्या जा सकै सै। एक सौ पचास बमों की लागत इतनी सै जितना सार्वजनिक स्वास्थ्य पै केन्द्र सरकार का 1998-1999 का बजट। एक नाभिकीय युग्म मारक शक्ति की लागत (करीब चार हजार करोड़ रुपइये) 1998-99 के केन्द्रीय बजट मैं प्राथमिक अर उच्च शिक्षा की खात्तर राखे पीस्यां तै फालतू बणै सै। एक नाभिकीय शक्ति संपन्न पनडुब्बी की लागत (चार हजार करोड़ रुपइये) एक हजार मेगावाट का एक बिजली संयंत्र लावण पै आवण आली लागत के बरोबर बैठै सै।
पूर्ण नाभिकीय शस्त्रीकरण कार्यक्रम पै चालीस हजार तै ले कै पचास हजार करोड़ ताहिं का खरच होवण का अन्दाजा सै। इतनी रकम तै गामां मैं आवास की सारी कमी दूर करी जा सकै सै अर कै स्कूल जावण आली उम्र के सारे बालकां की पढ़ाई का इन्तजाम करया जा सकै सै इतने रुपइयां तै।
तै भाई म्हारे खात्तर बढ़िया अस्पताल खोलण खात्तर अर बढ़िया पढ़ाई आले स्कूल खोलण खात्तर पीस्से का रोल्ला नहीं सै यो नीयत का रोल्ला सै। काले धन की बात काले बी करैं सैं अर धोले पीस्सां आले बी। पर जनता करै तो के करै काले अर धोले की पिछाण करणा ए बहोत मुश्किल काम होग्या? आज के बख्त मैं जिसके धोरै आच्छा पीस्सा सै ओ धोला पीस्सा क्यूकर हो सकै सै? ईब हम नाहे समझणा चाहवां किसे बात नै तो के करया जा सकै सै?
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नया खरणा
लैक्शनां के बख्तां मैं नेतावां के भाषण सुणकै ईसा लाग्या जणो तै ये जनता की खात्तर आसमान के तारे बी तोड़ कै ल्या सकै सैं। अर जिब वोटर थोड़ी घणी ना नुकर सी कर दे तो इननै ईसा लागै जणो तै आसमान टूट कै पड़ग्या हो। कई उम्मीदवार आसमान पै उठण लागरे थे पर छह अक्तूबर नै धड़ाम तै धरती पै आकै पड़गे। कईयां के दिमाग तै ईबै तै आसमान पै चढ़ लिये सैं। नाड़ै कोण्या मुड़ कै देन्ती उनकी। उनके बस्ता ठाऊ उननै और आसमान पै चढ़ा दें सैं। कई तो आसमान पै थूकदे वार नहीं लान्ते। पर कइयां खात्तर तो आसमान पाटण आली बात होगी छह तारीख नै। आसमान मैं थेगली लाणा चाहवैं सैं कुछ लोग अर कुछ आसमान पै दिया जलाणा चाहवैं सैं अर आसमान नै सिर पै ठायें हांडैं सैं। कई ईब तै पहलम आसमान पर तै पड़ लिये सैं। कई आसमान तै पड़कै खजूर पै अटकरे सैं अर न्यों कहवैं सैं अक म्हारे याड़ी तो बड़े आस्तीन के सांप लिकड़े। कई गरीबां पै आस्तीन चढ़ाये हांडैं सैं। कई आह भरैं सैं कई-कई बर दिन मैं अक एम.पी. जरूर बणां। पर लोगां की खात्तर आहुति देण नै कोए त्यार कोनी सब भेड़ की ऊन तारण खात्तर हांडैं सैं। जनता के दरबार नै तो ये इन्दर का अखाड़ा मानैं सैं जित इन्दर परी हों अर ये ऐस करें जां। माणस की इज्जत तारते वार कोनी लावैं बणे पाछै तो पिछाणण तै बी नाट ज्यां अर कित का कौण बतावैं। 15 दिन लोगां के आगै पाछै हांड कै फेर पांच साल लोगां नै अपणे पाछै हंडावैं सैं। वे तैं न्यों समझैं सैं अक जनता इसे ढालां अपणी इज्जत बेचती हांडै सैं। जनता की इननै कोई परवाह कोण्या। उसकी इज्जत गेल्यां खेलण मैं तो ये माहिर होगे। बेरा ना ईसे माणसां की इतिश्री कद होवैगी। किसे काम खात्तर जा कै देखल्यो इधर-उधर करण लाग ज्यांगे। इधर-उधर की लाकै माणसां नै आपस मैं लड़वा देंगे। इधर की दुनिया चाहे उधर होज्या पर इनके काम पै जूं नहीं रेंग कै दे। गैन्डे बरगी मोटी खाल होज्या सै इनकी। जै किसे काण्ड मैं फंसे पाज्यां अर कोए सवाल ठादे तो इधर-उधर झांकण लाग ज्यांगे। बात का सीधा जवाब नहीं देवैं। इधर-उधर की हांकणा शुरू कर देंगे कै न्यों कैह देंगे अक बेरा सै मनै तों किसके इशारे पै जाचै सै। न्यों कहवैंगे अक हाथ नै हो सै, इस हाथ द्यो अर उस हाथ ल्यो। इस कान की बात उस कान ताहिं कोनी जाण दें अर कै इस कान सुणकै उस कान उड़ा देंगे। किसै नै कहया सै कलजुग नहीं करजुग है यह, यहां दिन को दे और रात को ले। क्या खूब सौदा नकद है, इस हाथ से दे उस हाथ से ले।
जनता मैं जिब लैक्शनां के टेम भाषण देंगे तो कहवैंगे अक हम भ्रष्टाचार का खात्मा करकै दम लेंगे। हम ईंट का जवाब पात्थर तै देवैंगे, हम उनकी ईंट तै ईंट बजा द्यांगे चाहे बेशक अपणी ए ईंट तै ईंट बाजण लागरी हो। अर एक बै लैक्शन जीते पाछे तो ये ईद के चान्द होज्यां सैं। आपणा घर भरण की खात्तर अपने ईमान का बी सौदा करतें वार कोनी लावन्ते। देश जाओ चाहे भाड़ मैं। बेशक फेर जनता उनपै आंगली ठावन्ती रहे। भाइयां नै कोए परवाह कोनी। उल्टा जनता नै ए उंगली दिखावण लागज्यां सैं। जनता की उंगली पाकड़ कै पौंहचा पाकड़ का जतन करें जांगे। जो जनता का असल मैं भला चाहवै सै वे तो आंगलियां पै गिने जा सकैं सैं। पर इननै वे छंटे औड़ आंगलियां पै नचाये जावैं सैं अर कई बै तो उघड़ की नाच्चण लागज्यां सैं अर उठते-बैठते शरीफां नै सांसै कोण्या आवण दें। उसनै उठाऊ चुल्हा कहवैंगे के पागल की उपाधि दे देंगे कै बावला बता देंगे। ये छाकरे नेता न्यों कहवैंगे अक आपां तो उड़ती चिड़िया के पर गिन दिया करां। अर जिब जनता नै उनकी जरूरत हो तै उड़न छू होन्ते कति वार नहीं लावैं। जनता नै सारी हाण उल्टा पाठ पढ़ावैंगे। कोए भी बढ़िया काम हो उसमैं फांचर ठोके बिना नहीं रैह सकदे। कई तो घणे कसूते कढ़ी बिगाड़ हो सैं और किसे की सुनै कोण्या। बस अपणी-अपणी हांके जावैंगे। पाछले पांच च्यार सालां मैं ए घणी डूब पड़गी। ये इसे खरने के नेता पाक्के सैं अक यू खरणा और कितै तो दीवा लेकै टोहे तै भी कोण्या पावै। आया राम गया राम भी हरियाणा तै ऐ शुरू हुया था अर यू नये खरणे के बीज का पेटैंट बी हरियाणा करवावन्ता दीखै सै।
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जात्यां की बेड़ी टूटैंगी
पाछले पांच छह साल तैं हरियाणा मैं जनता कै सांस चढ़रे सैं। कदे बाढ़ आज्या सै, कदे मलेरिया खाज्या सै, कदे पीलिया छाज्या सै तो कदे डैंगू भ्यां बुलाज्या सै। समाज सेवी संस्था बी ज्यूकर मींह पाछै गिजाई लिकड़याया करैं न्यों उभरयाई। जड़ बात या सै अक जितनी तेजी तै बख्त का पहिया घूमण लागरया सै इसका अन्दाजा तो माणसां नै कदे सुपणे मैं भी नहीं लाया होगा। जिस गाम मैं बी नजर मारकै देखो उस मैं पाछले दस साल मैं कुछ नई बात हुई लागैं सैं। टी वी  सैटां के एरियल सरड़क पै मोटर मैं बैठे बैठे बी तीस चालीस तो कम तै कम गिणे ए जा सकैं सैं, बैरियर बधगे, सिलाई की दुकान कई कई खुलगी, बिजली की दुकान, मैना कैसेट की दुकान, पिंचर लावण की दुकान, किरयाणे की हर गली मैं दुकान अर कई और इसे ढाल की चीज। दो चार ट्रक खड़े पाज्यांगे, एक दो टाटा सूमो खड़ी दीख ज्यांगी अर दस बीस ट्रैक्टर अर उनकी ट्राली। सलवार कमीज, पैंट पजामा घर घर मैं जा बैठे। एकाध घर पै डिस एंटिना बी लाग्या पाज्यागा। फेर गाल न्यों की न्यों सड़ियल, कुरड़ी न्यों की न्यों अर जोहड़ां मैं काई लाग्या औड़ सड़ता पाणी।
एक दूसरी जात्यां के बालक आपस मैं ब्याह करण लागगे। सारी जात्यां के बालक कट्ठे होकै अपणी पढ़ाई के बारे में सोचण लागगे। जातपात का भेद भूलकै अपणी बेरोजगारी पै मन्थन शुरू कर दिया। बेरोजगारां कै या बात समझ आण लागगी अक जात के घेरे तै जमात का घेरा घणा चौड़ा सै अर सही सै। बेरोजगारी का सामना सबनै कट्ठे होकर करना होगा अर इननै कट्ठे जलसे जलूस काढ़णे शुरू कर दिये। ये सारी बात देख कै जात के ठेकेदारां कै काला बाजारियां कै अर टाटा बिड़ला बरग्यां के कान खड़े होगे। जात पात पै बांटकै पचास साल खून चूस्या म्हारा सबका इननै। हरित क्रांति मैं कमायें हम अर घर भरे इनके अर हम न्यारे न्यारे पड़े खाट तोड़ें गए अर अपनी किस्मत नै कोसें गए। फेर म्हारे बात समझ मैं आगी हम कट्ठे होण लागे तो जात्यां के ठेकेदार रंग बदल कै, भाषा बदल कै, चाल बदल कै अर चेहरा बदल कै फेर आ डटे मैदान मैं। कितै कोए सभा अर कितै कोए सभा। खूब आडम्बर खड़े कर दिये। इनकी अपणी जात बी बदल कै मुनाफाखोरां की जमात होगी। रोहतक के चारों कान्हीं जितनी भी फैक्टरी सैं उनके मालिक सारे कट्ठे सैं अर कोए जात पै एसोसिएशन नहीं बणा रया सारे जमात पै बणारे सैं। ज्यूंकर लघु उद्योग संघ, भट्ठा मालिक संघ।
पर जिब कोए न्यारी जात की छोरी अर न्यारी जात का छोरा आपस मैं ब्याह करलें सैं तो इन ठेकेदारां के पाह्यां तले की धरती खिसक ज्या सै। अर ये फांसी का हुकम सुणा दे सैं दोनूआं ताहिं। छोरा छोरी अपणी मर्जी तै ब्याह करणा चाहवैं तो ये तीसरे तेली कोण? असल मैं सौ का जोड़ यो सै अक जै ये जात्यां के किले ढहगे तो मुनाफाखोरां की लूट कै झटका लागैगा। ज्यां करकै ये इन किल्यां पै टीप करण लागरे सैं पर जाणैं वै भी सैं अक इन किल्यां की नींव थोथी होली सै। या जातपात भी औच्छी जूती की ढालां होली इसने काढ़ कै ए पैंडा छूटैगा ना तै औच्छी जूती की ढालां पायां नै काट कै धर देगी। छूआछूत, जातपात मिटे बिना नया समाज क्यूकर बणाया जा सके सै? पर ये बेड़ी टूटैंगी जरूर अपणे आप नहीं म्हारे सबके मिलकै जोर लाए तैं।
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सांस्कृतिक थानेदारी
कई माणसां की त्यौड़ी ऊपर नै होगी होंगी सांस्कृतिक थानेदारी के शब्द पढकै अर बात ठीक बी सै थानेदार की थानेदारी तै कदे कदीमी तै झेलते आये पर ईब या सांस्कृतिक थानेदारी कड़े तै आ टपकी? एक मई 1998 नै ‘कुछ लोगां’ नै चित्रकार एम एफ हुसैन के मुंबई आले घर मैं बड़कै घणी कसूती तबाही मचा दई। उनके बनाए औड़ चित्रां कै आग लादी। इसतै पहलम अक्तूबर 96 मैं इन ‘कुछ लोगां’ नै अहमदाबाद मैं भी हुसैन की पेंटिंगां का नाश मारया था। ये पेंटिंग 20-25 बरस पहलम बनाई गई थी। अर ये ‘कुछ लोग’ न्यों बी कैहन्ते बताये अक जै हुसैन हिन्दुस्तान मैं बड़ सकै सै तो हम उसके घर मैं क्यों नहीं बड़ सकदे। कमाल की बात या भी सै अक इन ‘कुछ लोगां’ पै भारत देश के कायदे कानून बी कोन्या लागू होन्दे। इन हमल्यां मैं जो लोग पुलिस नै पाकड़े वे एक हजार रुपइये की जमानत पै छोड़ दिये। इसे बख्तां खात्तर म्हारे संविधान मैं अनाधिकार प्रवेश, दाब धोंस अर संपत्ति नष्ट करण की धारा सैं बेरा ना पुलिसिया इननै क्यूकर भूलगे? जित ये धारा ना लावण की हों उड़ै तो सैड़ दे सी लायें पावैं सैं अर जित लावण की हों उड़ै चुप!
13 जुलाई 1999 नै दोफारे पाछै इन मुट्ठी भर ‘कुछ देश भगतां’ नै होटल मेरिडियन के साहसी प्रदर्शन करया अर खुल्लम खुला भारत देश के न्यामी गिरामी अभिनेता दिलीप कुमार का पुतला जलाया। पुलिस घणी ए थी पर थानेदारी के मूड़ मैं नहीं थी उड़ै सांस्कृतिक थानेदारी का बोलबाला था। ज्याहें तै इस होटल के साहमी यो सबकिमैं होग्या। दिलीप कुमार तै बढ़िया ‘हीरो’ किसे बख्तां मैं कोए नहीं था। उसनै के इनाम मिल्या अर कद मिल्या अर उसनै ओ उल्टा करै ना करै यो उसका अपणा निजी मामला था फेर हमनै यो आम मामला बणावण मैं वार कोन्या लाई।
पहली मई 1999 नै इन ‘कुछ लोगां’ नै पार्षद एम नागराज की रहनुमाई मैं कर्नाटक के एक थियेटर ग्रुप समुदाय पै उस बख्त हमला करया जब बंगलौर के धोरै अनेकल नाम के कस्बे मैं ओ एक नाटक दिखावण लागरया था। इसे ढालां ये ‘कुछ लोग’ 26 अप्रैल 1998 नै मुंबई के एक होटल के उस हाल मैं जा धमके जिसमैं पाकिस्तानी गायक गुलाम अली गावण लागरे थे। उनका माइक्रोफोन खोस लिया अर दादागिरी दिखा कै आयोजकां पै यू कार्यक्रम बन्द करवा कै दम लिया। शैक्षिक परिसरां मैं बी इन ‘कुछ लोगां’ की सांस्कृतिक थानेदारी खूब देखण मैं आवै सै। 20 जुलाई 1998 नै 100 हथियार बन्द लोग रैगिंग रूकवावण के बाहनै अहमदाबाद के सैंटर फॉर एन्वायरमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलोजी (सी.ई.पी.टी.) के परिसर मैं बड़कै ऊधमस तारगे। गुजरात के दोहद जिले के रंधिकपुर के 59 मुस्लिम परिवार दो आदिवासी लड़कियां का ब्याह मुसलमान लड़कां गेल्या हो जाए पाछे जून के आखिर मैं अपणे घर बार छोड़ कै जावण नै मजबूर कर दिये गए। फायर फिल्म पै फायर करण आले ये ‘कुछ लोग’ माइकल जैकसन का डांस करवावण मैं अपणी श्यान मानैं सैं। फायर फिल्म पै हमला रचनात्मक अभिव्यक्ति कै खिलाफ तत्ववादी हेकड़ी तै न्यारा के माण्या जा सकै सै। इन कुछ लोगां मैं तै एक न्यों बोल्या ‘‘जन्म दिन की पार्टियां मैं अपणे बालकां नै केक काटते देख कै अर मोमबत्तियां बुझाते देख कै मनै बहोत घृणा हो सै। यो म्हारी संस्कृति का हिस्सा कोण्या।’ इस तै कोए बूझै अक फूफा कोका कोला तो विदेशी संस्कृति सै फेर नाभिकीय बम के म्हारी पुरानी भारत की परम्परा सै? अर कमाल की बात एक और सै अक इन ‘कुछ लोगां’ मां तै घणखरे ईसाई स्कूलां मैं पढ़रे सैं। एक तो कराची के सैंट पैट्रिक स्कूल का छात्र था। इनका मुखिया बी नैनीताल के सैंट जोसफ स्कूल मैं पढ़रया सै और तो और म्हारे देश की एक पार्टी के 180 सांसद जो पाछली संसद मैं थे उनमां तै कम तै कम आधे ईसाइयां के चलाये औड़ संस्थानां मैं पढ़रे सैं।
येहे वे ‘कुछ लोग’ सैं जिननै 1998 मैं जम्मू मैं कबीर की साखियां की सरेआम होली जलाई थी। ये लोग आपणा नकाब तार कै मैदान मैं आगे सैं ईब म्हारी थारी खैर नहीं सै थाम अर हम जै इनकी बातां तै सहमत नहीं होए तो ये गात की खाल तारकै उसमैं भुस भरवा सकैं सैं। इतिहास गवाह सै इन ‘कुछ लोगों’ के पूवजों नै इसे शुभ काम खूबै करे सैं, करण लागरे सैं अर आगै और घणे कुकरम करैंगे अर हम भी शामिल हो लिए इन जुल्मां मैं। रै किमै तो दिमाग पै जोर देकै सोचण की कोशिश करां अक इस सांस्कृतिक थानेदारी के आगै गोड्डे टेकण का मन बणा लिया?
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छह महीने काढ़ देगा
लैक्शनां का गुब्बार कम हो लिया। 22 तारीख नै साफ होली थी अक सरकार तै चौटाला की ए बनैगी। बीजेपी की घिस लिकड़गी इन लैक्शनां मैं। बंसीलाल का भी सूपड़ा सा साफ होग्या। कांग्रेस थोड़ी घणी उल्टी बाहवड़गी। कांग्रेस के भीतर के झगड़े अर बीएसपी के उम्मीदवार इन दो चीजां नै कांग्रेस कै कई जागां चौखा झटका दिया। भाजपा गेल्यां तै वाहे बणगी अक खिसियाणी बिल्ली खम्भा नौचै। भाजपा का सूपड़ा क्यों साफ हुआ यो सबनै बेरा सै फेर हांडी का छोह बरोली पै तारया जावण लागरया सै। चौटाला ताहिं तो किमै कहवण का ब्योंत नहीं ग्रोवर जी का फेर सुन्दर लाल सेठी के पाछे जरूर पड़ लिया। ईबकै तो देबीलाल नै चौटाला की किश्ती किनारे पहोंचा दी फेर कै दिन ताहिं इसपै लोगां के न्यारे न्यारे बिचार सैं। बाजपेई नै किसानां की घिस काढ़ण का अमरीका धोरै ठेका छटवा लिया। न्योंन तै चौटाला साहब किसानां का मसीहा बतावै सै अपणे आप नै तै अर बाजपेई तै बढ़िया प्रधानमंत्री नहीं दीखदा। दो नावां पै सवाल होकै चौटाला साहब डूबण तै क्यूकर बचैंगे यो तै बख्त बतावैगा। कपास पिटगी थी, धान पिटग्या, आलू रुलता हांड्या डेढ़ रुपइये किलो, अर ईबकै गिहुं की बारी सै। यूरिया के भा बधा दिये, डीजल के भा बधा दिये, माट्टी का तेल म्हंगा कर दिया, सरचार्ज बढ़ा दिया, जड़ बात या सै अक इस बजट नै किसान रम्भा के मारण का जुगाड़ कर दिया। ईब किसानां के हितेषी किसानां के पाले मैं खड़े होवैंगे अक बाजपेई के पाले मैं? चर्चा तो इसी बी सुणण मैं आवै सै अक तलै ए तलै खिचड़ी रंधण लागरी सै अर बाजपेयी कै चन्द्रा बाबू नायडू कदे बी पटखणी दे सकै सै ओ भी बहोत दुखी हो लिया बताइयें सैं।
खैर बात हरियाणा की अर हरियाणा के किसानां की सै। किसान चौटाला के मुंह कान्हीं देखण लागरे सैं अक ओ के कहवैगा? म्हारी गिहुं पिटवावैगा अक बचावैगा? सस्ती बिजली दिवावैगा अक म्हंगी करवावैगा? पाणी जितणा चाहिये उतना किततै ल्यावैगा? यूरिया के दाम कम करावैगा अक नहीं? किसानां के बालक बिना दवाई बिन आई मौत मरण लागरे सैं उनका के राह करैगा? पढ़ाई लिखाई का भट्ठा बैठग्या, नौकरी कितै रही कोण्या, महिलावां की संख्या घाट होगी, छोरयां के ब्याह ना होन्ते। इन सारी बातां का के राह टोहवैगा? कई गामां मैं बात न्यों बी सुणण मैं आवै से अक बाजपेई का साथ कोण्या छोड्डे म्हारा साथ छोड़ सकै सै। पेंशन तीन म्हिने की तो दे दी फेर आगली कद मिलैगी इसका बुजुर्गां नै कोए भरोसा नहीं। एक ताऊ तै न्यों बोल्या - छह म्हिने काढ़ देगा चौटाला? ईब ताऊ के सवाल का जवाब तै चौटाला के आगे के कारनामे ए देवैंगे। जै जनता का साथ दिया तो पांच साल पूरे काढ़ ज्यागा अर जै बाजपेई का साथ दिया तो बेड़ा बीच मंझदार मैं डूबणा लाजमी सा दीखै सै अर छह म्हिने नहीं साल भीतर किमै न किमै हो लेगा। कुर्सी पै बैठें तो एक दिन हुया सै इसके जावण की बात भी चाल पड़ी या बात जंचण की तो सै ना फेर आण आला बख्त बतावैगा अक ऊंट किस करवट बैठैगा? कई न्यों बी कैहन्ते बताये अक ईब चौटाला स्याणा होरया सै, ईब मार कोण्या खावै। एक बात जरूरी अटकै सै अक बाजपेई की नाव मैं बैठ कै किसानां का भला क्यूकर कर्या जा सकै सै? काठ की हांडी कै बर चुल्हे पै चढ़ाई जा सकै सै? सवाल एक और बी सै अक ब्याह पाछै किसी बुढ़ार? जिब किसान का पितलिया ए लिकड़ लेगा तो फिर किसानां के पाले मैं आकै खड़े होण का के मतलब रैहज्यागा? फेर लागै सै गरीब का अर जरूरतमंदां का हिमायती छिदा ए बचरया सै। दुनिया के धनी देश जिनमैं दुनिया की 20 प्रतिशत जनसंख्या रहवै सै दुनिया के 86 प्रतिशत संसाधनां का इस्तेमाल करै सै। बाकी जो 14 प्रतिशत संसाधन बचगे वो बाकी के देशां की जनता (जिनमें 80 प्रतिशत दुनिया की जनसंख्या आवै सै) इस्तेमाल करै सै। अर इतनी ए मैं कोण्या सधरी। बात और बी ऊपर जाली। इस 80 प्रतिशत जनसंख्या का जो सबतै ऊपरी 5 प्रतिशत हिस्सा सै ओ इस 14 प्रतिशत मां तै 7 प्रतिशत संसाधन इस्तेमाल करण लागरया सै। मतलब यो हुआ अक दुनिया की 75 प्रतिशत आबादी के धोरै इस्तेमाल करण नै बस दुनिया के 7 प्रतिशत संसाधन सैं।
तो चौटाला साहब नै आज तय करणा पड़ैगा अक ये किसके पाले मैं खड़े सैं। दिखावा तै 75 प्रतिशत के पाले मैं खड़े होवण का सै फेर असल मैं ये खड़े 5 प्रतिशत के पाले मैं सैं अर 20 प्रतिशत धोरै जिब दाब लाकै किमै मांगण का बख्त आवै सै तो इस 75 प्रतिशत नै भी अपणी गेल्यां लालें सैं। फेर असल मैं जिब इस 75 प्रतिशत ताहिं किमै असल मैं देवण की बात आवै सै तो ये कोरे भाषण पियावण लागज्यां सैं। ईब भाषणां तै काम कोण्या चालै चौटाला साहब! पालेबन्दी खिंचती आवै सै। फैसला करणा ए पड़ैगा ईब, ना तै जनता कर देगी फैसला।
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बाहर मतना जाइये खतरा सै
बन्ता अखबार पढ़ण लागर्या था। उसमैं पढ्या अक फलाणे गाम मैं फलाणे कै घरां फलाणे नै फलाणे की छोरी गेल्यां जोर जबरदस्ती करण की कोशिश करी। दूसरी खबर थी अक फलाणे गाम मैं फलाणे माणस नै फलाणे की बहू गेल्यां फलाणे के खेतां मैं काला मुंह कर्या। तीसरी खबर थी अक फलाणे शहर मैं फलाणे मोहल्ले की 10 साल की बच्ची गेल्यां बलात्कार हुया। इतनी वार मैं सन्ता बी उड़ै आग्या तो बन्ते नै बोल्या - सुणा के खबर सैं बन्ते? बन्ते नै सन्ते ताहिं अखबार का पहलड़ा पेज पकड़ा दिया। वे सारी खबर पढ़ कै सन्ता बोल्या - भाई कोए चाहे बुरा मानो चाहे भला मानो पर बलात्कार घणे होवण के दो कारण सैं। बन्ते का ध्यान उस कान्ही गया। सन्ता बोल्या - एक तो ये लुगाई नौकरी करण के चक्कर मैं जिब तै बाहर जावण लाग्गी सैं जिब तै बलात्कार फालतू होगे। दूसरा इस फैशन नै म्हारे देश का टिब्बा कर दिया। जिब तै ये छोरी अर बहू फैशन करकै बाहर लिकड़ण लाग्गी सैं, ये जीन पहर कै सड़कां पै घूम्मण लाग्गी सैं जिबे तै ये बलात्कार फालतू होगे। और बी दो तीन लड़धू बैठे थे वे भी छूटदे की साथ बोले - संता कति सोला आने सही बात कैहर्या सै। आज काल की छोरी काबू ए मैं कोण्या रही। इनका घणा पां लिकड़गा, ज्याहे तैं ये इस ढाल की घटना फालतू होवण लागगी। एक लड़धू बोल्या - तो के इलाज हो इसका? सन्ता बोल्या - इलाज तो जिबे हो सकै सै जिब ये बहू अर छोरी घर तै बाहर पां नहीं धरैं। इतनी वार मैं ज्ञान विज्ञान आला राजेश बी आग्या, ओ बी उनकी बात सुणण लागग्या। बन्ते धोरै रहया नहीं गया ओ बोल्या रै सन्ते तेरी बात किमै जंची कोण्या। सन्ता टूट कै पड़्या - क्यूं जंचण मैं के कसर सै। या सारी दुनिया तो न्यों ऐ रूक्के मारै सै अक इन बीर बाणियां का घर तै बाहर पां लिकड़ग्या ज्यां तै बलात्कार बधगे। बन्ता बोल्या - भाई सन्ते ठाड्डू मतना बोलै। तनै अपनी बात पूरी कैहली अर हमनै शांति तै तेरी बात सुनी। ईब तू औरां की बात बी आराम तै सुण। राजेश बोल्या - बात सही सै भाई। हां बन्ते बता तूं अपणी बात बता। बन्ता बोल्या - आज के अखबार मैं पांच बलात्कारां की कै छेड़खानी की खबर छपी सैं। इनमां तै दो तै दो गामां मैं घरां मैं धिंगताणे बड़कै करी ओड़ घटना सैं। सन्ता न्यूं कहवै सै अक ये लुगाई जीन का फैशन कुढ़ाला करण लागगी ज्यां तै बलात्कार की घटना बधी सैं। फेर इस अखबार मैं आज ये छपी पांच खबर तै इसकी बातां की ताईद कोण्या करती। इन पांचों बलात्कारां का ना तो फैशन गेल्यां कोए संबंध अर ना बाहर जा कै नौकरी करणे तै कोए मतलब। अर ये जितने रलधू आड़ै बैठे सैं ये भी इस सन्ते की हां मैं हां मिलावण लागगे। एक रलधू बोलया - हमनै के बेरा म्हारे सोनीपत के कॉलेज का म्हारा टीचर सै ओ न्योए कहवै था। बन्ता बोल्या - हाथ कंगन ने आरसी के अर पढ़े लिखे नै फारसी के। एक दिन की पांच खबरां मैं तो या बात गलत पाई गई सै आपां एक हफ्ते के अखबारां की रिपोर्ट कट्ठी करकै देखल्यां उनमैं भी मेरी आली बात सही पावैगी अर बलात्कारां का जीन के फैशन तै अर लुगाई के नौकरी पै जावण तै कोए ताल्लुक नहीं सै। सन्ता फेर तमतमा कै बोल्या - मैं तो फेर बी कहूं सूं अक जै लुगाई घर तै बाहर नौकरी खात्तर नहीं जान्ती तो उसपै बलात्कार नहीं होन्ते। अर इस फैशन नै बी जलती आग मैं घी का काम कर्या सै। बन्ता बोल्या - भाई सन्ते तू ठाड्डा सै, तेरा रूतबा सै, तूं पीस्से आला सै, ज्यां तै ये रलधू बात तो तेरी ए मानैंगे फेर इसका मतलब यो बी नहीं सै अक तेरी बात साच्ची ए सै। साच्ची बात तो सै मेरी फेर तूं मान चाहे मत मान। एक दिन मनै अखबार मैं या बी पढ़ी थी अक बच्चियां गेल्यां बलात्कार उनके पड़ौसी कै रिश्तेदार करणिया फालतू सैं। अर उस अखबार मैं न्यों भी लिख राखी थी अक घर की चारदिवारी मैं भी महिला पै खूबै अत्याचार होवैं सैं। अब बलात्कार की घटना बी घर परिवार में घाट ना होन्ती। सन्ता जो बात कहवै सै ना अक बीरबानी बाहर लिकड़ी ज्यांते यो हुया पर ये घर मैं भी सुरक्षित नहीं सैं। खबरां के हिसाब तै दो महिलावां गेल्यां तो उनके घर मैं ए बलात्कार हुये। तो मामले की जड़ डूंघी सै। औरत नै घर की चारदीवारी मैं बन्द करकै इस समस्या का समाधान मनै तो दीखदा कोण्या। बाकी सन्ता फेर बी जै औरतां नै घर मैं कैद करणा चाहवै सै तो इसकी मर्जी। बलात्कार का ताल्लुक बाहर अर भीतर तै नहीं सै कई और बातां तै सै। बाहर के भीतर औरत सुरक्षित कितै बी कोण्या। क्यूं? इसका जवाब चाहिये।
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अपणा मारै छांह म्हं गेरै
मुंसी अर मौजी गढ़ी गाम मैं रह्या करदे। दोनूआं के घर धोरै-धोरै थे। दो-दो किल्ले धरती थी। गुजारा अच्छा था। दोनूं आपस मैं डंगवारा करकै काम चलारे थे। आज काल डंगवारे कोण्या रहे। एक बुलध मुंसी पै था अर एक मौजी पै था। हफ्ते मैं तीन दिन हल उसकै चालदा तै बाकी तीन दिन मौजी कै चालदा। बुलध-बुलध का डंगवारा था बाकी सब बात न्यारी-न्यारी थी। मुंसी कै चार बालक थे। मौजी कै एक फालतू था। पढ़ाई का ध्यान कोए से नै नहीं कर्या। कोए बालक चौथी मैं तै उठ लिया कोए पांचमी मां तै। हद या सै अक आठमी पास किसे तै नहीं होई। बड़े दुखी थे दोनूं। जमाना पढ़े-लिखे लोगां खात्तर बी आसान नहीं रह्या तो अणपढ़ां का कड़ै गुजारा? मुंसी का छोरा अठारा साल का होग्या। गात बी चौखा था अर कद बी लिकड़मा था। मुंसी अर मौजी नै सलाह करी अक रामे नै फौज मैं करवाद्यां। कुछ तो दाब कम होवैगी। दो-तीन बै खड्या कर्या पर नम्बर कोण्या आया। मौजी नै मुंसी को समझाया अक पचास साठ हजार माथे मैं मारद्यां सां किस्से कै। पर मुंसी का जी कोण्या मान्या। आखिरकार छह बर खड्या होणा पड़्या जिब जाकै उसका नम्बर आया।
दो-तीन बरस पाछै मौजी का छोरा गाभरू होग्या। सिविल मैं नौकरी थ्याई ना, मंत्रियां के बस्ते बी खूब ठाये। फेर फौज मैं जुगाड़ करणा चाहया पर उड़ै बी हालात बदलगे थे। छोरा दस बै खड्या हो लिया पर किस्से नै पाएं ना टिकण दिये। कदे छाती का माप कम, कदे वजन कम, कदे दौड़ मैं पाछै। जड़ छोरे धीरे के बी गोड्डे कति टूट लिये। उदास रैहण लागग्या, काम मैं जी लागणा बन्द होग्या। एकला पड्या रहवै कै सोएं जा। मौजी कै बी छोह आवण लागग्या। गैल्यां चिन्ता बी होगी अक के बणैगा छोरे का। एक दिन होक्के पै बैठे थे। बोल्या - किमै जुगाड़ भिड्या मौजी? न्यों बात कोण्या बणै। मौजी नै मुंसी की बात आच्छी कोण्या लागी।
खैर हार थक कै मुंसी अर मौजी बिचौलिया टोहवण चाल पड़े। एक जाटां का छोरा था आजाद, एक बाहमणां का था भगत अर एक सैणियां का था सूरत। तीनूआं धोरै गए अर रेट बूझे। सूरत के रेट घाट थे आजाद अर भगत तै। सूरत पचास हजार मैं कहै था, आजाद साठ मांगै था अर भगत सत्तर की मांग करै था। भगत सिंह मुन्शी नै कह्या बी अक अपणे माणसां की कुछ तो रियात होणी ए चाहिए अर ऊं बी हम बाहमण भाई ठहरे। भगत बोल्या - यो रेट तो थारै तांहि सै और किसे नै तो इतणे में मैं दरवाजे पै बी कोण्या खड्या होण द्यूं। आजाद अर सूरत भरोसे के माणस कोण। आपणी जबान पक्की होया करै।
दोनूं उल्टे चाल पड़े। अपणे-अपणे हिसाब तै सोचैं थे। मुन्शी का ख्याल था अक सूरत की मार्फत काम करवाया जा। मौजी न्यों सोचै था अक जै आजाद कै सूरत पीस्से मारगे तो के बणैगी? भगत फेर बी अपणा बाहमण भाई सै। कुछ तो लिहाज करै ए गा। फौजी नै मन बणा लिया अक भगत की मार्फत काम करवावैगा।
चालते-चालते मुंसी नै बूझ्या - फेर के मन बणाया मौजी? सोच-साच कै मौजी बोल्या: अरै मुन्शी वा पुराणी कहावत सै ना अक अपणा मारै त छांह मैं गेरै, सुणी होगी। मेरे तो जचैं सै अक भगत ठीक सै। मुन्शी चुप रह्या बोल्या कुछ नहीं, ना ना कहीं अर ना हां कही। फेर मन-मन मैं सोची - मरे पाछै छांह किसी अर घाम किसा?
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डिपरैसन
आजकाल जिस कान्ही नजर मारो उसे कान्ही डिपरैसन का माहौल नजर आवै सै। पड़ौसी नै बूझो अक के हाल सै तो जवाब मिलैगा - बस कटरै सैं दिन। घर मैं गाभरू छोरयां की हालत का तो बयान करना और बी मुश्किल। रोजगार ना कितै, ब्याह की बाट मैं सूक कै लीकड़ा हो लिया, और किमै साहरा ना जीवण का। डिपरैसन मैं पड़या सोयें जागा कै एकला बैठ्या बैठ्या सोचें जागा। जवान लड़कियां का हाल लिखण ताहिं तो और ढाल की कलम चाहिये। घर मैं खास तरां की दाब, छोरी नै न्यों नहीं करना चाहिए वो नहीं करना चाहिए। हंसना मना, बाहर जाना मना, अच्छा खाणा मना, किसे तै बोलना बतलाना मना। घर मैं उसनै इसा लागें जा ज्यूकर ईब बाज झपटैगा अर बाहर गिद्धां की ढाल नजर घूरती रहवै सै उसनै। ना भीतर ना बार किते बी बसेबा कोण्या उसका। डिपरैसन की शिकार वा करै सै अपणा खुद का बहिष्कार। नितांत एकली खड़ी पावै सै वा अपणे आप नै कईबै। खेती मैं डिपरैसन, कारखाने मैं डिपरैसन, खान मैं डिपरैसन। एटलस साइकिल मैं डिपरैसन, आयस्सर ट्रेक्टर मैं डिपरैसन, अम्बैसडर मैं डिपरैसन। सौ का जोड़ यो सै अक चौगिरदे नै डिपरैसन डिपरैसन छाग्या। बात झूठ बी लाग सकै सै कई माणसा नै। उन मुट्ठी भर लोगां नै जिनकै धोरै क्याहें की कमी नहीं, बेइन्तहा पीस्सा सै, इस बात की चिन्ता खाए जा अक कदे दिवालियां होज्यां। इस बात का डिपरैसन। डबल्यू एच ओ  नै लोगां ताहिं एक वारनिंग दी सै। इसका मानना सै अक दुनिया मैं 2010 ताहिं दिल की बीमारी नंबर एक पै होवैगी अर डिपरैसन की बीमारी नंबर दो पै आ ज्यागी। हाल साल मैं या डिपरैसन की बीमारी घनी ए तलै सै। डबल्यू एच ओ का यू भी ख्याल सै अक जै दुनिया की चाल इसे स्पीड पै रही तो हो सकै सै डिपरैसन की बीमारी 2020 ताहिं नंबर एक पै बी ना आज्या। डा. एच एल  कैला जो साइक्लोजी विभाग एस एन.डी.टी. युनिवर्सिटी मुंबई का अध्यक्ष सै नै चार सौ बालकां पै एक सर्वे करया। हर दूसरे बालक नै चिन्ता थी शिक्षा के बारे मैं खासकर इम्तिहान का बोझ था उनके दिमाग मैं अर दूसरी रोजगार की चिन्ता थी। किसी किशोर मैं जै ये लक्षण दीखें तो समझ लेना चाहिए अक यो डिपरैसन मैं सै कै जावण नै होरया सै। चिड़चिड़ा सुभा हो जाणा, नींद कम होणा, कम खाणा कै जरूरत तै फालतू खाणा, शरीर मैं आड़ै उड़ै दर्द की शिकायत होणा, खास ढंग का यौन व्यवहार। अर जै ये चीज दो हफ्ते तै फालतू चालती रहवै तो मान लेना चाहिए अक यू स्ट्रैस नहीं सै यू डिपरैसन सै। डिपरैसन का इलाज एक तो सै डाक्टरां धोरै जा कै दवाई गोली खावण का। दूसरा इलाज सै पहले इलाज की साथ-साथ जो इलाज करया जाणा चाहिये वो सै किशोर तै प्यार करां, स्नेह तै राखां, आराम करावां, आच्छा खावण नै देवां अर पूरी नींद लेवैं। दुनिया के पैमाने पै लोगां मैं डिपरैसन की बीमारी नंबर एक पै ना पहोंच ज्यावै इस खातर बी आपां नै, सबनै मिलकै किमै तो सोचणाए पड़ैगा। कई बार यू सोच्चण का काम आपां दूसरां पै छोड़दया सां। चाहे ओ राम जी ए क्यों ना हो, यू सोच्चण का काम आपां नै किसे पै नहीं छोड़ना चाहिये, खुद सोचना चाहिए। बख्त तै सोच ल्यो ना तो कदे डिपरैसन मैं आकै न्यों कहो - ओहले हमनै के बेरा था न्यों बणज्यागी?
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घपड़ चौथ
जीते सूरते नै बोल्या अक आज कै दिन कोए बात समझै मैं ना आकै देन्ती अक के होवण लागरया सै? पहलम आली बात रही ना नई बातां के सिर पां का बेरा ना। बताओ इसे मैं माणस करै तो के करै? सूरता बोल्या अक रै जीते ईब बीसवीं सदी खत्म होली अर ईक्कसवीं शुरु हो ज्यागी सात म्हिने मैं। जमाना तो घणा बदल ग्या अर हम उड़ै ए खड़े सां। जीता बोल्या अक भाई थोड़ा घणा हमनै भी तो बतादे। सूरता बतावण लाग्या अक दुनिया मैं कारखान्यां का विकास जड़ै पहोंचग्या उड़ै जाये पाछै वैश्वीकरण होणा तो लाजमी सै। जीता बोल्या इस वैश्वीकरण का के मतलब सै भाई? सूरता बोल्या इसका मतलब सै अक सारी दुनिया का एक गाम बण ज्याणा। ये देशां की सीम स्याम सब टूट ज्यांगी। इस वैश्वीकरण नै एक चाला और कर दिया अक यू जो गाम बणया इसके कायदे कानून इसे बणा दिये अक वे इसनै घणेदिन बसण कोण्या देवैं। ज्यां करकै वैश्वीकरण का यू माडल तो घणा सत्यानाशी बताया अक इसनै अमीर और अमीर बणा दिया अर गरीब और गरीब कर दिया। इस ढाल के विकास तै गहरा अर सर्वनाशकारी संकट का दौर शुरु हो लिया सै जो भारी सामाजिक अर इंसानी कीमत मांगैगा।
तो फेर इसतै बचण का के राह हो भाई सुरते, जीत सिंह नै बूझी। जिसकी पांचों घी मैं सैं ओ तै न्यूं चाहवैं सैं अक या घपड़ चौथ न्यौंए माची रहवै। उननै एक मुहावरा टोह्या सै टीना सिन्ड्रोम का। जीते फेर बोल्या - यू टीना सिन्ड्रोम के बला सै भाई? सूरता बोल्या - इसका मतलब सै देयर इज नो आलटरनेटिव। जीता - माड़ी सी और खोल कै बता बात पकड़ मैं आई नहीं। सूरता बोल्या - जो ईब होण लागरया सै इसका कोए विकल्प नहीं। यू विकास तो इसे ढालां ए होवैगा अर अमीर और अमीर होन्ता जागा अर गरीब और गरीब होन्ता जागा। या बात इन अमीरां नै सबकै जंचा दी अर म्हारे बरगे गरीबां कै भी जंचगी अर हम भी न्यों कैहवण लाग गये अक हमाम मैं सब नंगे हो लिये भाई ईब के हो सकै सै? जीत सिंह नै बूझ्या - तो तेरा के मतलब सै सूरते अक ईबी किमै हो सकै सै? सूरते बोल्या - इतिहास गवाह सै भाई जीते अक इन गरीबां नै इसे संकट के दौर मैं नई दुनिया का सर्जन करया सै। इननै इसा संसार बणावण की कोशिश करी सै जित इन्सानां का अर कुदरत का तालमेल सही हो फेर कुछ लालची अर अमीर लोग आकै भांझी मार देवैं सैं। ईबी न्यारे ढंग तै गरीबां नै इस अमानवीय विकास अर इसतै पैदा होवण लागरे सत्यानास का मुकाबला करना पड़ैगा। जीत सिंह बोल्या - जिब हमनै सारी बातां का बेरा ए कोण्या तो हम मुकाबला क्यूकर कर सकां सां? सूरता बोल्या - इन सारी बातां का बेरा तो लाणा ए पड़ैगा अर जै नहीं बेरा पाड्या तो ज्यूकर म्हारे बाप दादा मर खपगे हम भी मर खप ज्यांगे।
इक्कीसवीं सदी का दौर घणा कसूता दौर रहवैगा। इस मैं नये नये रणनीति के टीके तैयार करे जावैंगे अमीरां कान्ही तै अर गरीबां नै इसकी रोक के (प्रतिरोध की ताकत बधावण) आले टीके तैयार करने पड़ैंगे। नई अर उन्नत तकनीक का हुनर बीसवीं सदी का ब्रह्मास्त्र था फेर ईब मैन पावर के मायने बदलैंगे। संख्या के हिसाब तै काम के तौर तरीके खत्म हो ज्यांगे। ईब क्वालिटी का जमाना आवैगा। सारे कै क्वालिटी का रूक्का पड़ैगा। एक माणस जै बारह माणसां तै फालतू गुणवत्ता देवै सै तो इन बारां की सैड़ दे सी छुट्टी करी जागी। इनका अर इनके बालकां का के होगा इसकी चिन्ता का कोए मतलब नहीं रहवैगा। इस गुणवत्ता आले माणस की दक्षता बढ़ावण ताहिं ट्रेनिंग का और सब क्याहें का इन्तजाम करया जागा। यू पंूजी का खेल सै। पूंजी अपणे पूरे जोबन पै आकै खेल खेलैगी अर गरीबां कै फांसी लावैगी अर अमीरां की चाकरी करैगी। इसतै मुक्ति का रास्ता तो गरीबां नै खोजना ए पड़ैगा। या दुनिया के बेजुबानां की, दुनिया के गरीबां की, दुनिया के शरीफां की, दुनिया के ईमानदारां की जरूरत सै वरना महासागर मैं धकेल दिये जावण का खतरा रोज बढ़ता जावण लागरया सै। जीते बोल्या - रै सूरते तनै तो मैं कसूता डरा दिया। तेरे कहवण का मतलब तै यू होग्या अक जिसकी लाठी उसकी भैंस आला बख्त हटकै आवैगा। जिसका ब्यौंत सै ओ ऐश करैगा अर बाकी घिसड़ैंगे। सूरता बोल्या - बस न्यों ए समझले जीते अक इक्कीसवीं सदी का मूल मंत्र - ‘सरवाइवल आफ दि फिटेस्ट’ होन्ता दीखै सै अर यो मूल मंत्र गरीबां की गोभी जरूर खोदैगा। गरीबां नै बख्त रैहवन्ते राजनीतिक भ्रष्टाचार की, अमानवीयकरण की, अत्याचार की अर पर्यावरण प्रदूषण करण आल्यां की गोभी खोदनी पड़ैगी। जीते बोल्या - पर इन सारी बातां नै एक लड़ी मैं पिरोकै, इसी भाषा बणाकै अक सबकै समझ मैं आज्या जनता ताहिं कूण ले ज्यागा? सूरता बोल्या हमनै हरेक फ्रंट पै संघर्ष के नये-नये हथियार घड़ने होवैंगे अर इस खातर सबतै जरूरी हथियार सै विचार का। इन अमीरां का सबतै बड्डा हमला म्हारे इस विचार पै सै। टी.वी. के चैनल इस मामले मैं अमीरां के हथियार सैं अर म्हारा विचार इननै म्हारे तै खोस लिया अर पूरी घपड़ चौथ मचा कै धरदी। हमनै अपने हक के विचारां के घणे पैने हथियार घड़णे होंगे अर अपणा विकल्प तैयार करना होगा।
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मुफ्त इलाज
सूरता काले नै बोल्या - काले माड़ा मन क्यूंकर कर रया सै भाई? काला - के बताऊं सूरते वा थारी भाभी कई दिन तै बीमार सै। सूरता - तो फेर उसनै खरखोदै सरकारी हस्पताल मैं लेज्या। काला - लेग्या था उड़ै। दो हफ्ते दवाई दी। 782 रुपइयां की दवाई आई फेर आराम कोण्या आया। सूरता - मैडीकल मैं नहीं दिखा कै ल्याया? उड़ै बी लेग्या था। सात चक्कर तै काट लिये। पांच सौ रुपये तै फालतू तै भाड़े-भाड़े के खर्च हो लिए। दवाइयां के भी 600-700 और लागगे। फेर डाक्टर बोले अक रंगीन एक्सरे होवैगा अर उसकी तारीख दे दी तीन महीने आगे की। 250 रुपइये का अल्ट्रासाउंड करया। मनै सोची अक तीन महीने मैं तो या ऊंए ना मर लेगी। मैं रोहतक नरूला मैं चाल्या गया भाई। उसनै डेढ़ हजार तै फालतू रंगीन एक्सरयां के ले लिये पर उसकी रिपोर्ट मैं भी बीमारी का खुलासा नहीं हुआ। तो डाक्टर बोले अक एक लिजा टैस्ट हो सै टी.बी. खातर ओ और करवा कै देख ले। 600-700 रुपइये उसमैं लागगे फेर उसमैं टी.बी. कोण्या आई। सूरता बोल्या - चाल सोनीपत चालांगे उड़ै एक डाक्टर बहोत स्याणा सै। मैडिकल मैं धक्के खाये ओड़ मरीज कई ठीक कर लिये उसनै। काला बोल्या चाल पड़ांगे। आगले दिन सोनीपत गये - उड़ै डाक्टर बोल्या अक इसका तो परेशन बनैगा अर रुपइये 25000 लागैंगे इसकी आंत मैं गुलझट सै वा ठीक करणी पड़ैगी। सूरते नै काले कान्ही देख्या। काला बोल्या - सलाह करकै अर पीस्से का इंतजाम करकै फेर आवांगे। बड़ी भीड़ी धरती होगी। घर मैं च्यार याणे-याणे बालक। घरआली की लाम्बी बीमारी। करै तो के करै। गाम मैं नेता जी आरे थे उनकै साहमी दुखड़ा रोया। ओ बोल्या - घबरावै मतना। मैडिकल मैं तेरा इलाज मुफ्त मैं हो ज्यागा। उसनै काण कै टेलीफून लाकै अर बेरा ना किसतै बात करी अर न्यों बोल्या थोड़ा घणा दवाई दवाइयां का खर्चा हो तै हो ना तै मैडिकल मैं फलाणे डाक्टर तै उस दिन जाकै मिल लिये अर थारा काम हो ज्यागा। काला तीन हजार रुपइयां का इंतजाम करकै फेर मैडिकल पहोंच्या। संतरा दाखिल तै होगी फेर उसमैं खून की कमी थी। डाक्टर बोला च्यार बोतल खून की चाहियें दो परेशन तै पहले चढ़ाणी पड़ैंगी अर दो परेशन कै बख्त चाहिये। काले मैं आपे खून नहीं रैहरया। ओ बोल्या - डाक्टर साहब खून कितै मोल नहीं मिलज्या। मैं गरीब माणस सूं अर कोए और माणस सै नहीं। डाक्टर बोल्या - खून का इंतजाम तो तनै ए करना पड़ैगा। हाथी का खून तो चढ़ता नहीं माणस कै। इसकै तो माणस का ए खून चढ़ैगा। ल्या चार माणस किते तैं बी। संतरा बोली चाल चालांगे गाम मैं। मनै मरणा सै तो चैन तै तो मर ल्यूंगी उड़ै। काला सूरते धोरै आया अर बोल्या - सूरते खून की अड़गी। के करूं? सूरते नै खून दिया एक रिश्तेदार (स्साले) ने दिया फेर दो की कसर फेर बी रहैगी। अस्पताल मैं छह दिन होगे। संतरा के पेट का अफारा बढ़ता चाल्या गया। खून पै रोज डाट पड़ै काले पै अर ओ तले नै नाड़ करकै चुप चाप सुणले। कर करा के एक माणस मैडिकल के बार तै पकड़या अर उस ताहिं सात सौ रुपये दिये अर एक बोतल खून का इंतजाम और करया चौथी बोतल ताहिं बड्डे डाक्टर के पाहयां कान्हीं हाथ करकै बोलया - देखल्यो डाक्टर साहब थाम तो भगवान सो संतरा नै बचाल्यो। डाक्टर पसीजग्या अर चौथी बोतल उड़ै तै करवादी। परेशन बणग्या। परेशन आले दिन 1200-1300 का सामान आया। अर दस दिन पाछै रही उड़ै। रोज की ग्लूकोज की चार बोतल दो सौ रुपइयां की लागती। एक टीका दो सौ रुपइये का दो बै लागता। दस दिन मैं आठ हजार की ग्लूकोज ल्याणी पड़ी। फेर शुकर सै संतरा के पेट का दर्द तै ठीक होग्या चाहे बीस हजार रुपइये तीन रुपइये सैकड़ा ब्याज पै लेणे पड़े। ईब कद सी अक यू कर्जा उतरैगा इसकी चिंता खायें जा सै काले नै। पहलम तै बीमारी नै सिर गंजा करया अर ईब यो तीन रुपइये सैकड़े का ब्याज सिर गंजा करैगा।
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रै इबी बखत सै ले ल्यो सम्भाला
भारत नै अमरीका गेल्यां हाल मैं एक समझौता कर्या सै। इस समझौते के तहत भारत सात सौ चौदह आइटमां पर तै लाई औड परिणामात्मक पाबन्दी हटा लेगा। हटाले तो हटाले म्हारी सेहत पै के फर्क पड़ैगा? पड़ैगा अर घणा कुढ़ाला फर्क पड़ैगा। अप्रैल 2000 ताहिं तै इन सात सौ चौदह चीजां पर तै पाबन्दी हटाई जागी अर अप्रैल 2001 ताहिं बाकी के सारे आइटमां पर तै हटा ली जागी। अर या अमरीका अमरीका ताहिं नहीं इसमैं जापान, आस्ट्रेलिया, कनाडा अर योरपीय संघ भी शामिल हैं जिनकी गेल्यां 2003 ताहिं ये पाबन्दी हटावण का समझौता पहलमै कर लिया था। तो इस समझौते का मतलब के सै। इसका मतलब यो सै अक भारत मैं बिना किसे रोक टोक के कृषि उत्पादां का आयात करया जा सकैगा। फेर के होग्या कर लेंगे आयात हमनै के लेणा देणा? म्हारे हरियाणा के किसानां नै धान के भा मैं उतार चढ़ाव का मजा तो थोड़े ए दिन पहलम चाख कै देखा सै अर ईब ताहिं मुंह का कडुआपन ठीक नहीं हो लिया सै। इब अमरीका आले समझौते पाछै तो अमरीकी कृषि उत्पादां की भारत मैं बाढ़ सी आ ज्यागी। फेर आवै तो आ ज्याओ हमनै के? इसी बात नहीं सै भारत का किसान अर भारत की खेती जमा तबाह हो ज्यागी।
बिजली बोर्ड के जमाने मैं बिजली दर 97 पीस्से प्रति यूनिट थी। पर जिब तै ये बिजली बोर्ड तोड़ कै बिजली प्राइवेट कम्पनियां के हाथां मैं दी सै उसे बख्त तै बिजली के रेट भी तीन च्यार गुणा बधगे। एनरोन कम्पनी धोरै महाराष्ट्र राज्य बिजली बोर्ड चार रुपइये 98 पैसे प्रति यूनिट की दर तै बिजली खरीदी जावै सै। तमिलनाडु मैं सी एम आर वासवा कम्पनी चार रुपइये दस पैसे कीमत लेवैगी। उड़ीसा मैं तीन रुपये नब्बे पैसे हो लिया बिजली का भा। इस महंगी बिजली नै किसान की कड़ और बी तोड़ कै धरदी। अर इबै के सै? अखबारां मैं रोज पढ़ण मैं आवै सै अक डीजल के भा, मिट्टी के तेल के भा इस बजट मैं और भी बधावैगी सरकार। किसान की एक हाथ लाम्बी जीभ बाहर आ ज्यागी। कई प्रदेशां मैं किसान आत्म हत्या करण लागरे सैं चाहे पंजाब हो, चाहे हरियाणा हो अर चाहे कर्नाटक हो।
हरियाणा के किसानां नै इन सारी बातां पै सोचणा चाहिये अर जो वोट मांगण आवै उसपै इन बातां पै खुलासा करवाना चाहिये अक गोहाणा तै रोहतक का बस का भाड़ा था दो आन्ने। उस बखत गिहूं का भा था तीस रुपइये मण ये बात सन छप्पण की सैं। आज गोहाणे तै रोहतक का बस का भाड़ा कितना सै? आज गिहूं का के भा सै? सिर क्यूं खुजावण लागगे लाओ किमै अन्दाजा। अर भाड़ा कै गुणा बधग्या अर गिहूं का भा कितने गुणा बध्या। अर यो फरक क्यों सै? मनै बेरा सै थाम हिसाब कोनी लाकै देखो। सोचणा थारे बसका कड़ै सै?
अर इस सारे चक्कर नै समझे बिना हम अपणी बदहाली का कारण अपणी किस्मत नैं मान बैठां सां। कै दुखी हो कै फांसी खाल्यां सां अर कै निराश हो कै तड़के तै सांझ ताहिं तास खेलते रहवां सां अर कै नेता जी के बस्ते ठावण लागे रहवां सां। अर कै आपस मैं जात पै, गोत पै अर ठोले पान्ने पै लट्ठ बजाये जावां सां। अर इबके लैक्सनां मैं तै बात गोत पै कसूती आण टिकी। सारा हरियाणा गोतां मैं बंटकै खड़या होग्या - मलिक, दहिया, हुड्डा, नैन, सांगवान अर और बेरा ना के के। कोए किसानै कोण्या रहया। तो किसानां का भला कूण करैगा? ये गोतां के चौधरी जो एम.एल.ए. बणन की खातर मूछां कै ता दे कै अर गोत की झण्डी ठाकै रिफले हांडैं सैं, ये बतावैं तो सही अक हरियाणा के किसान नै बिजली सस्ती क्यूकर दिलवावैंगे।
सांच्ची बात या सै अक किसान नै तै अपणा किसानीपना छोड़कै जात का, गोत का, न्यारी-न्यारी सभावां का चस्मा चढ़ा लिया कै इन नेतावां नै चढ़ा दिया अपणी रोटी सेंकण खातर। महेन्द्र सिंह टिकेत बरगे मोटी समझ कै कारण पिछड़ लिये। उनकै बातै काबू कोण्या आई तो के बणैगा इन किसानां का अर इस देश का। म्हारी सरकारां नै अर म्हारे नेतावां नै इन जी-सात के ठग देशां के साहमी कति गोड्डे क्यों टेक दिये? इस लैक्सन मैं चाहे किसे नै बणा लियो, छह म्हिने पाछे लैक्सन तो फेर आलेगा। केन्द्र सरकार इबके बजट मैं कसूते ताकू चभोवैगी, जनता कुकावैगी, नेतावां की शामत आवैगी, उनमैं अपणी पार्टी मैं (जिसकी टिकट पै जीत के गये सैं) घुटन महसूस होवैगी। इनेलो (जनतान्त्रिक) बनैगी कै और किमै नाम होगा, कांग्रेस मैं फूट पड़ैगी, दो चार म्हिने यो सांग भरया जागा अर आखिर मैं फेर लैक्सन। अर यू सिलसिला बेरा ना कद जाकै खतम होगा। हरियाणे नै इसै मैं मजा आरया सै तो खूंटा ठोक के कर सकै सै? रै इबी बखत सै ले ल्यो सम्भाला अर काढ़ ल्यो नई राही।
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कमाल नये पेटैंट के
राजो अर धर्मो बतलावण लागी अक ये ज्ञान विज्ञान जत्थे आले आये थे अर पेटेंट का बहोत जिकरा कररे थे। राजो बोली - ए धर्मो या पेटैंट किमै गुणी चीज लागै सै ज्यां करकै जिसनै देखै, ओहे इसका जिकरा करै सै। धर्मो बोली - बेबे के बताऊं? बेरा तो मनै बी कोण्या अर किसे तै बूझां तो शर्म आवै सै। अर ऊं बी म्हारे गाम मैं सै बी कूण इसा जो इसके बारे मैं सारी बात खोल कै बतादे। एकाध किसान यूनियन का माणस सै ओ रिस्ते में पितसरा लागै सै बता उसतै जाकै क्यूकर बूझां? स्कूल के मास्टर सैं वे कालर कोरे लागै मनै तो। अपणली छोरी सै ना स्यामो उस पै पुछवाई थी मनै तो उसका मास्टर न्यों बोल्या अक पेटैंट नै के खाकै मरैगी सल्फास की गोली खा लिये जै तनै मरना ए सै तो। वा साक्षरता अर ज्ञान विज्ञान आल्यां की चेली सै ना किताबो वा कईबर बात चलाया करै पेटैंट की आज सांझ नै जिब नलके आवैंगे तो उसपै बूझांगें। दोनूं पाणी की बाट मैं नलके पै जा बैठी उड़ै पहलमै पन्द्रह बीस मटके धरे थे। किताबो बी आगी अर राजो अर धर्मो उसनै एक औड़ नै ले जा कै बूझण लागी। धर्मो - ए किताबो पेटैंट का बेरा सै किमै तो बतावै नै हमनै। किताबो बोली घणा तो मनै बेरा ना फेर न्यों बतावैं सैं अक म्हारे देश खातर कोए बढ़िया बात ना सै। राजो - तै फेर म्हारे देश आले क्यों इसकी हिम्मात मैं लागरे सैं? किताबो - या तो पेटैंट के हिम्मातियां तै जाकै बूझियो। बाकी मनै तो इतना बेरा सै अक यो पेटैंट खोज करणियां कै उन कम्पनी नै जो खोज करैं सैं इन खोजां पै पूरा कब्जा करण का हक दे दे सैं। पेटैंट के मालिक की मर्जी के बिना कोए भी माणस उस पेटैंट का इस्तेमाल कोनी कर सकता। बदेसी कम्पनियां इस अधिकार का गल्त इस्तेमाल करकै तीसरी दुनिया के लोगां नै जो खोज करी सैं उनका उननै लाभ ठावण तै रोक सैं वे। ये जी सेवन के जितने खागड़ देश सैं इनकी मार तै बचण की खातर तीसरी दुनिया के देशां नै अपणे पेटैंट कानूनां मैं खबरदारी बरत राखी थी अक गरीब देश इस बदेशी कम्पनियां की झलां तैं बचे रहज्यां।
यो नया पेटैंट कानून जो कांग्रेस अर बीजेपी नै मिलकै पाछली संसद मैं पास कर दिया यो, म्हारे देश की औद्योगिक जड़ां नै बी खोखला करकै धर देगा अर अपणे पाहयां पै खड़े होवण का म्हारा सपणा तहस नहस करकै धर देगा।
राजो बोली - ए किताबो माड़ा सा तो सांस ले ले। एकै सांस मैं इतनी बात बतागी। म्हारा दिमाग इतना तेज कड़ै सै अक इतनी बातां नै एकै बर मैं समझ ले। बाकी की फेर बताइये। हां एक बात तो समझ मैं आगी अक यो पेटैंट म्हारी भलार मैं कोण्या। ले बेबे चालूं सूं धारां नै वार होवण लागरी सै। किताबो - बेबे इसतै बी फालतू किमै बूझणा सै तो एक दिन ज्ञान विज्ञान आल्यां नै बुला ल्यां सां वे और तोड़ खुलासा कर देंगे। धर्मो बोली - इबै नहीं बेबे ईबै काम का बख्त सै माड़ी सी काम तै फुरसत हो लेवण दे फेर बुला लिये। राजो अर धर्मो घर नै आगी। राजो का घर आला भी धोले लत्ते पहरे हांडैं जाया करै। राजो नै सोची अक आज तो बूझ ले अर किमै बता बी दिये। सांझ नै दिलबाग आया तो पेटैंट पै बात सुरू होगी अर राजो उसपै बूझण लागी -
बतादे करकै ख्याल पिया, यो पेटैंट के जंजाल पिया,
उठती दिल मैं झाल पिया, यो करें कैसे कंगाल पिया,
सै योहे मेरा सवाल पिया, मनै जवाब दिये खोल कै।
समिति नै जलसा करकै ये सारी बात बताई हो,
सन पैंतालिस तै पहल्यां गोरयां नै लूट मचाई हो,
आच्छी कहे सरकार पिया, समिति करै इन्कार पिया,
अमरीका बदकार पिया, बणाया देश बजार पिया,
क्यों बढ़ती तकरार पिया, मनै जवाब दिये तोल कै।
बढ़िया से पेटैंट घणा, मन मेरा तै मानै कोण्या हो,
यो कैसे बढ़ै निर्यात पिया, घटै कैसे आयात पिया,
क्यूकर बचै औकात पिया, म्हारी चढ़ी सै श्यात पिया,
क्यों मारग्या सन्पात पिया, मनै जवाब दिये टटोल कै।
खाद पाणी बिजली खुसगे, यो अपणा बीज ना होगा,
स्कूल यूनिवर्सिटी ऊपर कब्जा, कम्पनी का होगा,
फेर ना मिलै दवाई पिया, घणी बढ़ै म्हंगाई पिया,
किसनै रोल मचाई पिया, जनता झूठ भकाई पिया,
क्यूकर बचै तबाहि पिया, मनै जवाब दिये बोलकै।
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म्हारी कमाई कित जा सै
जिब न्यों जिकरा चालै अक हम इतनी मेहनत करां पर फेर बी हम भूखे क्यूं? तो बेरा सै म्हारे दिमाग मैं के जवाब आवै सै अक म्हारी किस्मत मैं ए पीस्सा कोण्या। जो जिसे करम लिखवा कै ल्याया सै ओ उसे ए फल पावैगा। उसकी इच्छा कै आगै माणस का के बस चालै सै? अर और बी घणे एक जुमले सैं जो सुणण मैं आवैं सैं। पर ये बात वैज्ञानिक सोच की ताकड़ी मैं धरकै तोली जावै तो सही नहीं तुलती। इनमैं किमै ना किमै रोल दीखै सै। वा क्यूकर? एक कहाणी सै जिसके नाम बदले औड़ सैं पर सै साच्ची। एक डाक्टर सै। उसनै रोहतक मैडिकल कालेज तै एम.बी.बी.एस. करी अर एम.एस. (सर्जन बणण की ट्रेनिंग) बी आड़ै ए तै करी। अर हरियाणा के एक जिले मैं जाकै उसनै प्रैक्टिस शुरू कर दी। जिब मैडिकल मैं पढ्या करदा तो बहोत शरीफ मान्या जाया करदा। घर तै बी घणा रहीश नहीं था। नर्सिंग होम चाल पड्या। अखबारां मैं रोज जिकरा रैहन्ता - आज इतने किलो की रस्सोली काढ़ दी अर आज न्यों कर दिया। रूक्का पड़ग्या। जिसतै बूझो ओए न्यों कहवै अक बहोत आच्छी किस्मत लिखा कै ल्यार्या सै। सब क्याहें की मौज सै किस्मत हो तै फलाणे डाक्टर बरगी हो। एक दिन बेरा लाग्या अक उसके घर पै अर नर्सिंग होम पै छापा पड़ग्या इन्कम टैक्स आल्यां का। फेर जितणे मुंह उतणी ए बात। कोए कहवै राजनीति सै इसमैं। इतना काम्मल डाक्टर था इसकै बी छापा गेर दिया। कोए कहवै अक इन्कम टैक्स आल्यां का भोभा नहीं भर्या होगा उसनै ज्यां करकै छापा गेर दिया। ईब झूठे केस बना देंगे इन्कम टैक्स आले। छापे मैं उस डाक्टर धोरै पांच करोड़ के एफ.डी. पाए (कोए बूझै इन्कम टैक्स आले ये एफ.डी. किततै बणवा ल्याये?)। एक मशीन (लेजर सर्जरी करण की) उसके नर्सिंग होम मैं लागी औड़ सील करी सै इन्कम टैक्स आल्यां नै। इस मशीन की कीमत साठ लाख रुपइये बताइये सै। कमाल की बात या सै अक इसके कोए कागज नहीं। या मशीन बाहर के किसे देश तै आई सै। ईब या क्यूकर आई? इसमैं किस-किस नै कितने पीस्से खाये? ये सारी बात इन्कम टैक्स आले बेरा पाड़ सकैं सैं। फेर जिकरा उस शहर मैं न्यों बी था अक इस डाक्टर का ना बिगड़ै कुछ। यो ले दे कै इन्कम टैक्स आल्यां नै अर साफ बच ज्यागा। बात या थी अक म्हारी मेहनत की कमाई कित जा सै? तो ये पांच करोड़ रुपइये उस डाक्टर नै म्हारै तैं ए म्हारा इलाज करण के नाम के कमाये होंगे अर क्यूकर कमाये (घणी फीस ली अक थोड़ी या तो जनता जाणै) फेर उसनै कमाये अर इन्कम टैक्स आल्यां ताहिं अपणी कमाई का बड्डा हिस्सा दिखाया कोण्या। तो उसके अमीर होवण कै पाछै उसकी किस्मत नहीं उसका काला धन सै। ईबी जै म्हारै यकीन नहीं होया अक म्हारी कमाई कित जा सै तो मेरे धोरै इसतै फालतू बात नहीं। हां म्हारे देश के हरियाणा अर पंजाब के कई आंकड़े बतावैं सैं अक दो किल्ले आले कै चार किल्ले आले किसानां की धरती बिकण लागरी सैं अर एक साल मैं जितणी धरती वे बेचैं सैं उसका दस तै बीस प्रतिशत वे घर के सदस्यां का इलाज करवावण खात्तर बेचैं सैं। तो म्हारी कमाई म्हारे धोरै तै कित जा सै उसका एक उदाहरण तो यू सै अर इसे-इसे उदाहरण हर गाम अर हर शहर मैं पाज्यांगे। म्हारी कमाई और बी कई जगां जावै सै उसका जिकरा फेर कदे करांगे। कई बै मरीज घणा बीमार होज्या तो मैडिकल मैं लेज्यां। उड़ै उसका परेशन होकै ओ ठीक होज्या तो विज्ञान का, मैडिकल साइन्स का, डाक्टरां का धन्यवाद नहीं करते। उसकी जगां कहवांगे अक इसकी किस्मत मैं लिख राख्या था ज्यां तै बचग्या। कई बै मैडिकल आले हाथ खड़े करदें अर ओ मरीज अपोलो मैं कै जयपुर गोल्डन मैं ले जाणा पड़ज्या अर दस पन्दरा दिन उड़ै रैहणा पड़ज्या तो पांच सात लाख बिना पैन्डा नहीं छूटता। तो गरीब माणस तो अपोलो कान्ही मुंह करे नहीं सकदा अर जो मुंह कर बी ले सै तो उसनै कै तो धरती बेचणी पड़ै सै, कै मकान बेचणा पड़ै सै अर कै घर आल्यां के सारे जेवर बेचने पड़ैं सैं। अर फेर जै मरीज गेल्यां ऊंच-नीच होज्या तो बी आपां न्यों ए कहवा सां अक के करां उसकी किस्मत मैं न्यों ए लिख राखी थी। अर जै ओ बच ज्यावै तो बी आपां न्यों ए कहवां सां अक उसकी किस्मत मैं न्यों ए लिख राखी थी। एक बात तै मेरै पक्की जरगी अक या किस्मत हमनै सही ढंग तै सोच विचार करकै बीमारी के कारणां ताहिं नहीं जाण देन्ती अर ना इस बात का बेरा लागण देन्ती अक म्हारी कमाई कित जा सै?
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झोटा फ्लाईंग
एक दिन मैं दिल्ली तै आऊं था। टेम 8.30 बजे सी का था। सापले तै घणे एक पढ़णिये बालक चढ़गे। मजबूरी थी ड्राइवर नै बस रोकणी पड़ी। उसका बस चालता तो ओ बिना रोकें उनके ऊपर कै तार ले जान्ता। बस मैं बैठी सवारी ढाल-ढाल की बात करण लागगी। इननै ऊधम मचा राख्या सै। इननै जीना हराम कर दिया। न्यों कोए सोच्चण नै तैयार नहीं अक ये आड़ै दो घण्टे तै खड़े सैं अर बस आले बस ना रोकते। कालेज मैं वार होवण लागरी। तो ये गाभरू छोरे करैं तो के करैं? आगै सी ईस्मायला आग्या उड़े तै बी बीसियां छोरी अर तीसीयां छोरे और चढ़गे उसमैं। कितै पां टेकण नै जगां कोण्या रही। ईस्मायला के पुल तै ऊतरेए थे अक रोहतक कान्ही तै एक मिनी बस आकै रूकी अर उसनै म्हारे आली बस बी रूकवा ली। मिनी बस मां तै 8-10 पहलवान से दिखण आले लोग उतरे अर म्हारी बस घेर ली। म्हारी बस मां तै बी कई गाभरू उतर-उतर कै अर खेतां मां कै भाज लिये। कई तै खिड़कियां के मां कै कूदगे। कोए बोल्या - झोटा फ्लाईंग आगी। ईब इनमैं तै एक दो उन छोर्यां कै पाछै भाज लिये। छोर्यां की रेस भी देखण जोगी थी। जै कोए टेम देखणिया हो तै सौ मीटर दौड़ के टेम के रिकार्ड टूटे पावैं। उनमैं तै एक छोरा थ्याग्या। बस फेर के था। लात घूंसे बरसण लागगे उसपै। ओ छोरा पड़ग्या। एक पहलवान नै तो चाला ए कर दिया उस छोरे के कोहनियां ते पिटाई शुरू कर दी। पन्दरा बीस मिनट का न्यारा ए नजारा था। एक सवारी न्यों बोली - ये छोरे भी इस झोटा फ्लाईंग कै ए काबू आवैं सैं। दूसरी सवारी बोली - जिब इन ताहिं पास की छूट तो देदी पर बस पहलम तै थोड़ी करदी। अर जो सै वे बी लाम्बे रूट का नाम लेकै इन खात्तर बस ना रोकैं तो ये करैं तो के करैं? पहली सवारी बोली - जिब ये इतने होगे सरकार बी कितनी एक बस चला सकै सै? बस इसे ढाल की बात होन्दी रही रोहतक ताहिं।
फेर मेरा ख्याल इन झोटा फ्लाईंग आल्यां कान्ही गया। नाम तै इनका सही धर राख्या सै। झोटे की एक खास बात बताई अक ओ गस्सीला बहोत हो सै अर गश खान्ता वार नहीं लावै। ताकत तै होए सै उसमैं। फेर दिमाग नाम की चीज इनकै धोरै छटांक बी नहीं होन्ती। मनमानी उसके सुभा का हिस्सा सै, जी चाहवै उसके खेत मैं मुंह मार्यावै। तो कमोबेश इन झोटा फ्लाईंग आल्यां की शकल अर हाव भाव अर डील डोल झोट्यां के हिसाब मैं फिट बैठदा लाग्या। जिसनै बी इस फ्लाईंग का यो नाम काढ्या उसका धन्यवाद। कोए अपणे आप नै झोटा कहवाकै क्यूकर राज्जी हो सकै सै? फेर गजब यू था अक मनै झोटा कहवा कै राज्जी होन्ते माणस आज अपणी आंख्यां देख लिये।
रोहतक नजदीक लाग लिया था। कुछ सवारी आड़ै उतरी। बस चाल पड़ी अर मेरे दिमाग मैं बी हटकै विचारां की होल उठण लागगी। मनै ख्याल आया अक झोटा फ्लाईंग नै उस छोरे के मारे क्यूं? भाई झोटा फ्लाईंग आल्यों थारे धोरै इस तरां का हरियाणा सरकार का कोए हुकमनामा हो तै हरिभूमि के माध्यम तै मेरै ताहिं पहोंचाइयो। जै नहीं सै यू गादड़ पर्चा तो थारा न्यों बालकां की पिटाई करणा गैर कानूनी सै अर ये नौजवान थारे पै मुकदमा कर सकैं सैं। कानून कहवै सै अक बिना टिकट आल्यां पै दस गुणा किराया लिया जा ओ तम ले सको सो। मान लिया उस धोरै किराया नहीं सै तो जज के साहमी पेश करकै उसकी जेल का कानून सै। पर पिटाई करण की बात कहवण आला कानून कितै नहीं सै।
झोटा फ्लाईंग नै अपणी झोटे की समझ तै बाहर आकै इन्सानी समझ तै काम लेणा शुरू करणा चाहिए नहीं तै किसे दिन गस्सीले झोटे के पाछै ज्यूकर गाम पड़कै उसकी गत बणाया करै न्यों थारी गत बी बण सकै सै।
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बहम का इलाज
म्हारे बुजुर्गां धोरै न्यों सुनते आवां सां अक बहम की दवाई तै लुकमान धोरै बी नहीं थी। पर आजकल बहम की दवाई की जरूरत बहोत सै। जिसकै देखो उसै के क्याहें ना क्याहें का बहम होरया था। बंसीलाल कै दारु बन्दी का बहम होरया सै तै भजन लाल कै बंसीलाल की सरकार गेरण का बहम रोज बबावै सै अर देवीलाल के बहम होरया सै अक अपणे बेटे चौटाला नै हटकै चीफ मिनिस्टर क्यूकर बणावै। बीरेन्द्र सिंह कै बहम बड़ग्या अक इन तीनों लालां की छुट्टी करकै मैं क्यूकर चीफ मिनिस्टर बणूं। बाकी बी घणे सैं जो चेयरमैन बणण का बहम पाले हांडैं सैं। कै घणे ए इसे बी सैं जो एकै रात मैं अरबपति होण का बहम लादें घूमण लागरे सैं। जड़ कहण का मतलब यो सै अक बहम की दवाई की पूरे हरियाणे के हरेक माणस अर बीरबानी नै जरूरत सै। जै इस दवाई का नुस्खा मेरे हाथ लागज्या तै मेरी चान्दी जरूर होज्यागी इसका बहम मेरे बी सै।
सारे हरियाणा मैं जिब बहम की दवाई नहीं पाई तै मैं गुजरात मैं गया उड़ै तै इस बीमारी का प्रकोप फैल रया सै, पर इलाज कोण्या। फेर महाराष्ट्र मैं गया उड़ै बाल ठाकरे का देश पै राज करण का बहम देख कै तो मनै गश आगी थी। राजस्थान मैं गया तो देख्या अक शेखावत साहब बी कई हकीमां नै बिठारे थे अपने धोरै। जड़ बात याह सै अक सारे भारत महान मैं हांड कै देख लिया पर बहम की दवाई कोण्या पाई। कई बै तो जी मैं आवै सै अक भारत के साइन्सदानों नै एक गाड्डी भर कै गाल द्यूं। इस मामूली सी बीमारी की दवाई बी तैयार नहीं कर सके ईब ताहिं। ऊं तो माणस चान्द पै जा लिया अर बहम की दवाई ईजाद नहीं करी। अर ज्यों ज्यों मुनाफाखोर व्यवस्था मैं मुनाफा खोर विकास होन्ता गया त्यों त्यों बहम का मरज बी बढ़ता ए जाण लागरया सै। कई बै मेरा तो इसा जी करै सै इन सारे बहमियां नै कट्ठे करकै दिल्ली मैं एक प्रदर्शन करया जा तो गिनीज बुक मैं नाम लिखण तै कोए नहीं रोक सकता। दुनिया के 50 प्रतिशत बहमी म्हारे देश मैं रैहन्ते बताए।
ऊं तो म्हारे बड्डे बडेरे कैहगे अक बहम की कोए दवाई तो होणी ए चाहिए ना तो ये हरियाणे के सारे लाल अर उनके लाडले मैडिकल के वार्ड नम्बर तेरां मैं भरती होए पावैंगे तो फेर हरियाणा नै कूण सम्भालैगा? हरियाणा नै राह कौण दिखावैगा? जै दवाई नहीं सै तो इसकी खोज तो करी ए जाणी चाहिये। बेरा ना म्हारे प्रदेश के डाक्टर कूणसी खोज के चक्करां मैं सैं। इस कान्हीं उनका ध्यान बेरा ना ईब ताहिं क्यूं नहीं जा लिया। अर न्यों बी सुणण मैं आवै सै अक बहम का मरज छूत का रोग सै यो एक माणस तै दूसरे मैं अर दूसरे से तीसरे मैं बहोत तावला फैलै सै। इस रोग के शिकार माणसां के राज दरबार खत्म होगे, घर बार उजड़गे तथा कानी कोड्डी के नहीं रहे वे माणस। माणस कै चाहे कैंसर हो जाओ पर यो बहम का मरज नहीं होणा चाहिये। शंका, शक इस रोग के दूसरे नाम सैं, हो सकै सै और बी कई नाम हों इसके।
एक बर एक इसे माणस कै घरां जाणा पड़ग्या जिसकी गेल्यां कदे उसका बैर रहया था। पर आजकल ठीक ठाक बात थी। सामण का म्हिना था। उसनै घेवर मंगवा राख्या था। जीत सिंह नै खाणा पड़या पर घरां आया इतनै उसकै यो बहम होग्या अक कदे नफे सिंह नै घेवर मैं जहर जाहर ना मिला दिया हो? बस फेर के था जीत सिंह कै तो, पसीने आगे, दिल का पंखा सा चाल पड़ा, नाड़ी सौ तै ऊपर गई, जी घबरावण लाग्या। तीन चार बर पेशाब करण गया। जणो गात का जमाए सत् लिकड़ ग्या हो। भाज्या-भाज्या डाक्टर धोरै पहोंच्या जीत सिंह। डाक्टर नै देख्या सब किमै ठीक ठ्याक था। उसनै जीत सिंह समझाया अक बहम मतना करै सब ठीक सै। फेर जीत सिंह तो सैड दे सी बोल्या अक बहम नहीं मनै लागै सै किमै ना किमै होण आला सै। देख बालक रूल ज्यांगे मेरे तो अर तों डाक्टर ओहले कैहकै एक औड़ नै होज्यागा। फेर डाक्टर नै एक बै देख्या पर किमै हो तै पावै। डाक्टर बोल्यां जीते यो तै तेरा खामखा डर बैठ ग्या, बात कुछ बी नहीं सै। जीत सिंह घरां आग्या पर जिक थोड़े ए ना पड़ै थी। सारी रात भाई नै मसकोड़े ले ले कै काटी। घरआली बी दुखी होली अर उसनै बी मनै मन मैं सोच्या अक बालकां के बाबू के ओपरा आपरा तो नहीं होग्या सै, सारी रात मसकोड़े मारे सै खाट मै। खैर तड़कैंए ताहिं जिब कुछ नहीं होया तो जीत सिंह कै माड़ी सी जिक पड़ी। इस बहम का घेरा राजनीति अर खाण पीण की चीजां ए ताहिं कोण्या, यो बहोत बड्डा सै। एक बै मास्टर जी के अपनी घरआली के बारे मैं शक होग्या। घरआली बैंक मैं नौकरी करया करती। मास्टरजी तो कदे पीस्से जमा करवावण के बाहणै अर कदे लिकड़वाण कै बाहणै रोज बैंक मैं खड़या पावै शेर। ऊंबी घणी चौकसाई बरतन लागग्या। घरआली कै बी शक होग्या अक आजकल मास्टर जी क्यों सारी हाण बैंक मैं खड़े रहवैं सैं। आपस मैं बिना बात के झगड़े शुरू होगे। मास्टरजी कै बालक पीटण की आदत तो थी ए, एक दिन घरआली कै बी धर दिये। कई जानकारां नै बीच बचाव करया। मास्टरजी नै दिमाग के डाक्टरां धोरै लेगे उननै बिजली लाई अर पूरा एक म्हिना इलाज करया जिब जाकै थोड़ा ठीक होया। पूरी ढाल ठीक तो ईबी नहीं हो लिया। ईब के करै उसकी घरआली क्यूकर अपणी छाती चीर के दिखावै अक उसमैं उसै की मूरत सै।
इस बहम करकै तो और बेरा ना के के होण लागरया सै पर इसकी दवाई तो कोण्या पाई ईब ताहिं। फेर एक बात सै देखण मैं न्यों आया सै अक गाम मैं एकाध माणस समझदार खुले दिमाग आला, ईमानदार ईसा हो सै जिसकी बातां का असर इन बहमियां कै जरूर होज्या सै। पर दिक्कत तो या सै एक ईसे बढ़िया माणस तो कई कई गामां बिचालै एकाध रैहगे अर बहमी माणसां की लार रोज बढ़ती जा सै। क्यूकर बात बणैगी मेरे इस बात का बहम होया रहवै सै। बात तो सोचण की सै अक आखिर बहम के मरज का इलाज के हो?
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बोफोर्स का भूत
जिब 1989 मैं वी. पी. सिंह सत्ता मैं आया अर बोफोर्स घोटाले की हटकै गंभीरता तै जांच शुरू करवाई तै पांच लोगां नै स्विस अदालत तै या प्रार्थना करी थी अक ओ भारत सरकार ताहिं कोए सूचना ना दे। वे पांच माणस थे - बोफोर्स के एजैंट ‘विन चढ़ा’, इटली के दंपति आटोवियो तथा मारियो क्वाट्रोची तथा दो हिन्दूजा बन्धु। हिन्दूजा जिन्हें इस देश में हर तरहां की स्वतन्त्रता हासिल सै नै यो आरोप लगाया था अक इस मामले मैं जै कोए सूचना भारत सरकार ताहिं दी जावै सै तै उसनै न्याय नहीं मिलैगा क्योंकि मानव अधिकारों के मामले मैं जो हालात इस देश मैं सैं वे दम घोटू सैं। एक अनुमान के हिसाब तै बोफोर्स रिश्वत के लगभग 16 करोड़ रुपइये स्विस खात्यां तै (जो लोटस, ट्यूलिप अर मॉन्ट ढलांक नाम के झूठे खाते थे) जुबिली फाइनेंस कारपोरेशन (जिनेवा) के खात्यां (जिनका संबंध हिन्दूजा तै सै) मैं स्थानान्तरित कर दिये गये। देखैं - (इण्डिया टुडे, 28 फरवरी 97) ईबै स्विस अधिकारियों नै कुछ और कागजात भारत मैं भेजने सैं अर चित्रा सुब्रामण्यम के हिसाब तै उन कागजातां का संबंध हिन्दूजा ताहिं दिये जाण आले धन गेल्यां सै। (देखें - इण्डियन एक्सप्रेस, 25 जनवरी 1998)
भाजपा के नेतावां खासकर बाजपेई जी अर अडवाणी जी नै सोनिया गांधी अर क्वाट्रोची के संबंध खूब उछालैं सैं पर बेरा ना के बात रही अक हिन्दूजा के बारे मैं वे एक शब्द बी नहीं बोले। एक ढाल तै या बात अचम्भे आली सै पर दूसरी ढाल या अचम्भे आली नहीं बी सै। पाछले कुछ सालां मैं हिन्दुजा नै भारत अर इंग्लैंड में संघ परिवार की गतिविधियां खातर खूबै पीस्सा दिया सै। अर इस पीस्से नै इनके मुंह कै ताला लुवा राख्या सै। पाछै सी ‘आउट लुक’ पत्रिका 2 फरवरी) नै अपणे पाठकां का अटल बिहारी वाजपेयी पर हिन्दूजा के बीच के सम्बन्धां की कान्ही ध्यान खींचण की कोशिश करी बताई। सन् 92 मैं वाजपेई नै प्रधानमंत्री नरसिंह राव को एक चिट्ठी लिखी जिसमें लिख्या था अक हिन्दूजा अपणे स्विस बैंक के खाते की जांच करवावण नै तैयार सै। यो भी एक निरा ए पाखण्ड था चूंकि हिन्दूजा नै यो आच्छी ढाल बेरा था अक स्विस बैंक आले उस खाते मैं बोफोर्स आला काला धन जमा ए कोनी करवा राख्या। ‘आउट लुक’ की रिपोर्ट तै एक बात का और बेरा लाग्या अक हिन्दूजा नै बम्बई के अपणे ‘इण्डस इण्डबैंक’ के उद्घाटन के बख्त अर लन्दन मैं दीवाली के मौके पे किस ढाल धूमधाम तै इनकी आवभगत करी थी। 1995 मैं जिब भारत के सांसदां का एक शिष्ट मंडल लन्दन गया तो बाजपेयी जी उस शिष्ट मंडल के मुखिया थे अर हिन्दूजा की तरफ तै सारे सांसदां ताहिं टेम्ज नदी मैं नाव पै सैर सपाटे खातर न्यौता गया था। मुखिया नै बिना बताये अक कूण सैर करावै सै यो न्यौता कबूल कर लिया। जिब बेरा लाग्या तै सी पी एम के सांसद सोमनाथ चाटर्जी नै इसका कसूता विरोध कर्या अर जिब नाव पै सवार सांसदां ताहिं हिन्दूजा नै यो भाषण दिया अक अपणै हित मैं ओ भारत मैं किस ढाल की राज व्यवस्था चाहवैं सैं तै अटल बिहारी जी मूक दर्शक बने रहे।
इस बात मैं कोए शक नहीं अक बोफोर्स मैं अगला नंबर हिन्दूजा का ए सै। अर इसमैं कोए अचरज की बात नहीं सै अक सोनिया गान्धी की मांग का समर्थन अटल बिहारी नै भी करया। अर आगै भी इनका हिन्दूजा नै बचावण खातर असली चेहरा साहमी आवै। इस ढाल का कमाया औड़ काला धन फेर लैक्शनां मैं अर सांसद खरीदण के काम मैं लाया जावै सै। संघ परिवार सारी हाण नैतिक मूल्यां की बात करें जावै सै। या बात न्यारी सै अक उसकी कथनी अर करनी में शुरू तै ए कोए मेल नहीं रह्या अर सौ सौ कोस का अन्तर रह्या सै। कल्याण सिंह दलबदलुआं नै कुर्सी देकै, उत्तर प्रदेश की सबतै बड्डी मन्त्री परिषद बणा कै राज का सुख भोगण लागरया। तेरह म्हिने भाजपा नै केन्द्र मैं काचे काटे अर ईब पांच साल का और पास बणवावण खातर जनता के तलवे चाट्टण नै होरी सै।
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सांस्कृतिक थानेदारी
ज्यूकर अफगानिस्तान मैं फतवे जारी करकै महिलावां के अधिकार खोसण का काम करया गया इसे ढाल का काम भारत मैं भी शुरू हो लिया सै। पहला फतवा - लड़कियां के पहरैं अर के ना पहरैं। दूसरा फतवा लड़कियां किस ढाल के मुकाबल्यां तै दूर रहवैं। तीसरा फतवा - लड़के-लड़कियां ब्याह पाछै के के करैं अर के के नहीं करैं। चौथा - लोग हैप्पी बर्थ डे करना भूल ज्यां। पांचवां फतवा - हैप्पी न्यू ईयर कोई नहीं करैगा अर और भी कई बात। भारतीय संस्कृति नै बचावण के नाम पै उत्तर प्रदेश की सरकार नै सौंदर्य प्रतियोगितावां पै रोक लादी। म्हारे गाम मैं सत्तू सै ओ बोल्या बहोत बढ़िया बात करी। इन लुगाइयां की अकल ईब ठिकानै आवैगी। हुक्के पै बैठे पांच च्यार बुजर्गां नै भी सैड दे सी हां मैं हां मिलाई। भीतर सत्तू की बहू भी सुणै थी ये सारी बात। जिब बाकी के लोग चाले गये तो उसनै सत्तू भीतर बुला लिया अर बोली के बात करो थे? ओ बोल्या - कुछ बात ना थी। राजबाला बोली - बात तै थी। तम यू पी के चीफ मिनिस्टर नै सराहो थे अक सौंदर्य प्रतियोगिता डंडे के जोर पै बन्द करकै बहोतै काम्मल काम करया उसनै। सत्तू माड़ा सा बेचैन हो के बोल्या - जिब के झूठ सै या? ठीक तो करया सै उसनै। तमै तो कहया करदी अक ये ब्यूटी कम्पीटीशन नहीं होने चाहियें। राजबाला बोली - इन ब्यूटी कम्पीटीशनां का विरोध जनता की जागरूकता बढ़ाकै अर सारी जनता नै साथ ले कै अर महिलावां की स्वतंत्र पहचान का सम्मान करने के आधार पै करया जाना चाहिये। ये फतवे जारी करकै तो महिला के अधिकार कुचलण का काम होवैगा। सत्तू बोल्या - म्हारी तै समझ मैं आन्ती ना तेरी बात। बिना डन्डे के कूण मानै था। राजबाला बोली - इसी सरकार यू पी की जिसके 35 तै फालतू मंत्री बलात्कार अर महिलावां की गेल्यां जोर जबरदस्ती करण समेत विभिन्न अपराधां के आरोपी हों उनतै या उम्मीद क्यूकर करी जा सकै सै अक वा ईसी संस्कृति नै समझैगी अर उसकी रक्षा करैगी जो महिलावां नै शक्ति सम्पन्न बणावन्ती हो। बढ़ती गरीबी के चालते, अपराधियां तै दी जावण आली शै के चालते, महिलावां के खिलाफ होवण आली हिंसा की बढ़ोतरी के चालते ईसे प्रतिबन्धां का के मतलब सै? सत्ते बोल्या - तो के ए बी वी पी नै कानपुर मैं महिलावां पै जो ड्रेस कोड जारी करया था ओ गल्त था के। राजबाला बोली - और के ओ ठीक था? साथ मैं बदेशी कम्पनियां के निवेशां नै अपनी कान्हीं खींचण खातर कुछ सरकार इन ब्यूटी कम्पीटीशनां नै खुला प्रोत्साहन देवैं सैं, तो गल्त सै। महिलाओं के शरीर नै जिन्सां के रूप मैं दिखावण आले इन ब्यूटी कम्पीटीशनां का विरोध होना चाहिये। फेर इसका यू मतलब कति नहीं सै अक औरत की अपनी स्वतन्त्रता ताहिं सम्मान ना दिया जा। उस ताहिं बाहर जावण की बी इजाजत ना हो, उसनै घर मैं कैद करण के फतवे जारी कर दिये जावैं। सत्तू फेर बोल्या - तेरी बात मेरी कति समझ मैं नहीं आई।
राजबाला बोली - सौंदर्य प्रतियोगितावां का विरोध करणियां दो ढाल के लोग सैं। एक तै वे लोग सैं जो महिला के आच्छा पहरण खावण पै भी एतराज करैं सैं, इन लोगां नै उनके शरीर के टी.वी. पै एडवरटाइज मैं दिखावण तै कोए गुरेज नहीं, ये लोग औरत के सती होने नै आच्छा मानैं सैं, औरत की मनू की धारण नै ठीक मानैं सैं। जिसमैं कहया गया सै शूद्र, पशु और नारी, ये सब ताड़ण के अधिकारी, ये वे लोग सैं जो बाल विवाह के हिम्माती सैं। जिननैं भंवरी बाई के बाल विवाह विरोध करण पै उस ताहिं सबक सिखावण नै उसकी अस्मत लूट ली थी। ये लोग विधवा विवाह के भी हिम्माती कोण्या। सत्तू बोल्या - दूसरी ढाल के कुणसे लोग सैं? राजबाला बोली - इन पहलम आल्यां के बारे मैं होग्या पूरा ग्यान? ये लोग रूढ़िवादी विचारां आले सैं जो लुगाई कै गुद्दी पाछै मत बतावैं सैं। ये वोहे लोग सैं जो महिला नै समाज मैं बरोबर का दर्जा दे कै कति राजी कोण्या। सत्तू का मुंह लाल होग्या - बोल्या जिब चाहे ये बेशक रूढ़िवादी कहे जान्ते हों फेर बात तो इनकी ठीकै सी लागैं सैं। राजबाला बोली - महिलावां के मुद्दे पै तूं तूं नहीं घणखरा गाम इस रूढ़िवाद का शिकार सै। जिसतै भी बात करो ओहे घूंघट का हिम्माती पावैगा। औरत नै तो आगै ल्याकै कोए भी राज्जी कोण्या। फेर ईब औरत इन बातां नै समझण लाग गी सैं अर वे थारी डाटी डटैं कोण्या। इन फतवे देवणियां का वे डटकै मुकाबला करैंगी अर समाज के वे दूसरी कान्ही आले लोग इनकी हिम्मात मैं खड़े होवैंगे। सत्ते बोल्या - एक ढाल के माणसां का तो तनै जिकरा कर दिया फेर उन दूसरी ढाल के माणसां की तसवीर तो खींचीए कोण्या। राजबाला बोली - पहलम ढाल के माणसां तै ठीक उल्टे विचारां के माणस सैं इस दूसरे पाले मैं। सती प्रथा का विरोध करैं, बाल विवाह का विरोध करैं, विधवा विवाह के हिम्माती, महिला पुरुष के बराबर के अधिकार चाहवणिया। ये माणस औरत नै एक चीज के रूप मैं कोण्या देखते। ये डण्डे के दम पै औरतां नै सीधी करण की बात नहीं करते।
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पक्का गधा - पी.जी.
तड़के तै सांझ ताहिं कुम्हार के डंडे खायें जा, बोझ तै लद्या हांडे जा उसनै ए गधा कहवैं सैं। खावण पीवण का बख्त आवै तो कुम्हार उसनै खोल कै कुरड़िया कान्ही करदे अक जा मौज कर। दिन रात भूखा प्यासा रैहकै काम करै, डण्डे खावै अर फेर गधा कुहावै। योहे तै सै कलयुग। घनीए किस्म सैं म्हारे देश मैं गध्यां की - मजदूर गधा, किसान गधा, कर्मचारी गधा वगैरह-वगैरह। फेर कुछ दिन पहलम मनै मैडिकल जाणा पड़ग्या पेट के दर्द के कारण। उड़ै एक पढ़या-लिखा अमिताभ बच्चन जितना लाम्बा, खूबसूरत गधा देख्या। इसे गध्यां की मैडीकल मैं गलेट लागैं सैं। 150 सौतै ऊपर बताये। तड़के तै सांझ ताहिं अर सारी रात मरीजां के इलाज मैं लागे रहवैंगे। राउण्ड पै सीनियर डाक्टरां की डाट खावैंगे, कान ताहिं हिलावैं ना। मरीज के रिश्तेदार दुखी करें जावैं, नर्स कहया मानकै देवैं ना, क्लास फोर एकाधा गडरा कै बोलै। छोटे तै छोटे काम तै लेकै मुश्किल तै मुश्किल काम ताहिं इस पी.जी. नै करने पड़ैं सैं। बेराना क्यूकर करैं सैं? म्हारले गाम आले कुम्हार के गधे मैं अर इस पी.जी. मैं थोड़ा ए सा फर्क लाग्या। कुम्हार फेर भी डण्डयां तै पीट कै सांझ नै उसनै थोड़ा पुचकारदे सै, एकाध बै खरैरा करदे सै। फेर इन पी.जी. भाइयां नै पुचकारनिया कोए नहीं। इस पी.जी. धोरै बेगार भी घणिए करवाई जा सै। एक ढाल की बेगार हो तै जिकरा करया जा। उड़ै एक पी.जी. तै रात नै बात करण का मौका मिलग्या। मनै थोड़ी सी हमदर्दी जताई तो भाई तो अपणी दास्तान सुणावन्ता सुणावन्ता रो पड़या। न्यूं बोल्या - म्हारे बरगा दुखिया इस संसार मैं कोए नहीं। हम अपणा दुखड़ा किसे आगै रो बी नहीं सकदे। दिल्ली तै रेल की टिकट बुक करवा कै हम ल्यावां चाहे च्यार बर जाणा हो चाहे पांच बर जाणा हो। रिजरवेशन के पीस्से बोस कदे नहीं देवै। टाइप, कम्प्यूटर, स्लाइड का सारा काम बोस का हम अपणे पीस्यां तै करवावां, दिल्ली शोपिंग करण जाणा हो तै ओ म्हारी कार नै तोड़ै अर जिस धोरै कार कान्या ओ मारूति वैन का इन्तजाम करकै देओ। बोस की तै बाहर बाल बच्यां नै ले कै चाल्या जातै रातनै उसके घर की रूखाल करनी पड़ै। बोस जै मकान बणावै तो उसके इतनै लैंटर नहीं आले इतनै तो उसके पी.जी. भाइयां की नींद गायब। मरीज धोरै दस हजार की घूस तै ले बोस अर मरीज की देखभाल उसका पी.जी. करै, उस मरीज के नखरे ओ पी.जी. ओटै।
इन बोसां नै कदे क्लास मैं आकै नहीं झांकना। पढ़ाई का भट्ठा बिठा दिया। इननै अपने प्राइवेट मरीजां तै ए फुरसत नहीं लाग कै देती। जिस मरीज नै चढ़ावा चढ़ा दिया हो उसतै तो बोस हंस कै बात करैगा। पांच मिनट उसके बिस्तर पै भी लावैगा। दिखावे खातर पी.जी. भाइयां पै डाट भी मारकै दिखावैगा। पी.जी. नाड़ तले नै करकै सब सुणता रहवैगा। जिब इम्तिहान होवैंगे तो इम्तिहान मैं पास फेल का ड्रामा रच्या जावै सै। कोए सोने की चैन देकै आवै सै तो कोए हाथ का सोने का कंगना। पीस्यां की जागां सोने तै अर चीजां तै फालतू प्रेम सै आजकाल के बोसां नै।
पीस्से लेन्ता तो बोस पकड़या बी जा सकै सै फेर सोने का कड़ा लिया सै इसपै उसने कूणसा वीजीलैन्स विभाग पकड़ैगा? कई बोस तै उस पीजी नै इसे बताए जो लंगोटी के बी साच्चे कोन्या। कई पी.जी. छोरियां नै देख कै उनकी लार पड़ें जावैं सैं। पास फेल की तलवार लटका कै वे उनतै बहोत कुछ चाहवैं सैं। सोने पै सुहागा यो सै अक ये इतने नीच गिरे औड़, पापी बोस हमनै गधा बतावैं। ये अपनी कान्ही कदे नहीं लखावैं। सबतै ईमानदार होवण का फेर पाठ पढ़ावैं।
पी.जी. की इस ढाल की बात सुणकै मेरै कसूता सदमा सा होग्या। कई बड्डे डाक्टरां की तसबीर बहोतै बढ़िया थी मेरे दिमाग मैं फेर वातै जमा चूर-चूर होगी। पी.जी. नै बताया अक अपणे बालकां नै पास करावण ताहिं, उनके नम्बर बधवावण ताहिं ये किते ताहिं भी झुक सकैं सैं। साचें ए कलयुग आग्या पूरे मैडीकल के मरीजां का जिनके कान्ध्यां पै बोझ सै आज के दिन वे सैं पी.जी. (पक्के गधे) अर जो हर तरां उस पी.जी. का शोषण करैं, मरीज नै बख्सैं ना वे बोस डाक्टर समाज के सबतै बड्डे सफेद पोश माने जावैं। अर उड़ै चर्चा या बी थी अक यो जो मेज कै नीचै-नीचै सारा लेण-देण हो सै इसमैं सरकार प्राइवेट प्रैक्टिस की छूट डाक्टरां नै दे कै अपनी मोहर लावणी चाहवै सै। ये इब्बै इन छोटे डाक्टरां नै पक्के गधे बनालंे सैं फेर तो इन बिचारे पी.जीयां का के होगा बेरा ना? इनकी हालत ब्यां करण नै फेर खूंटा ठोक की कलम मैं तो ज्याण बचै नहीं अर और कोए लिखै नहींगा इनके बारे मैं तो ये पी.जी. अर मैडीकल के मरीज जमा राम्भज्यांगे।
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धरती पुत्तर का नारा - पड्या लोकतन्त्र पै भार्या
सरोज नै बूझया - हे सरती आज कित जाओ सो बेबे? सरती बोली - ए दिल्ली की सरकार के जी जिवासे नै रोकै आवां सां अक कै दिन हो लिये फीजी देश मैं महेन्दर पाल चौधरी कैद कर राख्या अर वा बोल चुप्पाकी बैठी। सरोज नै फैर बूझ लिया - कूण-कूण जाओ ओ? चौधरी के नजदीकी बी जावैं सैं अक नहीं? सरती झट बोली - ए सरोज भाण सारा ए बहू जमालपुर गाम सिंगरया हांडै सै दिल्ली जावण के नाम का। सरोज कै पाछले लैकसन की बात खटकरी थी कोए तै वा फेर बूझ बैठी - तो लोकतन्त्र की इतनी चिन्ता होगी के बहु जमालपुर आल्यां नै? सरती कै बात माड़ी सी कम समझ मैं आई फेर बी उसनै जवाब दिया - बेराना बेबे फेर गाम आले लोग अर लुगाई त्यार तो कैहन्ते की साथ हो लिये। सरोज तै नहीं रहया गया अर बोली - पाछै सी आड़ै विधान सभा के लैकसन मैं जिब वोट पड़े थे तो बोग्गस वोट भुगतावण मैं सबतै आगै था यू गाम अर थारे ये धौल कपड़िये। गरीब जाट अर बाहमनां के वोट ये पहलड़े झटके में गेरगे अर हरिजनां की वोटां का तो जिकरा ए कड़ै था। ईबये हे फीजी के लोकतन्त्र के ठेकेदार होगे। बात घाट समझ मैं आई बेबे सरती। धौरे बैठी मनभरी इनकी बात सुणण लागरी थी वा बोली - महेन्दर पाल चौधरी के बड्डे बुजुर्ग बहु जमालपुर के रहवण आले थे ज्यां करकै ये उसके बचावण खातर कठ्ठे होरे सैं। वो इनका धरती पुत्तर जो ठहर्या। बाकी इननै लोकतन्त्र की घणी सी चिन्ता कड़ै सै? सरोज मन भरी की बात सुणकै बोली - हे मनभरी वे फीजी आले भी तै धरती पुत्तर का नारा देरे सैं अक म्हारी धरती का माणस फीजी का प्रधानमन्त्री होणा चाहिये। तो फेर म्हारे मैं अर उनमैं फर्क के रह्या? सरती नै दिमाग पै जोर देणा पड़या अर बोली - धरती पुत्र का यू नारा पिछड़ी सोच का प्रतीक सै। जिब बी यू दिया जागा उड़ै यू घर घालैगा।
यू नारा फीजी आल्यां कै जो लोकतन्त्र चाहवैं सैं कसूता काम कर सकै सै। इस नारे मैं तानाशाही की बू मारै सै अर कई देशां मैं तानाशाही इसै नारे के कान्धयां पै सवार होकर आई सै। जित बी लोकतन्त्र नै अपणी जड़ डूंघै जमा ली उड़ै दूसरी मूल के लोगां के भी वेहे लोकतान्त्रिक अधिकार सैं जो उड़े के मूल निवासियां के सैं। सरोज फेर ताव सी खागी अर बोली - फेर ये म्हारे गाम आले जो महेन्दर पाल चौधरी का झण्डा ठारे इनकी सोच मैं के धरती पुत्तर की भावना काम नहीं करण लागरी? सरती नै जवाब दिया - करण लागरी सै अर या गलत बात सै। महेन्दर पाल चौधरी तै इन बातां तै घणा ऊपर उठया औड़ माणस सै। उसनै तानाशाही कै खिलाफ फीजी के मूल निवासी भी अर भारत के मूल के निवासी भी कठ्ठे करकै लेबर पार्टी बणा कै संघर्ष करकै लोकतन्त्र की एक साल पहलम स्थापना करी थी फीजी मैं।
मनभरी नै सरती टोक दी - तो इब महेन्दर पाल चौधरी नै के कबाड़ा कर दिया अक यू स्पेट अर मुट्ठी भर लोग उसकै खिलाफ बगावत करकै खड़े होगे? सरती बोली - भारत तै कुछ पीढ़ी पहलम के लोग मुजारे बणकै फीजी मैं गये थे। ज्यूकर पंजाब के किसान कुरूक्षेत्र पेहवे के इलाके मैं मुजारे बणकै आये थे। इन मुजारयां नै उड़ै अपणा खून पसीना एक करकै उड़ै की धरती बोवण खावण जोगी करी। उड़ै इनकी मेहनत रंग ल्याई अर फीजी के लोग जिनकी वा धरती थी वे मालामाल होगे। इन मुजारयां ताहिं वा धरती पट्टे पै दी थी फीजी की सरकार नै। ईब यू पट्टे का बख्त खत्म होवण आला था अर उड़ै मुजारयां की मांग सै अक इतने साल तै जो जमीन बोवैं बाहवैं सैं जमीन पै हक उनका हो। जमीन की माल्कियत मुजारयां की हो। अर ना तै कमतै कम यू पट्टे का बख्त पचास सौ साल और बधाया जा।
महेन्दर पाल चौधरी इन मुजारयां का हिम्माती सै ज्यां करकै इन स्पेट हर नै फीजी मैं धरती पुत्तर का नारा देकै यू तख्ता पल्ट कर दिया अक ये मुजारे बेदखल करे जा सकैं। मनभरी नै फेर टोक दी सरती। इतनी बातां का तनै क्यूकर बेरा लाग्या? सरती बोली - अखबारां मां तै पढ़कै बेरा लाग्या बेबे। सरोज नै बूझया - अक यू कुरूक्षेत्र के मुजारयां ताहिं हरियाणा की सरकार नै पट्टे का हक दिया अक नहीं? जै नहीं दिया तो फीजी की सरकार जै देणा चाहवै थी तो के ठीक करै थी? सरती बोली - हरियाणा मैं तै धरती पुत्तर का नारा देकै वे घणखरे मुजारे उजाड़ दिये थे। फेर एक बात समझ लेणी चाहिये अक महेन्दर पाल चौधरी की सरकार की बहाली की लड़ाई। लोकतन्त्र की बहाली की लड़ाई सै, मुजारयां के हक दिवावण की लड़ाई सै। यो धरती पुत्तर के नारे के खिलाफ लड़ाई सै अर इसमैं या सोच बणाकै हम सब नै अपणा योगदान।
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मेरा अदालत जाणा
मैं धौलपुर जिले के नकसोदा गाम का रहवण आला एक गरीब सूं। मेरा नाम रामेश्वर जाटव सै। मेरा गाम कई बरस पहलम छूट लिया। 1998 में साल की अप्रैल के म्हिने की बात सैं ये। मेरे 150 रुपये एक सवर्ण में आवैं थे। मनै हाथ जोड़ कै आग्रह करया अक मेरे 150 रुपइये उल्टे दे दिये जावैं। बस फेर के था। रामेश्वर नै तो धरती भीड़ी होगी। मनै अपणी खातर मौत न्यौत ली समझो। स्वर्णां नै समझ्या अक रामेश्वर जाटव हेकड़ी दिखाग्या। म्हारे पै पीस्से मांगण की हिम्मत क्यूकर होगी। कई स्वर्ण कट्ठे होकै आये अर मैं बांध-जूड़ कै मेरी नाक मैं छेद करकै जूट की एक मीटर लाम्बी अर दो मिलीमीटर चौड़ी दो रस्सियां का एक छल्ला मेरी नथनां मैं घाल दिया। उस बख्त की आज भी याद करकै मेरै कंपकंपी आ ज्या सै। दरद का चाला होरया था। इतनी मैं ए कोण्या साधी उन जालिमां नै। इस नकेल नै पकड़ कै मनै घसीटते औड़ लेगे अर पूरे गाम मैं मैं घुमाया। सारे गाम मैं किसे की हिम्मत नहीं होई जो उस बखत मेरी मदद पै आ जान्ता। कई दिन मैं जाकै इस जुल्म की दहशत तै बाहर आवण पाया। उस दिन बेरा लाग्या मनै उस कहावत का अक ‘‘जिस पैर ना पटी बिवाई वो क्या जाणै पीर पराई।’’
इस घटना की खबर अखबारां मैं सुर्खियां मैं आई। मनै कुछ होंसला होया। सारे देश मैं एक बै विरोध की लहर सी उठगी। दूसरे देशां के अखबारां मैं भी, टेलीविजन पै भी इस जुलम के बारे में एक बै तो उफान सा आया। बहोत खबर छापी। एकबै तो मनै लाग्या अक न्याय जरूर मिलैगा मनै। फेर शायद मेरी वा भूल थी। घणा कसूता झटका लाग्या मेरै। गाम के स्तर पै नौकरशाही नै एक आतंक का माहौल बना दिया अर भीतरै भीतर उनके दिल मैं मेरी बाबत घृणा थी उसके चालते यू सारा प्रचार बेअसर कर दिया भाइयां नै। दूजे कान्ही जब इस मामले मैं सनसनी अर न्यारा दीखण आली बात सांप्पड़ ली तो प्रैस अर टी.वी. की भी मेरे मैं दिलचस्पी खत्म होगी। जो मानवाधिकारां आले ग्रुप थे वे भी सहज-सहज पाछेनै हटते चाले गये। मैं फेर एकबै एकला रैहग्या। मेरे इस एकलेपन का एहसास म्हारे देश के कितने अक लोगां नै हुया होगा मनै कोए अन्दाजा नहीं। मेरे हिसाब तै वे मुट्ठी भर इन्सान रहे होंगे। मीडिया भी भूलग्या अर फेर जो मेरे पै बीती उसनै सुणनिया कोए-कोए था, घणखरे अपने-अपने कामां मैं लागगे। इसतै आगै जो कुछ हुया मनै अपने दम पै भुगतन की कोशिश करी, खुद झेल्या। जो कुछ मनै झेल्या सै वो सब हटकै मीडिया ताहिं बतावण की ताकत मेरे मैं नहीं रैहरी। इतने दबाव मेरे ऊपर आये। बन्दूक छाती कै लादी उन गुज्जरां नै। मारा-पिट्टी के मौके कितने थे मेरै याद बी कोण्या रहे।
आखिर मैं भाइयो मनै अदालत मैं लाइन बदलनी पड़ी। समझ सको सो उस बखत की बात जिब वे जालिम अदालत में मेरे साहमी खड़े थे अर वकील नै सवाल करया - इननै पिछाणै सै? मेरे जी मैं आया अक चिंग्घाड़ मारकै कहूं अक येहे थे वे जालिम। मैं बोल्या - वकील साहब मेरी गेल्यां अत्याचार तो कसूता हुया फेर इन छः माणसां मां तै तो मेरी समझ मैं कोए नहीं था। ये तो वे कोण्या जिननै जुल्म ढाया था। मेरा ए जी जानै सै मेरे भीतर के-के बात आवैं अर जावैं थी उस बखत। ‘सीनियर मैडीकल’ अफसर नै मेरै लागी औड़ चोटां का विस्तार तै ब्यौरा त्यार करया था फेर ईब वो भी न्यों बोल्या - रामेश्वर मेरै धोरै उन चोटां गेल्यां आया तो था फेर मेरै न्यों तो याद कोण्या अक उसकै ये चोट क्यूकर लागी थी। ख्याल सा कोण्या अक उसनै इस बात का किमै जिकर करया भी था अक नहीं। मेरे बाब्बू की गवाही कचहरी नै मानी कोण्या वो के कहया करैं ‘होस्टाइल’ करार दे दिया। उन जालिमां का कुछ नहीं बण्या वे न्योंए दन-दनाते हांडैं सैं। इलाके के सारे अधिकारी सारे म्हारै खिलाफ, पुलिस आले म्हारे खिलाफ, उन स्वर्णां के लठैत! माणस जीवै तै क्यूकर जीवै? मीडिया आले फेर कदे आये तै न्योंए लिखैंगे ना अक रामेश्वर जाटव डरग्या, रामेश्वर नै झूठ बोल्या, रामेश्वर हिम्मत हारग्या, रामेश्वर स्वर्णां धोरै पीस्से लेकै ब्यान बदलग्या। मेरे बाब्बू नै यू मुकद्दमा लड़ण खात्तर दो बीघे जमीन बेचनी पड़ी। आज हाल यू सै अक ये स्वर्ण मनै कदे बी खत्म कर सकैं सैं। मैं थारे धोरै बूझणा चाहूं सूं इसे हालात मैं थाम के करदे? जो मनै करया ओहे अक और किमै? और किमै करदे तो के करदे? मैं ईब के करूं? किसे धोरै कोए जवाब हो तै मेरा नाम पता इसमैं सै, मेरे धोरै एक पोस्टकार्ड तै गेरियो। मेरा अदालत जावण का मतलब समझ मैं आग्या होगा थारै?
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म्हारे रिवाज - कितने ठीक कितने गलत?
आजकाल म्हारे रिवाजां का, म्हारी पुरानी परम्परावां का, म्हारी पुरानी संस्कृति का बड़ा ढोल पिट्या जावण लागरया सै। उपभोगतावाद की गली सड़ी संस्कृति का मुकाबला इस पुरानी जंग लागे औड़ संस्कृति तै करण की गुहार करी जा सै। फेर खूंटा ठोक की एक बात तो गांठ मार लयो अक यो जो उपभोगतावाद की बाजारू संस्कृति का हमला सै इसका मुकाबला पुरानी संस्कृति तै, पुराने रिवाजां तै अर पुरानी परम्परावां तै नहीं करया जा सकदा। इन दोनूं संस्कृतियां मैं एक बात कोमन सै अर वा सै औरत नै एक चीज समझण की नजर, वा सै औरत नै उसके शरीर के मांह कै दैखण की नजर, औरत नै एक दोयम दर्जे का प्राणी समझण की नजर। आज बख्त की मांग सै, आज के सभ्य समाज की मांग सै, आज के आधुनिक समाज की मांग सै अक औरत बी एक इंसान समझी जावै, औरत का समाज मैं बरोबर का दर्जा हो, औरत का समाज के विकास मैं बराबर का साझा हो, समाज के चलावण मैं फैसले करण का उसका बरोबर का हक हो। समाज के विकास में औरत अर पुरूष कान्धे तै कान्धा मिला कै चालैं अर एक सभ्य सुसंस्कृत समाज की रचना करैं अर एक स्वस्थ इंसानी संस्कृति, एक ऊंचे दर्जे की मानवतावादी संस्कृति की रचना हो। फेर कई रलधू तै न्यों कहदें सैं अक औरत पुरुष के बरोबर क्यूंकर हो सकै सै? ये लुगाई पहल मैं सिर पै चढ़ा ली, इननै और सिर पै चढ़ाल्यो। इस ढाल के फांचर ठोक तै सारै ए पा ज्यांगे। बाकी एक बात जरूर सै अक इस उपयोगितावादी बाजारू संस्कृति का मुकाबला म्हारे पुराने रिवाज, म्हारी पुरानी परम्परा अर म्हारी पुरानी संस्कृति क्यूं ना कर सकदी? इसमैं सबतै जरूरी बात सै अक म्हारी पुरानी संस्कृति मैं भी औरत का दोयम दर्जा था, वा भोग की चीज मानी जावै थी अर इसे नजर तै म्हारे रिवाज बी बनाए गए।
जिब बात चीत चालै तो मां बाप सैड़दे सी कहवैंगे अक हमतै छोरा छोरी मैं कोए फरक नहीं करते। हमनै तै छोरी बल्क तै फालतू प्यारी लागै से। हो सके सै उनकी बात मैं दम हो फेर थोड़ा सा खुरच कै देखां तो वे भी दुभांत करते पावैं सैं। कई गामां मैं जिब महिला भू्रण हत्या के खिलाफ अभियान मैं गए तो बेरा पाट्या अक जिब छोरी हो सै तो जच्चा नै पांच सेर घी देवण का रिवाज सै अर जिब छोरा होवै तो दस सेर घी देवण का रिवाज सै। हमनै बताया अक या तो चौड़े मैं छोरी गेल्यां दुभांत सै तो वे महिला बोली ना या दुभांत कोण्या यो तै रिवाज सै।
ईब इननै कूण समझावै अक इन रिवाजां मैं, इन परम्परावां मैं ए तो दुभांत कूट-कूट कै भर राखी सैं। जिब छोरा हो तै थाली बजाई जावै खुशी मनावण खातर अर जै छोरी होज्या तै ठीकरा फोड़ कै मातम मनाया जावै। इस रिवाज मैं दुभांत कोण्या दीखती हमनै। लड़के के पैदा होवण पै नामकरण संस्कार धूमधाम तै करया जा अर लड़की होण पै नहीं। चुची धवाई का रिवाज छोरा पैदा होवण पै अर सोने की टूम ताहिं दी जावैं पर छोरी होवण पै कोए चूची ना धोवैं अर कोए ना धुवावै। छोरा होवण पै पिलिया अर छुछक का रिवाज बड़े चाव मैं भरकै मनाया जावै। छटी का दिन छोरे का ए क्यूं मनाया जावै। इस ढाल के रिवाजां की इतनी लाम्बी लिस्ट बनाई जा सकै सै जितनी लाम्बी द्रोपदी की साड़ी थी। जिब छोरा छोरी बरोबर तै फेर छोरा होवण की दवाई बाछड़े आली गां के दूध मैं क्यों खाई जावै? अर जै छोरी गर्भ मैं आ भी जावै तो इस बाजारू संस्कृति की दाब मैं अल्ट्रासाउण्ड करा कै बेरा पाड़ लिया जा अर छांट कै छोरी पै कटारी चला दी जा। वाह रै भारत देश महान तेरे क्या कैहने? गायां के वध पै तो रोज जलसे जलूस काढ़े जावैं अर इंसानां के वध पै चुप्पी साध ली जावै। वेहे डाक्टर जो छांट के महिला भ्रूण हत्या करण लागरे सैं, वे गौशाला के रक्षक अर और बेरा ना के बने पावैं सैं। जिब छोरिया की गिनती इतनी कम हो ज्यागी अक पांच भाइयां मैं तै एक का ब्याह हुआ करैगा ज्यूकर पहलम म्हारे रिवाज थे तो कै मन बीघे की उतरैगी? छोरा जरूरी चाहिए ना तै वंश क्यूकर चालैगा? या सै म्हारी पुरानी संस्कृति। छोरा नहीं होगा तै चिता नै लाकड़ी कूण देगा? पहलम तै रिवाज बनाया अक छोरी अर्थी गेल्यां शमशान घाट पै नहीं जा सकदी अर फेर सवाल ठा दिया अक चिता नै लाकड़ी कूण देवैगा?
हमनै अपणे पड़दादा का नाम ताहिं बेरा नहीं अर बात वंश की करां सां। छोरियां ताहिं न्यों कहया जावै सै अक मलाई खावैगी अर दूध पीवैगी तो मंूछ जाम ज्यांगी। कहण का मतलब यू सै अक जिब हम औरत नै एक इन्सानै माणण नै तैयार कोण्या, जिब उसनै बरोबर कर दर्जा ए देवण नै तैयार कोण्या तो इस बाजारू संस्कृति का मुकाबला क्यूकर कर सकां सां? असल मैं आज की जो अप संस्कृति सै वा म्हारी पुरानी संस्कृति की रूढ़िवादी परम्परावां अर आज की बाजारू संस्कृति की औरत नै एक चीजों के रूप मैं देखण की रूग्ण मानसिकता का घालमेल सै जयाहें तै तो चाहे जांघीया क्यूं ना बेचना हो गैल्या औरत जरूर मटकती दिखाई जावैगी। जै इस पुरानी रूढ़िवादी अर आज की बाजारू संस्कृति के घालमेल तै पैदा हुई सड़ांध का मुकाबला करना सै तो पुरानी संस्कृति की, पुराने रिवाजां की आंख मींच के कौली भरवाण तै काम कोण्या चालता। म्हारी पुरानी संस्कृति मैं भी जो अमानवीय रिवाज सैं, जो रूढ़िवादी परम्परा सैं जो गैर मानवतावादी रूझान सैं उनकी छंटनी करकै जो सम सामयिक स्वस्थ पहलूं सैं उनका साहरा लै कै इस बाजारू संस्कृति तै टक्कर लेकै नई संस्कृति, नए इंसान (औरत पुरुष दोनों) की, एक समतावादी, न्यायपूर्ण समाज की रचना ही हमें इस घालमेल के हमले से बचा सकै सै। फेर शाका यू सै अक इतनी डूंघी बातां पै सोच विचार कूण करै? एक बात और याद राखण की सै अक ये घालमेल संस्कृति आले आण आले बख्तां मैं महिलावां पै अपणा हमला तेज करैंगे। हो सकै सै ये तालिबान अर इराक की ढालां फतवे भी जारी करदें अक म्हारी संस्कृति नै खतरा सै, महिलावां नै घर तै बाहर नहीं लिकड़ना चाहिए, सिर पै चुन्नी जरूर होनी चाहिए अर हम भी सैड़ देसी इनकी गेल्यां होल्यांगे अक बात इनकी सौलां आने सही। फेर अफगानिस्तान मैं, पाकिस्तान मैं अर इरान मैं के होया इसका हमनै बेरा नहीं। इस घालमेल संस्कृति के मुकाबले मैं या फासीवादी संस्कृति हमने किते का नहीं छोड़ैगी आ फेर हम कहवांगे ओहले। हमनै के बेरा था न्यों बणज्यागी?
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